14वीं सदी की घटना :- जगमाल (राव मल्लीनाथ राठौड़ के पुत्र) व हेमा में टकराव होता रहा, जिसके चलते हेमा वहां से चले गए और घुघरोट के पहाड़ी इलाके के 140 गांवों पर अधिकार कर लिया। हेमा बागी बन गए और उनके उपद्रव से डरकर कई लोग जैसलमेर में जा बसे।
फिर जब राव मल्लीनाथ शरीर से निर्बल हुए, तब हेमा ने महेवा पर हमले करना शुरू कर दिया। राव मल्लीनाथ ने सभी सरदारों को अपने पास बुलाया और कहा कि “मेरे मरने के बाद हेमा यहां हमला जरूर करेगा। है कोई जो उससे मुकाबला कर सके ?”
सरदारों की चुप्पी के बीच राव मल्लीनाथ के पौत्र व जगमाल के पुत्र कुम्भा ने ऊंचे स्वर में कहा कि “जब तक मैं हेमा को मारने में सफल नहीं हो जाता, तब तक उसके द्वारा किए गए नुकसान का ग्यारह गुना भरता रहूंगा”
यह सुनकर राव मल्लीनाथ ने प्रसन्न होकर अपनी कटार व तलवार कुम्भा को दे दी और कुछ समय बाद अपने प्राण त्याग दिए। राव मल्लीनाथ बड़े ही पराक्रमी थे।
उन्होंने महेवा का सारा प्रदेश अपने अधिकार में ले लिया था, जो उनके बाद ‘मालानी’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। मालानी पर राव मल्लीनाथ जी के वंशजों का अधिकार रहा।
राव मल्लीनाथ ने ‘रावल’ की उपाधि धारण की और उनके वंशज भी इसी उपाधि से जाने गए। वर्तमान में जोधपुर का जो राजवंश है, वो इन्हीं मल्लीनाथ जी के छोटे भाई वीरम के वंशज हैं। मुहणौत नैणसी के अनुसार राव मल्लीनाथ के पुत्र जगमाल राजगद्दी पर बैठे।
कुम्भा द्वारा हेमा को मारने का रोचक वर्णन :- कुम्भा ने हेमा को मारने के बड़े प्रयास किए। हेमा को भी यह अंदेशा होने लगा कि कहीं कुम्भा अपने उद्देश्य में सफल न हो जाए, इसलिए हेमा हर वक्त सचेत रहते थे।
हेमा के मन में कुम्भा का आतंक इस कदर बैठ गया कि उन्होंने शांत बैठना ही उचित समझा। कुम्भा की बहादुरी की बातें सुनकर अमरकोट के राव मांडण सोढा ने अपनी पुत्री का विवाह कुम्भा से करवाने का विचार करके एक ब्राह्मण को कुम्भा के पास भेजा।
कुम्भा ने विवाह प्रस्ताव स्वीकार किया, लेकिन यह कहलाया कि मैं अभी अमरकोट आकर विवाह नहीं कर सकता, क्योंकि अगर मैं वहां आया तो हेमा फिर से महेवा में आतंक मचाएगा।
राणा मांडण ने विचार किया कि ऐसे वीर पुरुष से अपनी पुत्री का विवाह करवाने के लिए अगर मुझे अपनी पुत्री के साथ वहां जाना पड़े, तब भी कुछ अनुचित नहीं। राणा मांडण बिना किसी धूमधाम के वहां पहुंचे और अपनी पुत्री का विवाह कुम्भा से करवा दिया।
विवाह के तुरंत बाद ख़बर पहुँची कि हेमा ने फिर से आतंक मचाना शुरू कर दिया है, यह ख़बर सुनते ही कुम्भा फ़ौरन घोड़े पर सवार हुए। रायसिंह भी कुम्भा के साथ हो लिए। रायसिंह की सलाह से कुम्भा ने महेवा की बजाय घुघरोट पर धावा बोला।
घुघरोट के निकट पहुँचने पर एक पनिहारिन से मुलाकात हुई। पनिहारिन ने कहा कि हेमा तो वैसे भी आपसे भागता रहता है, भागने वाले को क्या मारना। इस पर कुम्भा ने कहा कि मैंने हेमा को मारने का प्रण ले रखा है।
कुम्भा और रायसिंह ने अपने घोड़े वहीं छोड़कर 2 कोस तक पैदल जाना तय किया। फिर देखा कि हेमा अपने साथियों के साथ भोजन कर रहे हैं।
हेमा ने कहा कि “शाबाश कुम्भा, तुमने मेरा पीछा कर ही लिया। दूसरों को इस लड़ाई में उतारने का कोई अर्थ नहीं। ये मुकाबला तेरे और मेरे बीच का है।”
