मारवाड़ नरेश राव चूंडा राठौड़ (भाग – 4)

मारवाड़ नरेश राव चूंडा राठौड़ :- 14वीं सदी के उत्तरार्द्ध में राव चूंडा ने अपने बाहुबल से कई क्षेत्रों को जीतकर अपने राज्य में मिला दिया, लेकिन उन्हें इसके लिए कई पड़ोसी राजपूतों से भी शत्रुता मोल लेनी पड़ी।

गढ़े हुए खज़ाने को निकालने की कोशिश :- एक दिन एक किसान राव चूंडा के पास आया और कहा कि मेरे खेत में एक खड्डा दिखाई पड़ा, जिसमें कुछ बर्तनों के किनारे दिख रहे हैं, खुदाई करने पर सम्भव है कोई खज़ाना हाथ लगे।

राव चूंडा ने उस किसान से कहा कि ये सब तुमने हमको क्यों बताया, तो किसान ने कहा कि राजा ही राज्य का मालिक होता है, इसलिए कहीं भी मिले अज्ञात खजाने पर पहला अधिकार राजा का ही होता है।

राव चूंडा ने वहां बड़ी गहरी खुदाई करवाई, लेकिन सिर्फ रसोई के बर्तन निकले। एक बर्तन पर खुदा हुआ था कि “जो भी ये पात्र निकाले, वह इन पात्रों के अनुसार रसोई की सामग्री तैयार करे”।

राव चूंडा राठौड़

ये लिखा देखकर रावजी ने कहा कि इन बर्तनों को फिर से गाढ़ दो। तब किसी ने कहा कि इनमें से कुछ तो लेना चाहिए, फिर एक पात्र ले लिया गया, जो घी रखने का था। रावजी ने आदेश दिया कि आज से हमारे साथ भोजन करने वाले सभी राजपूतों को इस पात्र में घी परोसा जाए।

यदि इससे थोड़ा भी कम घी परोसा, तो दंड दिया जाएगा। जमाना पुराना था और खानपान की बातों से पुराने लोग बड़े प्रसन्न होते थे, इसलिए रावजी की ये बात सुनकर सभी सरदार बड़े प्रसन्न हुए। एक ख्यात के अनुसार रावजी के यहां प्रतिदिन 13-14 मन घी उठता था।

राव चूंडा का देहांत :- राव राणगदे भाटी की पत्नी, जो कि सोढा राजपूतानी थीं, पूगल की गद्दी पर बैठीं। उन्होंने कहा कि जो कोई राजपूत मेरे पति और पुत्र की हत्या का बैर लेगा, उसे पूगल की गद्दी मिलेगी।

जैसलमेर रावल के पुत्र केल्हण भाटी ने राव चूंडा को मारने का प्रण लिया, लेकिन कहा कि पहले गद्दी मिले, तभी मैं अपना प्रण पूरा कर सकूंगा। इस तरह केल्हण भाटी पूगल के स्वामी बने।

राव चूंडा को इतनी बड़ी सेना की चढ़ाई की उम्मीद नहीं थी। इस समय गढ़ में कम ही राजपूत सैनिक थे। उन्होंने रावजी से कहा कि “आप गढ़ छोड़कर चले जाइये, हम यहीं लड़कर मरेंगे”।

राव चूंडा ने कहा कि “मैंने अपने जीवन में कभी शत्रु को पीठ नहीं दिखाई है, अब वृद्धावस्था में ये कलंक अपने सिर क्यों लगाऊंगा ?”

किसी ख्यात में ऐसा भी लिखा है कि राव चूंडा की मोहिल रानी की कार्रवाइयों से नाराज़ होकर उनके सामन्त आदि गढ़ छोड़कर चले गए।

रेउ साहब के अनुसार 1423 ई. में पूगल व जैसलमेर के भाटियों, जांगलू के सांखलों, मोहिलों और मुल्तान के हाकिम सलीम के सैनिकों की मिली-जुली सेना ने नागौर पर आक्रमण किया। इस समय जैसलमेर पर राव लखमण भाटी का अधिकार था।

राव चूंडा राठौड़

नैणसी के अनुसार भाटी राजपूतों ने राव चूंडा पर आक्रमण करके उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। किसी ख्यात में ऐसा भी लिखा है कि राव चूंडा को बातचीत करने के लिए नगर से बाहर बुलाया गया, जहां पीछे खड़ी एक फ़ौज ने उनको घेर लिया।

राठौड़ों के एक दल ने वीरता से शत्रुओं का सामना किया, परन्तु परास्त हुए। 15 मार्च, 1423 ई. को राव चूंडा इस लड़ाई में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

राव चूंडा का शासनकाल मारवाड़ के राठौड़ वंश के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा। राव चूंडा ने जितना राज्य विस्तार किया, उतना उनसे पहले किसी राठौड़ शासक ने नहीं किया।

राव चूंडा के परिवार का वर्णन :- अलग-अलग ख्यातों में राव चूंडा की रानियों व पुत्र-पुत्रियों के जो नाम मिलते हैं, वे कुछ इस तरह हैं :- राव चूंडा ने 10 विवाह किए, जिनमें से कुछ रानियों का वर्णन यहां किया जा रहा है।

रानी सांखली सूरमदे, जो कि वीसल की पुत्री व रणमल की माता थीं। रानी तारादे गहलोत, जो कि सोहड़ साक सूदावत की पुत्री व सत्ता की माता थीं। रानी भटियाणी लाडां, जो कि कुतल केलणोत की पुत्री व अरड़कमल की माता थीं।

रानी सोना, जो कि मोहिल ईसरदास की पुत्री व कान्हा की माता थीं। रानी ईंदा केसर गोगादे, जो कि उगाणोत की पुत्री थीं। इनके पुत्र भीम, सहसमल, वरजांग, रुदा, चादा और अज्जा हुए।

राव चूंडा के पुत्र :- रणमल, सत्ता, अरड़कमल, रणधीर, सहसमल, अज्जा/अजमल, भीम, कान्हा, राम, पूंजा/पूना, लूम्भा, लाला, सुरताण, वाघा, बीजा, शिवराज, वरजांग, चादा, रुदा।

अलग-अलग ख्यातों से ये 19 नाम मिले हैं, सम्भव है कि इनमें एक ही व्यक्ति के दो अलग-अलग नाम भी हों, क्योंकि ख्यातों के अनुसार राव चूंडा के कुल 14 पुत्र हुए। जिसके पीछे एक कहावत प्रचलित है कि “चूंडै राव चवदै जाया और चवदै ही राव कहाया”।

मंडोर के प्राचीन मन्दिर

इनमें से 12 पुत्रों की शाखाएं चलीं। सत्ता से सतावत, रणधीर से रणधीरोत, भीम से भीमोत, अर्जुन से अर्जुनोत, अरड़कमल से अड़कमालोत, पूना से पूनावत, कान्ह से कान्हावत, शिवराज से शिवराजोत, लुम्भा से लुम्भावत, विजा से विजावत, सहसमल से सहसमलोत, हरचंद से हरचंदोत।

राव चूंडा की एक पुत्री हंसाबाई हुईं, जिनका विवाह मेवाड़ के महाराणा लाखा से हुआ। हंसाबाई के पुत्र महाराणा मोकल हुए।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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