मारवाड़ नरेश राव त्रिभुवनसी राठौड़ :- मुहणौत नैणसी लिखते हैं कि “राव कान्हड़देव का देहांत हो गया और उसका पुत्र त्रिभुवनसी उसका उत्तराधिकारी हुआ। फिर माला महेवा लौट आया। त्रिभुवनसी ने अपने राजपूतों को
एकत्र कर माला से लड़ाई लड़ी, लेकिन त्रिभुवनसी को हारकर अपने ससुराल में शरण लेनी पड़ी। माला ने त्रिभुवनसी के भाई पद्मसिंह को राजगद्दी का लालच देकर त्रिभुवनसी को मारने भेजा। पद्मसिंह ने अपने भाई
त्रिभुवनसी के घावों पर विष की पट्टी चढ़वा दी, जिससे त्रिभुवनसी की मृत्यु हो गई। इस हत्या के बाद जब पद्मसिंह माला के पास गया, तो माला ने उसे सिर्फ दो गांव देकर टाल दिया।”
जोधपुर राज्य की ख्यात में त्रिभुवनसी को कान्हड़देव का भाई लिखा गया है और साथ ही यह भी लिखा है कि मल्लीनाथ ने जालोर के मुसलमानों की सहायता से कान्हड़देव को मारकर महेवा का राज्य ले लिया।
राव त्रिभुवनसी, राव सलखा व राव मल्लीनाथ का समयकाल 1360-1370 ई. के आसपास का था। हालांकि मारवाड़ की वंशावली में त्रिभुवनसी का नाम नहीं मिलता है।
राव सलखा राठौड़ :- ये राव टीडा के पुत्र थे। मुहणौत नैणसी के अनुसार राव सलखा के कोई पुत्र नहीं था, इसलिए वे एक योगी के पास गए। योगी के आशीर्वाद से राव टीडा को एक ही रानी से 4 पुत्र हुए।
राव सलखा का एक विवाह मंडोवर के पड़िहार राणा रूपडा की पुत्री से हुआ। जोधपुर राज्य की ख्यात के अनुसार राव सलखा की 2 रानियों से 4 पुत्र हुए।
इन 4 पुत्रों के नाम मल्लीनाथ, जैतमल, वीरम और शोभित रखे गए। राव सलखा की एक पुत्री विमली हुई, जिनका विवाह जैसलमेर के रावल घडसी भाटी से हुआ।
राव सलखा के पुत्र जैतमल/जैतमाल जी से संबंधित जानकारी :- दयालदास री ख्यात के अनुसार मल्लीनाथ ने समियाणा व सिंघाड़ा विजय करके अपने भाई जैतमल को जागीर में दे दिए। जोधपुर राज्य की ख्यात के अनुसार जैतमाल जी के वंशज जैतमालोत कहलाए।
जैतमाल जी के 6 पुत्र हुए :- (1) हापा, जिनके वंशज धवेचा कहलाए। (2) खीवा/खीवकरण, जो बड़े पराक्रमी हुए, उन्होंने सोढा को मारकर राडधरा के 48 गांवों पर अधिकार जमा लिया। इनके वंशज राडधरा कहलाए।
(3) जीवा (4) लूढा (5) बीजड़ (6) खेतसी। बांकीदास री ख्यात के अनुसार जैतमाल जी के 12 पुत्र हुए। ख्यातों में राव सलखा के पुत्र राव मल्लीनाथ के गद्दी पर बैठने का उल्लेख मिलता है।
राव मल्लीनाथ राठौड़ :- राव मल्लीनाथ के भाई वीरम व शोभित भी महेवा के पास ही ठिकाने स्थापित करके रहने लगे। मुहणौत नैणसी के अनुसार राव मल्लीनाथ ने मांडू के बादशाह को शिकस्त दी।
नैणसी का यह कथन बिल्कुल गलत है, क्योंकि मांडू की बादशाहत की बुनियाद दिलावर गौरी ने 1403 ई. में रखी थी और उस समय मारवाड़ पर राव मल्लीनाथ का नहीं, बल्कि राव चूंडा का राज था।
ख्यातों में राव मल्लीनाथ के समयकाल का वर्णन अलाउद्दीन खिलजी से जोड़कर खिलजियों से लड़ाई लड़ने का वर्णन लिखा है, जो कि काल्पनिक है, क्योंकि दोनों के समयकाल में लगभग 80 वर्षों का अंतर था।
जोधपुर राज्य की ख्यात के अनुसार राव मल्लीनाथ के 9 पुत्र हुए, जिनके नाम कुछ इस तरह हैं :- जगमाल, जगपाल, कूपा, मेहा, चूड़राव, अड़वाल, उदैसी, अरड़कमल व हरभू।
एक दिन जगमाल, हेमा सीमालोत व रावल घड़सी बरसात के मौसम में कहीं जा रहे थे कि उनकी नज़र एक लड़की पर पड़ी, जो बड़ी बहादुर व हिम्मत वाली प्रतीत हो रही थी।
पूछने पर मालूम हुआ कि वह पहाड़ी राजपूतों में रहने वाली ग्रामीण सोलंकी राजपूतानी है। लड़की के पिता से बातचीत करके जगमाल का विवाह उस कुमारी से करवा दिया गया। इस विवाह से जो पुत्र हुआ, उसका नाम कुम्भा रखा गया।
जगमाल उस राजपूतानी को अपने महल नहीं लाए। कुम्भा का पालन-पोषण भी अपनी माता के यहीं हुआ। इस समय दिल्ली पर तुगलक वंश का राज था। सुल्तान ने एक फ़ौज महेवा पर आक्रमण करने हेतु रवाना की।
राव मल्लीनाथ ने अपने सरदारों से मंत्रणा की, तो सबने कहा कि इस समय मुसलमानों की इस बड़ी फ़ौज से लड़ पाना सम्भव नहीं है। हेमा सीमालोत ने कहा कि रात के वक्त मुसलमानों की फ़ौज पर छापा मारना चाहिए।
राव मल्लीनाथ को यह राय पसंद आई और उन्होंने अपने सरदारों को उनकी फ़ौजी टुकड़ियों सहित छापामार आक्रमण करने का आदेश दिया। जब तुगलक की सेना महेवा पहुंची, तब राठौड़ों ने रात के वक्त आक्रमण करने हेतु कूच किया।
जगमाल मालावत, कृपा मालावत व हेमा ने तुगलक के सेना के अफ़सर का तंबू ढूंढकर उस पर हमला करना तय किया। हेमा ने मुसलमान सेनानायक के तंबू का थम्भा तोड़कर उस सेनानायक को मारकर उसका टोप छीन लिया।
सेनानायक के मरते ही तुगलक की फ़ौज भाग निकली। विजयी होकर सब राठौड़ सरदार राव मल्लीनाथ के दरबार में हाजिर हुए, तब जगमाल ने दावा किया कि उस मुसलमान सेनानायक को मैंने मारा है।
हेमा ने कहा कि अगर उसको तुमने मारा है, तो कोई निशानी बताओ। जगमाल कोई निशानी नहीं बता सके, तब हेमा ने उस मुसलमान सेनानायक का टोप राव मल्लीनाथ के समक्ष रख दिया।
इससे आगे का वर्णन अगले भाग में किया जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)