मेहता अगरचन्द का घराना :- मांडलगढ़ के हाकिम व मेवाड़ के प्रधान मेहता अगरचन्द ने मेवाड़ राज्य की बड़ी सेवा की। 1800 ई. में उनके देहांत के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र मेहता देवीचंद मेवाड़ के प्रधान बने।
हालांकि कुछ दिन बाद देवीचंद के स्थान पर सतीदास को प्रधान बना दिया गया। इन दिनों मेवाड़ में मराठों का आतंक था। मराठों ने देवीचंद को कैद कर लिया, तब मेवाड़ नरेश महाराणा भीमसिंह ने उनको कैद से छुड़वाया।
कोटा के झाला जालिमसिंह भी साम्राज्य विस्तार में लगे हुए थे। इस समय उनकी शक्ति इतनी बढ़ चुकी थी कि राजपूताने की बड़ी से बड़ी रियासत को सीधी टक्कर देना भी उनके लिए मुश्किल नहीं था।
उनका इरादा ये था कि भीलवाड़ा के पूर्व का हिस्सा जो कि खैराड़ के नाम से मशहूर था, उसको कोटा में शामिल कर लिया जावे। यह विचार करके उन्होंने मांडलगढ़ पर अधिकार करना चाहा।
परंतु महाराणा भीमसिंह ने सन्देश स्वरूप एक ढाल व तलवार वहां नियत किलेदार देवीचंद के पास भिजवा दी। यह संकेत देखकर देवीचंद सचेत हो गए और किले में सभी सैनिकों को मोर्चे पर खड़ा कर दिया। उनकी बहादुरी के कारण जालिमसिंह वहां अधिकार न कर सके।
कर्नल जेम्स टॉड द्वारा मेवाड़ राज्य का प्रबंध करते समय देवीचंद को प्रधान बनाया गया, परन्तु उन्होंने कुछ दिन बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया। मेहता अगरचन्द के तीसरे पुत्र सीताराम के पुत्र शेरसिंह हुए।
1828 ई. में मेवाड़ के महाराणा जवानसिंह बने। इस समय मेवाड़ पर 7 लाख रुपए का कर्ज चढ़ गया। शेरसिंह की ईमानदारी व सच्चाई देखकर महाराणा जवानसिंह ने मेहता रामसिंह को पद से हटाकर मेहता शेरसिंह को मेवाड़ का प्रधान घोषित कर दिया।
शेरसिंह में गुण थे, परन्तु अनुभव की कमी के कारण प्रबंधकुशलता के मामले में वे ज्यादा योग्य नहीं थे। कर्ज बढ़ता गया, जिस कारण महाराणा ने उनको एक वर्ष बाद पद से हटाया। लेकिन पुनः 1831 ई. में शेरसिंह को प्रधान बना दिया।
महाराणा जवानसिंह के देहांत के बाद महाराणा सरदारसिंह मेवाड़ के शासक बने। महाराणा सरदारसिंह ने गद्दी पर बैठते ही मेहता शेरसिंह को कैद कर लिया, क्योंकि उत्तराधिकार के चयन के समय शेरसिंह ने सरदारसिंह का साथ नहीं दिया था।
पोलिटिकल एजेंट ने शेरसिंह को कैद से छुड़ाने के प्रयास किए, जिसके बाद महाराणा ने 10 लाख रुपए जुर्माने के बदले में शेरसिंह को छोड़ना तय किया। शेरसिंह के कई विरोधी भी थे, जिनसे खौफ खाकर वे मारवाड़ चले गए।
जब महाराणा स्वरूपसिंह मेवाड़ के शासक बने, तब उन्होंने मेहता शेरसिंह को योग्य समझकर उनको उदयपुर बुलाया व 1844 ई. में मेवाड़ का प्रधान बनाया।
लावा पर अधिकार :- लावा (सरदारगढ़) की जागीर शक्तावत राजपूतों ने डोडिया राजपूतों से छीन ली। 1847 ई. में महाराणा स्वरूपसिंह ने मेहता शेरसिंह के दूसरे पुत्र जालिमसिंह को फ़ौज समेत लावा पर आक्रमण करने का आदेश दिया।
जालिमसिंह ने लावा के गढ़ पर आक्रमण किया, लेकिन महाराणा की तरफ से 50-60 सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए। गढ़ का दरवाजा मजबूती के कारण नहीं टूट सका। फिर महाराणा ने यह काम मेहता शेरसिंह के सुपुर्द किया।
शेरसिंह ने लावा पर आक्रमण करके किले पर अधिकार किया और चतरसिंह शक्तावत को महाराणा के सामने हाजिर किया।
महाराणा स्वरूपसिंह ने मेहता शेरसिंह को पुरस्कारस्वरूप एक कीमती खिलअत, बीड़ा व ताजीम का अधिकार देना चाहा। शेरसिंह ने खिलअत व बीड़ा स्वीकार किया, लेकिन ताजीम का अधिकार अस्वीकार कर दिया।
मेहताओं की कमान में भीलों की बगावत कुचलना :- 1850 ई. में बीलख के भीलों ने बगावत की, जिसके बाद महाराणा स्वरूपसिंह ने मेहता शेरसिंह के ज्येष्ठ पुत्र सवाईसिंह को भेजा। सवाईसिंह ने यह बगावत कुचल दी।
1851 ई. में लुहारी के मीणों ने सरकारी डाक लूट ली। महाराणा स्वरूपसिंह ने मेहता सवाईसिंह के पुत्र अजीतसिंह को फ़ौज समेत भेजा। अजीतसिंह उस समय जहाजपुर के हाकिम थे।
अजीतसिंह ने आक्रमण करके छोटी व बड़ी लुहारी पर अधिकार कर लिया। मीणा मनोहरगढ़ व देव का खेड़ा में जा छिपे, तो अजीतसिंह भी वहां जा पहुंचे। उन मीणों की मदद खातिर जयपुर, टोंक व बूंदी से हजारों मीणा आ पहुंचे।
फिर हुई लड़ाई में कुछ राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए। इसके बाद महाराणा ने मेहता शेरसिंह को सेना सहित रवाना किया, तब जाकर इस विद्रोह का दमन हो सका।
1855 ई. में कालीवास के भीलों ने उत्पात मचाया, तब महाराणा स्वरूपसिंह ने सवाईसिंह को भेजा। सवाईसिंह ने यह बगावत बहुत बुरी तरह से कुचली।
1857 ई. के नीमच विद्रोह के समय महाराणा स्वरूपसिंह ने कप्तान शावर्स के साथ मेहता शेरसिंह को भी नीमच के लिए विदा किया। विद्रोह के शांत होने तक शेरसिंह वहीं रहे। नीमच में ख़बर मिली कि निम्बाहेड़ा के मुसलमान अफसर ने बगावत कर दी।
फिर कप्तान शावर्स, मेहता शेरसिंह व सवाई सिंह सेना सहित निम्बाहेड़ा गए। इस फ़ौज के जाने पर मुसलमान भाग निकले और निम्बाहेड़ा पर मेवाड़ वालों का अधिकार हो गया। निम्बाहेड़ा की रक्षा हेतु वहां मेहता शेरसिंह को तैनात किया गया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)