मारवाड़ नरेश राव चूंडा राठौड़ :- ईंदा राजपूतों की सहायता से राव चूंडा राठौड़ ने 1394 ई. में मंडोर के किले पर अधिकार कर लिया। इस विजय से राव चूंडा की बड़ी प्रसिद्धि हुई।
इस समय मंडोर में 342 गांव थे, जिनमें से 84 गांव ईंदा पड़िहारों के, 84 गांव बालेसों के, 84 गांव आसायचों के, 55 गांव माँगलियों के व 35 गांव कोटेचों के अधिकार में थे।
इस विजय की ख़बर सुनकर रावल मल्लीनाथ खुद वहां आए और राव चूंडा की तारीफ करके साथ में भोजन किया। राव चूंडा का राज्याभिषेक हुआ और इसी दिन से वे मंडोवर के रावजी कहे जाने लगे। राव चूंडा ने सालदू भाटी व ऊना राठौड़ को प्रधान पद पर नियुक्त किया।
चामुंडा माता का मंदिर बनवाना :- राव चूंडा ने चावड़ा नामक गाँव में एक गुफा के अंदर अपनी इष्टदेवी चामुंडा माता का मंदिर बनवाया और निकट ही एक शिलालेख खुदवाया। यह शिलालेख 26 नवंबर, 1394 ई. को खुदवाया गया।
मंडोर पर अधिकार करने के बाद राव चूंडा ने ईंदा, मांगलिया और आसायच राजपूतों को आदर सहित अपने पास रखा। जो गांव उजड़ गए थे, उन्हें फिर से बसाया गया।
राव चूंडा ने मंडोर राज्य के कुछ गांव खालसे कर लिए थे अर्थात उन गांवों की आमदनी सीधे राव चूंडा के पास जाती थी। एक दिन आल्हा चारण राव चूंडा के महलों में आए।
राव चूंडा का पालन पोषण कालाऊ नामक गाँव में आल्हा चारण के घर में ही हुआ था। राज्य वैभव पाने के बाद राव चूंडा ने आल्हा चारण पर ध्यान नहीं दिया। आल्हा ने राव चूंडा को एक दोहा कहकर ताना मारा, जिसके बाद रावजी को अपनी गलती का एहसास हुआ।
रावजी ने आल्हा को कुछ धन, कालाऊ गांव के निकट उत्तम किस्म की भूमि, 2 घोड़े और जनाना-मर्दाना सिरोपाव देकर विदा किया।
गुजरात की सेना का मंडोर पर आक्रमण :- इस समय दिल्ली में तुगलकों की शक्ति क्षीण होती जा रही थी। इसका फायदा उठाकर राव चूंडा ने अपने आसपास के क्षेत्रों में मुसलमानों को तंग करना शुरू कर दिया।
1396 ई. में गुजरात के जफ़र खां ने राव चूंडा की कार्रवाइयों से तंग आकर मंडोवर पर आक्रमण किया, लेकिन किले को जीतने में असफल होकर पुनः लौट गया।
इस असफलता को गुजरात की तवारीख में कुछ अलग तरीके से लिखा गया है। तवारीख-ए-गुजरात में लिखा है कि “मंडोर के राजा ने मुसलमानों को तंग करना शुरू किया, जिसका बदला लेने के लिए गुजरात के सुल्तान
जफ़र खां ने मंडोर की तरफ कूच किया। राजा मंडोर के किले में बैठा रहा। सुल्तान ने किले को घेर लिया। यह घेराबंदी एक साल से भी ज्यादा वक्त तक चली। फिर जब
किले में रसद ख़त्म हो गई, तो राजा ने किले से बाहर आकर कसम खाई कि अब से कभी मुसलमानों को नहीं सताऊंगा। राजा ने नज़राना भी दिया, जिसके बाद सुल्तान अजमेर चला गया।”
एक किंवदंती है कि मां चामुंडा की सहायता से राव चूंडा को कई घोड़े मिल गए, परन्तु इस कथा में कुछ सत्य नहीं है इसलिए इसका विस्तृत वर्णन यहां नहीं किया जा रहा। वास्तव में चूंडाजी ने घोड़े व्यापारियों से छीने थे, जिसका वर्णन पिछले भाग में किया जा चुका है।
राव चूंडा द्वारा राज्य विस्तार :- राव चूंडा ने कोटेचा पर आक्रमण किया और वहां के स्वामी भान राठौड़ को मारकर 35 गांवों पर अधिकार कर लिया। ख्यातों के अनुसार भान राठौड़ को एक नाई के ज़रिए धोखे से मरवाया गया।
राव चूंडा ने जांगलू के सांखलों, मोहिलों व भाटियों की कुछ भूमि पर अधिकार कर लिया। राव चूंडा ने चूंडासर नामक एक गांव बसाया व इसी नाम से एक तालाब भी बनवाया।
यह गांव बीकानेर में गजनेर के निकट स्थित है। कहा जाता है कि इस गांव में स्थित पहाड़ी पर 2 पाषाण स्तम्भ हैं, जिनका निर्माण राव चूंडा ने करवाया।
ख्यातों के अनुसार राव चूंडा ने खाटू, डीडवाना, सांभर और अजमेर पर भी अधिकार कर लिया। हालांकि ये इलाके कभी मुसलमान तो कभी राजपूतों के, बराबर एक दूसरे के कब्जे में आते-जाते रहे। अजमेर के छतारी गांव चूंडाजी के वंशज रहते आए हैं।
डीडवाना और सांभर की लड़ाइयों में राव चूंडा के भाइयों ने भी उनका सहयोग किया था, लेकिन उनके एक भाई जैसिंह/जयसिंह ने कोई मदद नहीं की। पुरोहित अक्खा ने राव चूंडा से कहा कि आपको फलौदी की जागीर छीन लेनी चाहिए।
जैसिंह फलौदी में जाडोला आदि कुल 55 गांवों के स्वामी थे। राव चूंडा ने जैसिंह से फलौदी की जागीर छीन ली। एक ख्यात के अनुसार राव चूंडा ने फलौदी का गढ़ घेर लिया।
तब जैसिंह अपने साथियों समेत किले से बाहर निकले और 84 राजपूतों समेत वीरगति को प्राप्त हुए। इस तरह रावजी ने फलौदी पर विजय प्राप्त की।
कुछ समय बाद राव चूंडा ने नाडौल पर भी अधिकार कर लिया। राव चूंडा ने अपने पिता राव वीरम की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए जोइयों पर भी आक्रमण किया। इस प्रकार राव चूंडा का प्रभाव मारवाड़ क्षेत्र में हर दिन बढ़ता जा रहा था।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)