कुम्भा अपने घोड़े से उतरने लगे कि तभी रायसिंह ने उनको रोका और कहा कि “घोड़े से क्यों उतरते हो, हेमा और इसके साथियों के लिए तो मैं ही काफी हूँ।”
कुम्भा ने कहा कि “रावल मल्लीनाथ जी की आण (सौगंध) है अगर मुझे रोका तो”। कुम्भा तलवार लेकर हेमा के पास गए। हेमा ने कहा कि “मैं बहुत लड़ चुका, तू अभी बालक है, इसलिए पहला वार तू कर”
कुम्भा ने कहा कि “हेमाजी, उम्र में भले ही आप मुझसे बड़े हो, लेकिन पद में मैं आपसे बड़ा हूँ, इसलिए पहला वार आप करिए।”
हेमा ने कुम्भा पर वार किया, जिससे कुम्भा की खोपड़ी का एक हिस्सा कट गया, लेकिन तुरंत ही सम्भलते हुए हेमा पर तलवार का जोरदार प्रहार किया, जिससे हेमा गिर पड़े। फिर कुम्भा ने कटारी निकाली और हेमा की छाती में इतनी ज़ोर से मारी कि कटारी की ताड़ियाँ टूट गईं।
इसके बाद हेमा में तो कुछ देर प्राण शेष रहे, परन्तु खोपड़ी के घाव के कारण कुम्भा ने ये कहते हुए प्राण त्याग दिए कि “जो राजपूत मेरे प्रण पर पर हसंते थे, उनसे कहना कि कुम्भा की कटारी की ताड़ियाँ हेमा की छाती में टूटी हैं।”
इसी समय राव जगमाल भी वहां आ पहुंचे। तब हेमा ने अपने साथियों से कहा कि “जगमाल से कहो कि वहीं रुक जाए और एक घड़ी तक मेरे पास न आवे”। यह सुनकर राव जगमाल ने पुछवाया कि इसका कारण क्या है।
तो हेमा ने कहा कि “जगमाल, तुमसे दो अपराध हुए हैं। पहला ये कि तुम्हारे झूठ के कारण मुझे वर्षों तक विद्रोही बनकर रहना पड़ा। अगर ऐसा न होता, तो मेरे द्वारा छीनी हुई भूमि के 140 गांव भी महेवा के राज्य में मिल जाते और हमारा राज्य कितना शक्तिशाली बन जाता।
दूसरा ये कि तुमने कुम्भा की माता को कभी अपने महल में प्रवेश नहीं करवाया, यदि तुमने ऐसा किया होता, तो बहादुर कुम्भा जैसे और 2-4 पुत्र होते, जिनसे तुम्हारा और राज्य का बड़ा नाम होता।
इतना कहकर हेमा ने भी अपने प्राण त्याग दिए। राव जगमाल को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने घोड़े से नीचे उतारकर हेमा व अपने पुत्र कुम्भा का दाह-संस्कार किया और फिर हेमा के पुत्र को अपने साथ महेवा ले गए।
कुम्भा के पीछे उनकी नवविवाहिता रानी सोढा सती हो गईं। मुहणौत नैणसी की ख्यात के अनुसार राव जगमाल राठौड़ की चौहान रानी से उनके तीन पुत्र मंडलीक, भारमल व रणमल हुए।
जब राव जगमाल ने दूसरा विवाह किया, तब चौहान रानी रूठकर महेवा के निकट तलवाड़ा चली गईं। राव जगमाल उन्हें मनाने भी गए, पर वह न मानीं और अपने पीहर बाड़मेर में रहने लगी। फिर राव जगमाल के आदमी चौहानों को उजाड़ने लगे।
बाड़मेर के स्वामी सूजा चौहान ने अपने भाणजों से कहा कि तुम कहीं और जाकर रह लो, पर वे न माने। सूजा ने मंडलीक के घोड़ों की पूंछें काट डालीं। इस वजह से मंडलीक को अपने मामा सूजा पर बड़ा क्रोध आया।
मंडलीक ने सूजा को उसके साथियों समेत मार दिया और बाड़मेर व कोटड़ा छीनकर राव जगमाल को सूचना दी। राव जगमाल बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने मंडलीक को महेवा, भारमल को बाड़मेर व रायमल को कोटड़ा दे दिया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
Aapne Rajputaane ka Itihash sabko bataya iske liye dhnyvaad 2_- 3 part dala karo 1 din m