मारवाड़ नरेश राव चूंडा राठौड़ :- राव चूंडा राठौड़ द्वारा मारवाड़ में राज्य विस्तार करते हुए कई जगह राठौड़ों का दबदबा कायम कर दिया गया। फिर उन्होंने नागौर को भी जीतने पर विचार किया।
ख्यातों में राव चूंडा द्वारा नागौर को जीतने का वर्णन मिलता है, लेकिन डॉ. ओझा का मानना है कि उस समय नागौर पर मुसलमानों का राज था और राव चूंडा के समयकाल के बाद भी वहां मुसलमानों का राज बना रहा था।
महाराणा मोकल द्वारा नागौर के फिरोज़ खां से युद्ध लड़ने की घटनाएं उस समयकाल के शिलालेखों में दर्ज हैं। हालांकि यह बात सही है कि वहां इस समयकाल में मुसलमानों का राज रहा था, लेकिन यह सम्भव है कि कुछ समय के लिए यह क्षेत्र राव चूंडा के अधीन हो गया हो।
इस संबंध में विश्वेश्वर नाथ रेउ ने लिखा है कि राव चूंडा ने 1399 ई. में खोखर को परास्त करके नागौर पर अधिकार किया।
1407 ई. में शम्स खां ने गुजरात की फ़ौजी मदद से राठौड़ों को परास्त करके नागौर छीन लिया, जिसके बाद राव चूंडा मंडोर चले गए। 1421 ई. में राव चूंडा ने फिरोज़ खां को परास्त करके पुनः नागौर पर अधिकार किया।
राव चूंडा द्वारा जारी किया गया ताम्रपत्र :- 1421 ई. में राव चूंडा ने जोधपुर परगने के बड़ली नामक गाँव को दान में दिया, इस आशय का एक ताम्रपत्र भी जारी किया गया।
भाटियों से प्रतिशोध लेना :- इस समयकाल में राठौड़ व भाटी राजपूतों के बीच कई आपसी लड़ाइयां हुईं, जिनमें एक-दूसरे की हत्या का प्रतिशोध लेना जारी रहा। सांखला हरभू के पिता मेहराज जांगलू में रहते थे।
मेहराज के यहां वीकूंपुर से जेता आए, जिनका आदर-सत्कार किया गया। मेहराज ने अपनी पुत्री जेता को ब्याह दी। विदा करते वक्त मेहराज ने अपने पुत्र आलणसी से कहा कि तुम अपने बहनोई को वीकूंपुर पहुंचा आओ।
2-4 दिन वीकूंपुर में रहने के बाद जेता वहां से रवाना हुए और राव राणगदे भाटी के यहां गए और विवाह में धन खर्च होने के कारण कुछ धन उधार देने की विनती की।
लेकिन राव राणगदे भाटी ने धन नहीं दिया, जिससे नाराज़ होकर जेता ने राव राणगदे के इलाकों में फसाद करना शुरू किया। अपने ही राज्य में भला ऐसी उद्दंडता राव राणगदे कैसे सहन करते।
राव राणगदे अपने सैनिकों समेत जेता को सबक सिखाने के लिए रवाना हुए। लड़ाई में जेता और आलणसी समेत 10 राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए। मेहराज ने राव राणगदे को कहलवाया कि “मेरे पुत्र आलणसी ने तो तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा था, इसलिए उसे मारकर तुमने भूल की।”
मेहराज ने राव चूंडा से कहा कि “राव राणगदे भाटी ने मेरे पुत्र को अकारण मारा है। आपकी भी भाटियों से शत्रुता है, इसलिए हमारा आपसे निवेदन है कि आप हमारा बैर लें।”
राव चूंडा ने मेहराज को आश्वासन दिया और भांवडां नाम गांव भी दे दिया और साथ ही अपने पुत्र अरड़कमल से भी कहा कि “तुम मेहराज का ध्यान रखना। मेहराज कहीं दौड़-धूप करें, तो उनके साथ रहना।”
एक दिन राव चूंडा के पुत्र अरड़कमल ने तलवार से एक भैंसे के दो टुकड़े कर दिए, जिसकी सरदारों ने बड़ी प्रशंसा की। लेकिन राव चूंडा ने कहा कि
“क्यों झूठी प्रशंसा कर रहे हो तुम सब ? एक भैंसे को बांधकर मारने में भला कैसी वीरता ? अच्छा तो तब हो जब ऐसा वार राव राणगदे भाटी या उसके बेेटे सादुल पर किया जावे”
(राव राणगदे ने राव चूंडा के भाई गोगादेव को मारने में सहयोग किया था और गोगादेव को गाली भी दी थी, जिसका बदला लेने के लिए राव चूंडा ने ऐसा कहा)
इसी समय से अरड़कमल ने सादुल को मारना तय कर लिया था, लेकिन राव चूंडा के सामने मौन रहे। इन्हीं दिनों एक और घटना घटी। औड़ीट के स्वामी मोहिल माणकदेव की पुत्री कोडमदे का रिश्ता अरड़कमल से तय हुआ था।
लेकिन फिर इनका रिश्ता राव राणगदे भाटी के पुत्र सादुल से तय हो गया। अरड़कमल ने इसे अपना अपमान समझा और सेना सहित सादुल को मारने के लिए रवाना हुए। अरड़कमल के साथ मेहराज भी थे।
विवाह करने के बाद सादुल जिस समय बारात लेकर लौट रहे थे, उस समय अरड़कमल मार्ग रोककर बैठे थे। दोनों पक्षों का आमना-सामना हुआ, जिसमें अरड़कमल ने सादुल को मार दिया। नवविवाहिता कोडमदे अपने पति की चिता पर बैठकर सती हो गईं।
राव चूंडा ने अरड़कमल की प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर उनको डीडवाना की जागीर दे दी। फिर राव राणगदे भाटी ने अपने पुत्र की हत्या का बदला लेने के लिए राव चूंडा के सहयोगी मेहराज सांखला को मार दिया और मेहराज की जागीर का गाँव भी लूट लिया।
मेहराज के भाणजे ने राव चूंडा से कहा कि यदि आपने मेरे मामा का बैर ले लिया, तो मैं आपको कन्या ब्याह कर 100 घोड़े दहेज में दूंगा। राव चूंडा ने जैसलमेर राज्य के निकट सिरढ़ा नामक गाँव में राव राणगदे भाटी को मारकर प्रतिशोध लिया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)