मारवाड़ के राव वीरम राठौड़ के पुत्रों का इतिहास :- 1383 ई. में जोइयों से लड़ते हुए मारवाड़ के राव वीरम राठौड़ का देहांत हुआ, तब उनका रनिवास बडेरण नामक गाँव में था। राठौड़ राजपूत राव वीरम की पत्नी को साथ लेकर बडेरण से रवाना हुए और मार्ग में कहीं पड़ाव डाला।
धाय ने राव वीरम के एक वर्षीय पुत्र चूंडा को एक आक के पेड़ के नीचे सुलाया, लेकिन जब वहां से रवाना हुए, तब धाय चूंडा को उठाना भूल गई। एक कोस पर याद आया, तो हरिदास ने पीछे जाकर देखा कि एक सांप चूंडा पर छत्र की भांति फण फैलाकर छाया कर रहा है।
कुछ इसी प्रकार की घटना राणा सांगा के साथ भी हुई थी। हरिदास ने चूंडा को उठाया और उसकी माता की गोद में रख दिया। हरिदास द्वारा घटना बताए जाने पर सभी को विश्वास हुआ कि यह बालक छत्रधारी होगा।
पद्रोलायां नामक गाँव में पहुंचकर बालक चूंडा की माता ने कहा कि मेरे और रावजी (राव वीरम) के बीच दूरी बढ़ रही है, इसलिए मैं सती होउंगी।
उन्होंने बालक चूंडा को धाय को सौंपकर कहा कि “माता पृथ्वी और सूर्यदेव इसकी रक्षा करें, तू इस बालक को लेकर आल्हा चारण के पास चली जा”। फिर चूंडा की माता और माँगलियाणी दोनों सती हो गईं।
मुहणौत नैणसी के अनुसार राव वीरम राठौड़ की 4 रानियां थीं :- (1) भटियाणी जसहड़ राणा दे, जिनके पुत्र चूंडा हुए। (2) कान्ह केलणोत की पुत्री लाला माँगलियाणी, जिनके पुत्र सत्ता हुए। (3) चंदन आसराव रिणमलोत की पुत्री, जिनके पुत्र गोगादेव हुए।
(4) ऊगमसी सिखरावत की पुत्री इंदी लाछा, जिनके पुत्र देवराज व विजयराज हुए। बांकीदास री ख्यात के अनुसार राव वीरम सोढा राजपूतों के भाणेज थे। राव वीरम के 6 पुत्र हुए :- गोगादे, देवराज, जैसिंह, वीजो (विजयसिंह), चूंडा और पाची।
चूंडा के अन्य 3 भाइयों गोगादेव, देवराज और जैसिंह को उनके ननिहाल भेज दिया गया और चूंडा को आल्हा चारण के पास भेज दिया गया। वहां धाय चूंडा को सदा गुप्त रखकर पालन-पोषण करती थी।
राव वीरम के पुत्र देवराज राठौड़ का अधिकार सेतरावा व उसके आसपास के 24 गांवों पर था। एक बार सेतरावा पर नागौर के मुसलमानों ने हमला किया था, तब देवराज जी ने बड़ी वीरता से उनका सामना किया।
देवराज जी राव वीरम के ज्येष्ठ पुत्र थे। देवराज जी के वंशज देवराजोत राठौड़ कहलाए। देवराज जी के 6 पुत्र हुए :- राजो, चाहड़देव, मोकल, खींवकरण, मेहराज व दुर्जनसाल। चाहड़देव के वंशज चाहड़देवोत कहलाए।
राव वीरम के पुत्र गोगादेव का जन्म 1378 ई. में हुआ था। ये कुंडल के भाटी शासक वैरीसाल के दौहित्र थे। गोगादेव ने आसायच राजपूतों को परास्त किया। गोगादेव ने सेखाला और उसके आसपास के 27 गांवों पर अधिकार कर लिया।
गोगादेव पर लिखे गए रूपक के अनुसार गोगादेव ने अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए जोइयों पर आक्रमण करके दल्ला जोइया को मार दिया। फिर दल्ला के भतीजे देपालदेव, धीरा आदि ने गोगादेव को मार दिया। गोगादेव के वंशज गोगादे राठौड़ कहलाए।
