सेठ जोरावरमल बापना का घराना :- ये जैसलमेर के प्रसिद्ध पटवा घराने के ओसवाल महाजन थे। जैसलमेर में देवराज बापना के पुत्र प्रसिद्ध गुमानचंद हुए, जिन्होंने जैसलमेर की पटवा हवेलियों का निर्माण करवाया।
गुमानचन्द के 5 पुत्र हुए :- बहादुरमल, सवाईराम, मगनीराम, जोरावरमल और प्रतापचन्द। चौथे पुत्र जोरावरमल ने व्यापार में बड़ा नाम कमाया और कई शहरों में दुकानें खोल दीं।
जोरावरमल ने इंदौर में व्यापार को ज्यादा बढ़ाया, जिससे होल्कर व अंग्रेज सरकार को बड़ी प्रसन्नता हुई। देश के कई राज्यों में सेठ जोरावरमल की ख्याति पहुंच चुकी थी।
सेठ जोरावरमल का मेवाड़ आगमन :- 1818 ई. में मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह के शासनकाल में कर्नल जेम्स टॉड मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट नियुक्त होकर उदयपुर आया।
इस समय मराठों व पिंडारियों द्वारा लगातार होने वाली लूटमार से मेवाड़ की आर्थिक दशा बुरी तरह बिगड़ गई। जेम्स टॉड जानता था कि मेवाड़ की आर्थिक दशा को सुधारने हेतु उचित प्रबंधक की आवश्यकता है और यह कार्य सेठ जोरावरमल से बेहतर कोई नहीं कर सकता।
जेम्स टॉड ने महाराणा भीमसिंह को सलाह दी कि आप इंदौर से सेठ जोरावरमल को उदयपुर बुला लीजिए। सेठ जोरावरमल ने महाराणा के आमंत्रण को सहर्ष स्वीकार किया और वे सपरिवार उदयपुर आए।
महाराणा भीमसिंह ने उदयपुर में जोरावरमल की एक दुकान कायम करवाकर कहा कि “राज्य के जो भी खर्चे हों, वे तुम्हारी दुकान से दिए जावें और जो भी आय हो वह तुम्हारी दुकान में जमा रहे।”
सेठ जोरावरमल ने मेवाड़ में नए खेड़े बसाए, किसानों को सहायता दी और चोर-लुटेरों को दंड दिया। महाराणा भीमसिंह इन कार्रवाइयों से बड़े खुश हुए।
महाराणा ने 26 मई, 1827 ई. को जोरावरमल को पालकी व छड़ी के सम्मान के साथ परासोली नामक गाँव (बदनोर परगने में स्थित) और ‘सेठ’ की उपाधि दी। पोलिटिकल एजेंट ने सेठ का काम देखकर अंग्रेजी खजाने का प्रबंध भी उन्हें ही सौंप दिया।
सेठ जोरावरमल का कार्य केवल रुपयों-पैसों तक ही सीमित नहीं था। राज्यों के आपसी मसलों व अंग्रेज सरकार के साथ होने वाले मसलों के निपटारों में भी सेठ जोरावरमल की सलाह ली जाती थी। मेवाड़ में तो सेठ जोरावरमल की प्रतिष्ठा प्रधान से भी ज्यादा हो गई थी।
महाराणा भीमसिंह के बाद महाराणा जवानसिंह मेवाड़ के शासक बने। 2 दिसम्बर, 1832 ई. को सेठ जोरावरमल ने उदयपुर के ऋषभदेव जी के प्रसिद्ध मंदिर पर ध्वजा-दंड चढ़ाया और दरवाजे पर नक्कारखाना बनवाया।
1833 ई. में महाराणा जवानसिंह गयाजी की यात्रा हेतु रवाना हुए। इस समय सेठ जोरावरमल ने अपने ज्येष्ठ पुत्र सुल्तानमल को महाराणा के साथ भेजा, ताकि यात्रा खर्च का प्रबंध हो सके।
