मारवाड़ नरेश राव कन्हपाल राठौड़ :- ये राव रायपाल राठौड़ के पुत्र थे। राव कन्हपाल मारवाड़ के 5वें शासक थे। इनका एक नाम कान्ह भी था। ये अपने पिता के देहांत के बाद 1313 ई. में खेड़ की गद्दी पर बैठे।
बांकीदास री ख्यात के अनुसार राव कन्हपाल भाटी राजपूतों के भाणेज थे। जोधपुर राज्य की ख्यात व बांकीदास री ख्यात के अनुसार राव कन्हपाल के 3 पुत्र हुए :- (1) भीमकरण (2) जालणसी (3) विजयपाल।
मुहणौत नैणसी व बांकीदास के अनुसार राव कन्हपाल का विवाह सिरोही के देवड़ा सलखा जी (लुम्भावत जी के पुत्र) की पुत्री से हुआ, जिनका नाम राजकुमारी कल्याणदे था। इन रानी से उक्त तीनों पुत्रों का जन्म हुआ।
राठौड़ों व भाटियों के बीच हुआ काक नदी का युद्ध :- राज्यों की सीमाएं छूने की वजह से मारवाड़ के राठौड़ व जैसाण के भाटी राजपूतों के बीच संघर्ष का सूत्रपात हुआ। भाटी राजपूतों का पलड़ा भारी था, क्योंकि उन्हें यहां राज करते-करते काफी समय हो चुका था।
राव कन्हपाल राठौड़ ने अपने ज्येष्ठ पुत्र कुँवर भीमकरण राठौड़ को भाटी राजपूतों से युद्ध लड़ने हेतु सेना सहित विदा किया। भीमकरण जैसलमेर में लोद्रवा के निकट काक नदी के किनारे भाटी राजपूतों से हुए युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए।
भीमकरण तो वीरगति को प्राप्त हो गए, परन्तु इस युद्ध से जैसलमेर व खेड़ राज्यों की सीमाएं तय हो गई। यह तय किया गया कि काक नदी का पूर्वी तट राठौड़ों का व पश्चिमी तट भाटियों का रहेगा।
इस संबंध में यह दोहा प्रसिद्ध है :- आधी धरती भीम, आधी लोदरवे धणी। काक नदी छै सीम, राठौड़ा ने भाटिया।। विश्वेश्वर नाथ रेउ के अनुसार भीमकरण ने जैसलमेर के भाटियों पर 2 बार चढ़ाई की थी, दूसरी चढ़ाई में वे वीरगति को प्राप्त हुए।
राव कन्हपाल राठौड़ का वीरगति पाना :- फिर जैसलमेर के भाटियों ने पुनः खेड़ पर धावे किए, तो राव कन्हपाल ने जैसलमेर की तरफ चढ़ाई की, लेकिन मार्ग में ही मुसलमानों से लड़ाई हो गई, जिसमें वे वीरगति को प्राप्त हुए।
राव कन्हपाल के देहांत का वर्ष स्पष्ट नहीं है, परन्तु अनुमानित किया जाता है कि उनका देहांत 1323 ई. के करीब हुआ होगा। इनका शासनकाल लगभग 10 वर्ष का रहा। राव कन्हपाल के देहांत के बाद उनके दूसरे पुत्र जालणसी उनके उत्तराधिकारी हुए।
मारवाड़ नरेश राव जालणसी राठौड़ :- ये राव कन्हपाल राठौड़ व रानी कल्याणदे देवड़ी के पुत्र थे। राव जालणसी मारवाड़ के राठौड़ वंश के छठे शासक थे।
सोढा राजपूतों से जुर्माना वसूलना :- जोधपुर राज्य की ख्यात के अनुसार राव जालणसी ने चांदणी गांव में एक वृक्ष को अमर किया था अर्थात यह आदेश दिया था कि उस वृक्ष के फल, फूल, पत्ते, शाखा आदि कोई ना तोड़े।
यह बात अमरकोट के सोढा राजपूतों को पता चली, तो उन्होंने उस वृक्ष के फल तोड़ लिए। राव जालणसी ने सोढा राजपूतों के डेरों पर आक्रमण करके उनके स्वामी गागा से दंड (जुर्माना) वसूल किया और अन्य गांवों से भी दंड वसूला।
राव जालणसी ने सोढा राजपूतों के इन गांवों से दंड वसूल किया :- काहराव, कोहर, दीलाहर, सतेहर, खुड़िया, पाचल, कीतल आदि।
इस समय जालोर व नागौर में कई पठान हाकिम तैनात थे। इन्हीं में से एक हाजी खां पठान ने राव जालणसी के राज्य के कुछ हिस्सों में लूटमार करनी शुरू की। इसका पता राव जालणसी को चला, तो वे खेड़ से रवाना हुए और हाजी खां का सामना किया।
दोनों सेनाओं के बीच हुई लड़ाई में राव जालणसी विजयी रहे व हाजी खां मारा गया। 1328 ई. में हाजी खां की मौत का बदला लेने के लिए पठानों ने फिर से राव जालणसी पर आक्रमण किया, जिसमें राव जालणसी वीरगति को प्राप्त हुए।
इस प्रकार राव जालणसी का शासनकाल लगभग 5 वर्षों का रहा। राव दुर्जनसाल सोढ़ा ने राव जालणसी को वादा किया था कि वे जल्द ही कुछ घोड़े भेंट करेंगे, लेकिन राव जालणसी के देहांत तक भी उनको घोड़े भेंट नहीं किए गए।
राव जालणसी ने अपने देहांत से पहले अपने पुत्र से कहा था कि सोढा राजपूतों से वसूली की जावे। राव जालणसी की 3 रानियां थीं, जिनमें से एक गुहिल गोदा गजसिंहोत की पुत्री राजकुमारी स्वरूपदे थीं। राव जालणसी के 3 पुत्र हुए।
पुत्रों के नाम छाड़ा, भाखरसी व डूंगरसी थे। किसी-किसी ख्यात में राव जालणसी द्वारा पालनपुर पहुंचकर हाजी मलिक को मारना लिखा है, क्योंकि हाजी मलिक ने राव जालणसी के काका को मार दिया था।
मुल्तान से चौथ वसूली :- कुछ ख्यातों में राव जालणसी द्वारा मुल्तान से चौथ वसूली करना लिखा है, परन्तु डॉ. ओझा इस बात से असहमत हैं। उनका कहना है कि इस समय तक राठौड़ इतने अधिक सक्षम नहीं हुए थे कि मुल्तान से चौथ वसूली कर सके।
राव कन्हपाल व राव जालणसी का इतना ही इतिहास मिलता है। राव जालणसी के ज्येष्ठ पुत्र राव छाड़ा उनके उत्तराधिकारी हुए।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)