ढाढ़ी जाति के बहादर नामक कवि ने वीरमायण नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में रावल मल्लीनाथ, राव जगमाल व राव वीरम का वर्णन है। इस ग्रंथ में लिखा है कि “राव वीरम के पुत्र गोगादेव ने अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए जोइयों पर आक्रमण किया, जिसमें गोगादेव वीरगति को प्राप्त हुए।”
गोगादेव का विस्तृत वर्णन कुछ इस तरह है कि वे थलवट में रहते थे। वहां अकाल पड़ा, तो गोगादेव का चाकर तेजा राठौड़ भी वहां से चला गया और वर्षा होने पर वापिस लौटा।
मार्ग में मीतासर में स्थित तालाब में नहाने गया, तब उस पर मोहिल चौहानों ने हमला किया, जिससे उसकी पीठ चीर गई। तेजा घायलावस्था में गोगादेव के पास पहुंचा, तो गोगादेव ने अपने सैनिकों समेत मोहिलों पर चढ़ाई की।
उस दिन वहां बहुत सी बारातें आई थीं, तो लोगों ने सोचा कि यह भी कोई बारात है। द्वादशी के दिन प्रातःकाल ही गोगादेव ने मोहिल राणा माणकराव पर चढ़ाई की। कई मोहिल मारे गए व राणा को जान बचाकर लौटना पड़ा। गोगादेव ने प्रतिशोध स्वरूप 27 बारातें लूट लीं।
कुछ वर्ष बाद गोगादेव ने अपने पिता राव वीरम की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए जोइयों पर चढ़ाई की। जोइयों को हमले की सूचना मिली, तो वे भी एकत्र हुए। गोगादेव ने अपना एक गुप्तचर वहां छोड़ दिया और स्वयं 20 कोस पीछे लौट गए।
जोइयों को लगा कि गोगादेव चले गए हैं, तो वे भी लौट आए। गुप्तचर ने गोगादेव को दल्ला जोइया व उसके बेटे धीरदेव का पता बताया। गोगादेव, ऊदा आदि ने जोइयों पर हमला किया। गोगादेव ने दल्ला जोइया को मार दिया।
इस हमले के वक्त धीरदेव वहां मौजूद नहीं था। वह पूगल के राव राणगदे भाटी के यहां विवाह करने गया था। गोगादेव के पुत्र ऊदा ने रात के अंधेरे में धीरदेव पर हमला करने के लिए उसके कक्ष में प्रवेश किया और पलंग पर सो रही धीरदेव की पुत्री को धीरदेव समझ कर वार किया, जिससे भूलवश उस निर्दोष कन्या की हत्या हो गई।
दल्ला के भतीजे हासू ने पूगल जाकर यह सूचना धीरदेव को दी, तो धीरदेव व राणगदे भाटी फौज समेत रवाना हुए। इस समय गोगादेव पदरोला गांव में थे, जहां उनके व उनके साथियों के घोड़े खुले में चर रहे थे। भाटियों व जोइयों ने घोड़ों को पकड़ लिया। फिर दोनों पक्षों में युद्ध हुआ।
इस लड़ाई में गोगादेव की दोनों जांघें कट गईं। गोगादेव के पुत्र ऊदा भी गिर पड़े। बहादुर गोगादेव ने इस अवस्था में भी राणगदे भाटी और धीरदेव को ललकारा। राणगदे तो गोगादेव को गाली देकर लौट गए, लेकिन धीरदेव लड़ने को आया।
गोगादेव ने ज़मीन पर पड़े-पड़े ही धीरदेव पर तलवार से ऐसा वार किया कि धीरदेव लहूलुहान होकर गिर पड़ा। धीरदेव ने कहा कि “हमारा बैर तो मिट गया, क्योंकि हम दोनों ने एक-दूसरे को मार दिया।”
गोगादेव ने चिल्लाकर कहा कि “अब से राठौड़ों और जोइयों का बैर समाप्त हुआ, लेकिन भाटियों से बदला लेना शेष है। आशा है कि इस काम को मेरे वंश का कोई न कोई सुपुत्र जरूर पूरा करेगा।”
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
Sri tanveer singh ji
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