1834 ई. में सेठ जोरावरमल व उनके भाइयों ने उस ज़माने के 13 लाख रुपए व्यय करके आबू, तारंगा, गिरनार, शत्रुंजय आदि की रक्षा के लिए एक बड़ा संघ बनाया।
इसकी रक्षा हेतु मेवाड़, मारवाड़, जैसलमेर, कोटा, बूंदी, टोंक, इंदौर व अंग्रेज सरकार ने अपनी-अपनी सेनाएं भेजीं। इन सभी सेनाओं में कुल 4 हजार पैदल सैनिक, 150 घुड़सवार और 4 तोपें थीं। जैसलमेर के महारावल ने सेठ जोरावरमल को ‘संघवी सेठ’ की उपाधि दी।
1842 ई. में मेवाड़ के महाराणा जवानसिंह के देहांत के बाद महाराणा स्वरूपसिंह गद्दी पर बैठे, इस समय मेवाड़ पर 20 लाख से भी ज्यादा रुपए का कर्ज था, जिसमें अधिकांश कर्ज सेठ जोरावरमल बापना का ही था।
महाराणा स्वरूपसिंह ने कर्ज बढ़ता देखकर इस कर्ज का निपटारा करना चाहा। यह विचार करके 28 मार्च, 1846 ई. को वे सेठ की हवेली पर पधारे।
सेठ ने घोड़ा, हाथी, ज़ेवर, पोशाक व 10 हज़ार रुपए महाराणा को नज़र किए। इसके बाद कर्ज़ की बातचीत शुरू हुई। सेठ ने कहा कि आप जिस भी तरह से कर्ज चुकाना चाहें, वह मुझे स्वीकार है।
इस बात से प्रसन्न होकर महाराणा स्वरूपसिंह ने जोरावरमल को कुंडाल गांव भेंट किया, सेठ के पुत्र चांदणमल को पालकी भेंट की और सेठ के पौत्रों गंभीरमल और इंदरमल को भूषण, सिरोपाव आदि भेंट किए।
इस घटना से प्रभावित होकर दूसरे लेनदारों ने भी महाराणा की इच्छानुसार अपने-अपने रुपयों का फ़ैसला कर लिया, जिससे मेवाड़ के सिर से कर्ज़ का बोझ उतर गया और सेठ जोरावरमल के नेक कार्यों के कारण उनका बड़ा नाम हुआ।
फिर सेठ जोरावरमल इंदौर चले गए, जहां 26 फरवरी, 1853 ई. को उनका देहांत हो गया। इंदौर के महाराजा ने बड़े सम्मान के साथ उनका दाह संस्कार करवाया।
सेठ जोरावरमल के 2 पुत्र हुए :- सुल्तानमल और चांदणमल। चांदणमल के 2 पुत्र हुए :- जुहारमल और छोगमल।
20वीं सदी के उत्तरार्ध में महाराणा फतहसिंह के शासनकाल में उदयपुर से चित्तौड़गढ़ स्टेशन के बीच यात्रियों की सुविधा हेतु मेलकार्ट चलाना तय किया गया और यह कार्य सेठ जुहारमल को सौंपा गया।
वर्षों तक मेलकार्ट चला, परन्तु इस कार्य में सेठ जुहारमल की लापरवाही से राज्य को बड़ा नुकसान हुआ, जिसके एवज में जुहारमल से हानि की क्षतिपूर्ति करने को कहा गया। आज्ञापालन न होने पर महाराणा ने जुहारमल से परासोली गांव जब्त कर लिया।
सेठ जुहारमल के भाई छोगमल के पुत्र सिरेमल ने इंदौर राज्य की सेवा की। सिरेमल के 2 पुत्र हुए :- कल्याणमल और प्रतापसिंह।
उक्त जानकारी ग्रंथ वीरविनोद व राजपूताने के इतिहास से ली गई है। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)