गुहिलवंशी सिसोदिया राजपूतों की रियासत – धरमपुर

गुहिलवंशियों की रियासत धरमपुर :- गुजरात के सूरत जिले में धरमपुर है, जो कि गुहिलवंशियों की रियासत रही। 12वीं सदी में मेवाड़ के शासक रणसिंह हुए, जिन्हें कर्णसिंह के नाम से भी जाना जाता है।

रावल रणसिंह के पुत्र रावल क्षेमसिंह, माहप व राहप हुए। माहप को मेवाड़ में ही सिसोदा गांव की जागीर मिली। उनके बाद यह जागीर राणा राहप को मिली। राहप के वंश में राणा रामशाह सिसोदिया हुए।

राणा रामशाह ने एक सैनिक टुकड़ी के साथ गुजरात की तरफ प्रस्थान किया। उन्होंने 1262 ई. में गुजरात में एक भील शासक को मारकर उसका राज्य छीन लिया और राज्य का नाम रामनगर रखा।

धरमपुर के महाराणा नारायणदेव

राणा रामशाह के बाद क्रमशः राणा सोमशाह, राणा पुरंदरशाह, राणा धर्मशाह, राणा भोपशाह, राणा जगतशाह, राणा नारायणशाह, राणा धर्मशाह द्वितीय, राणा जगतशाह द्वितीय शासक हुए।

1566 ई. में राणा जगतशाह द्वितीय का देहांत होने के बाद राणा लक्ष्मणदेव रामनगर के शासक बने। इनके समयकाल में मुगल बादशाह अकबर ने गुजरात पर आक्रमण किया। यह आक्रमण 1572-1573 ई. में किया गया था।

अकबर ने गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह को परास्त कर दिया, जिसके बाद गुजरात के कई अन्य क्षेत्रों पर भी उसका अधिकार हो गया। रामनगर ने भी मुगल अधीनता स्वीकार कर ली और अकबर को सालाना खिराज देना तय किया।

1600 ई. में राणा लक्ष्मणदेव के देहांत के बाद राणा रामदेव वहां के शासक बने। इनके समयकाल में छत्रपति शिवाजी महाराज ने सूरत पर आक्रमण किया था। इस आक्रमण में राणा रामदेव ने औरंगज़ेब के विरुद्ध जाकर छत्रपति शिवाजी महाराज को सहायता प्रदान की।

राणा रामदेव के बाद राणा सहदेव रामनगर के शासक बने। तत्पश्चात राणा रामदेव द्वितीय शासक बने। राणा के पूर्वजों ने छत्रपति शिवाजी महाराज की मदद की थी, परन्तु मराठों ने यह बात भूलकर रामनगर पर हमला करके चौथ वसूली के तहत 72 गांव अपने कब्जे में ले लिए।

महाराणा नारायणदेव की लाइब्रेरी

पेशवा ने ये गांव पुर्तगालियों को सौंप दिए। 1764 ई. में राणा रामदेव द्वितीय के देहांत के बाद राणा धर्मदेव रामनगर के शासक बने। राणा धर्मदेव ने धरमपुर बसाकर उसे अपनी नई राजधानी बनाई। धर्मदेव ने महाराणा की उपाधि धारण की।

राणा धर्मदेव के देहांत के बाद क्रमशः राणा नारायणदेव, राणा सोमदेव व राणा रूपदेव धरमपुर के शासक बने। मराठे धरमपुर वालों से समय-समय पर चौथ वसूली करते रहे, लेकिन 1802 ई. में पेशवा और अंग्रेज सरकार के बीच बसीन की सन्धि हुई।

इस सन्धि के बाद धरमपुर रियासत पर मराठों का प्रभाव समाप्त हुआ और अंग्रेजों का प्रभाव शुरू हुआ। 1807 ई. में महाराणा विजयदेव धरमपुर के शासक बने।

ये काफी उदार शासक थे और इतिहास में अक्सर देखा गया है कि उदार शासकों पर कर्ज ज्यादा चढ़ता है। इसका कारण ये है कि उदार शासक दान आदि में जागीरें ज्यादा देते थे।

बम्बई के गवर्नर ने मध्यस्थता करते हुए जितना हो सका उतने कर्ज़ का निपटारा करवाया। 1820 ई. में बम्बई के गवर्नर माउंट एलफिंस्टन ने महाराणा विजयदेव को खिलअत भेंट करके सम्मानित किया।

महाराणा मोहनदेव

1857 ई. में महाराणा विजयदेव का देहांत हो गया। उनके बाद क्रमशः रामदेव व नारायणदेव का शासन रहा। महाराणा नारायणदेव की पुत्री मान कंवर का विवाह सिरोही के महाराव केसरीसिंह देवड़ा के साथ हुआ।

महाराणा नारायणदेव की पुत्री नंद कंवर का विवाह गोंडल के महाराजा भगवत सिंह जाडेजा के साथ हुआ। महाराणा नारायणदेव विद्वानों का बहुत सम्मान करते थे।

उनकी योग्यता व शासन प्रबंध के कारण रियासत की बड़ी तरक्की हुई और पुराने समय से चला आ रहा कर्ज़ समाप्त हो गया। उनके पुत्र धर्मदेव का देहांत होने के कारण दूसरे पुत्र मोहनदेव को उत्तराधिकारी घोषित किया गया।

महाराणा मोहनदेव का विवाह राजपरा के ठाकुर साहब आशाजीराज वाघीराज जाडेजा की पुत्री से हुआ। महाराणा मोहनदेव की पुत्री मोहिनी कुमारी का विवाह जम्मू कश्मीर के प्रसिद्ध महाराजा हरिसिंह जी से हुआ। ये महाराजा हरिसिंह की तीसरी पत्नी बनीं।

महाराजा हरिसिंह का पहला विवाह भी धरमपुर में ही हुआ था। यह विवाह धरमपुर के महाराणा की भतीजी धनवंत कंवर से हुआ था। विवाह के कुछ ही समय बाद धनवंत कुमारी का देहांत हो गया था।

26 मार्च, 1921 ई. को महाराणा मोहनदेव का देहांत हो गया। उनके बाद महाराणा विजयदेव धरमपुर के शासक हुए। महाराणा विजयदेव की पुत्री जसवंत कुमारी का विवाह नागोद के राजा महेंद्र सिंह जू देव बहादुर से हुआ।

महाराणा मोहनदेव

5 मई, 1952 ई. को महाराणा विजयदेव का देहांत हुआ। राजतंत्र में महाराणा विजयदेव धरमपुर के अंतिम शासक थे। उनके बाद अगले महाराणा सहदेव हुए।

धरमपुर रियासत का क्षेत्रफल 704 वर्गमील व 1921 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या 95,171 थी। अंग्रेज सरकार के समयकाल में इस रियासत के राजाओं को 9 तोपों की सलामी दी जाती थी, जो कि बाद में बढ़ाकर 11 कर दी गई।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. September 7, 2022 / 9:10 am

    हमें अपना को ही लोग का इतिहास यह पेज में सबमिट करना है किस प्रकार से भेजें हम

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