मारवाड़ नरेश राव छाड़ा राठौड़ (शासनकाल 1328 से 1344 ई. तक) :- इनके पिता राव जालणसी थे। बांकीदास री ख्यात के अनुसार राव छाड़ा गुहिल राजपूतों के भाणेज थे। राव छाड़ा की माता गोहिल गोदा गजसिंहोत की पुत्री रानी स्वरूपदे थीं।
राव छाड़ा अपने पिता के देहांत के बाद 1328 ई. में मारवाड़ में स्थित खेड़ की गद्दी पर विराजमान हुए। राव छाड़ा मारवाड़ के राठौड़ वंश के 7वें शासक थे।
जोधपुर राज्य की ख्यात में लिखा है कि “मृत्यु के समय राव जालणसी ने अपने पुत्र छाड़ा से कहा था कि अमरकोट के दुर्जनसाल सोढा से वसूली जरूर करना। राव छाड़ा ने सोढा राजपूतों से चार गुना घोड़े और चार गुना
धन वसूल किया। फिर उसने जैसलमेर के भाटियों से कहलाया कि गढ़ के बाहर गांव बसाया है, इसलिए हमें अपनी बेटी ब्याह दो। भाटियों ने इसे अस्वीकार किया, तो राव छाड़ा ने जैसलमेर पर चढ़ाई की और रावल की बेटी से विवाह किया।”
ख्यातों में पक्षपात का मिलना स्वाभाविक होता है और जब दो राज्यों की ख्यातें विपरीत बातें लिखें, तो सत्य तक पहुंचना और भी मुश्किल हो जाता है। जैसलमेर की ख्यात ठीक इससे विपरीत बात लिखती है।
जैसलमेर की तवारीख में लक्ष्मीचंद ने लिखा है कि “जैसलमेर के रावल चाचिगदेव भाटी के सामने हाजिर होकर सोढा राजपूतों ने अर्ज़ किया कि राठौड़ों ने गुहिलों से खेड़ छीन लिया है और हमसे भी अदावत रखते हैं। यह
अर्ज़ सुनकर रावल चाचिगदेव फ़ौज समेत खेड़ पहुंचे, तो राव छाड़ा ने अपने पुत्र कुँवर टीडा की सलाह से रावल चाचिगदेव को फ़ौज खर्च दिया और अपनी बेटी भी उनके साथ ब्याह दी।”
दोनों रियासतों के अलावा किसी तीसरी रियासत के इतिहास से इस घटना का ज़िक्र लिया जावे, तो मेवाड़ के ग्रंथ वीरविनोद में जैसलमेर वालों की ख्यात को सही ठहराया गया है और लिखा है कि
“भाटी और सोढा राजपूतों ने मिलकर खेड़ पर चढ़ाई की और राव छाड़ा से दंड वसूल करके भाटी नरेश ने राव छाड़ा की पुत्री से विवाह किया।”
कर्नल जेम्स टॉड ने भी जैसलमेर के पक्ष में ही लिखा है। जेम्स टॉड ने लिखा है कि “राव छाड़ा अपने पड़ोसी राज्य जैसलमेर के लिए काफ़ी कष्टदायक थे। इसलिए चाचिग ने
उन्हें दंड देने के लिए सोढा राजपूतों की सहायता प्राप्त की और राव छाड़ा के राज्य की तरफ कूच किया। राव छाड़ा व उसके पुत्र टीडा ने एक कन्या का विवाह चाचिग से करवाकर उसका क्रोध शांत किया।”
लेखक का निजी विचार है कि जैसलमेर की तवारीख की बात उचित प्रतीत होती है। क्योंकि जैसलमेर के भाटी लंबे समय से राज कर रहे थे व काफी शक्तिशाली प्रभाव जमा चुके थे। ऐसे में उनका बल और भी बढ़ गया, जब सोढा राजपूतों से गठबंधन हो गया।
महेवा पर मुसलमानों का हमला :- ख्यातों में लिखा है कि किसी मुसलमान सेनापति ने महेवा पर कब्ज़ा कर लिया, जिससे राव छाड़ा को कुछ दिनों के लिए महेवा छोड़ना पड़ा। फिर जब वह मुसलमान सेनापति मर गया, तो राव छाड़ा ने पुनः महेवा पर आक्रमण करके वहां विजय प्राप्त कर ली।
वीरविनोद में राव छाड़ा के बारे में लिखा है कि “उन्होंने महेवा को अपनी राजधानी बनाई, देवड़ा राजपूतों को परास्त किया और बालेसा राजपूतों पर भी फ़तह हासिल की।” वीरविनोद का यह कथन महत्वपूर्ण है कि महेवा को राव छाड़ा ने अपनी राजधानी बनाई।
दयालदास की ख्यात में राव छाड़ा द्वारा भीनमाल के सोनगरा चौहानों से लड़ते हुए वीरगति पाना लिखा है, जो कि गलत है। क्योंकि भीनमाल पर उस समय मुसलमानों का कब्ज़ा था।
वीरविनोद में राव छाड़ा का मुसलमानों के हाथों से मारा जाना लिखा है। लेकिन वीरविनोद का यह कथन गलत है, क्योंकि राव छाड़ा राजपूतों की आपसी लड़ाई में ही वीरगति को प्राप्त हुए थे।
विश्वेश्वर नाथ रेउ ने लिखा है कि “भाटियों से सुलह हो जाने के बाद राव छाड़ा ने पाली, सोजत, भीनमाल जालोर पर चढ़ाई करके इन प्रदेशों लूटा। फिर रावजी जालोर के
रामा गांव में पहुंचे, जहां सोनगरा और देवड़ा चौहानों ने मिलकर इन पर अचानक हमला कर दिया, जिनसे लड़ते हुए राव छाड़ा 1344 ई. में स्वर्ग सिधारे।”
रेउ साहब की बात में अतिशयोक्ति अवश्य है, परन्तु इसमें कुछ सत्यता भी है। किसी और पुस्तक में राव छाड़ा के देहांत का वर्ष सही नहीं होने से रेउ साहब द्वारा लिखित वर्ष 1344 को ही सही माना जाना चाहिए। इस प्रकार राव छाड़ा ने लगभग 16 वर्षों तक शासन किया।
राव छाड़ा राठौड़ के पुत्रों का वर्णन :- जोधपुर राज्य की ख्यात के अनुसार राव छाड़ा राठौड़ के 7 पुत्र हुए, जिनका संक्षिप्त वर्णन कुछ इस तरह है :- (1) राव टीडा, जो कि राव छाड़ा के उत्तराधिकारी हुए। (2) खोखर, जिनके वंशज खोखर राठौड़ कहलाए।
(3) वानर, जिनके वंशज वानर राठौड़ कहलाए। (4) सीमाल/सीहमल, जिनके वंशज सीहमलोत राठौड़ कहलाए। (5) रुद्रपाल (6) खींपसा (7) कान्हड़दे। मुहणौत नैणसी, दयालदास व बांकीदास ने राव छाड़ा के केवल ही पुत्र राव टीडा का नाम लिखा है।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)