मारवाड़ के राठौड़ वंश की उत्पत्ति के दो मत हैं। पहला और सबसे प्रसिद्ध व प्रचलित मत ये है कि कन्नौज के राजा जयचंद की तीसरी पीढ़ी में राव सीहा राठौड़ हुए, जिन्होंने मारवाड़ के राठौड़ वंश की स्थापना की।
इस सिद्धांत के अनुसार राठौड़ व गहड़वाल एक ही वंश है। इस मत के अनुसार राठौड़ व गहड़वाल दोनों ही सूर्यवंशी हैं। वर्तमान में सभी राठौड़ स्वयं को सूर्यवंशी ही मानते हैं।
दूसरा मत राठौड़ों का सम्बंध राष्ट्रकूटों से जोड़ते हुए बदायूं शाखा से मारवाड़ के राठौड़ वंश की उत्पत्ति बताता है। इस मत के समर्थक डॉ. ओझा हैं। इस मत को माना जाए, तो राठौड़ व गहड़वाल दोनों ही अलग-अलग वंश होते हैं।
राष्ट्रकूटों ने अपने शिलालेखों में स्वयं को चंद्रवंशी लिखा है, इसलिए इस मत के अनुसार राठौड़ चंद्रवंशी व गहड़वाल सूर्यवंशी होते हैं। परन्तु ऐसे कई भाट भी हुए, जिन्होंने राष्ट्रकूटों का सम्बंध राठौड़ों के पूर्वजों के रूप में स्थापित तो किया है, परन्तु फिर भी उन्हें सूर्यवंशी ही बतलाया है।
राजपूताने में भाटों का लिखा अधिक माना जाता है, इसलिए कुछ लेखक ऐसे भी हैं जिन्होंने बदायूं शाखा से उत्पत्ति के सिद्धांत को मानने के बावजूद भी राठौड़ों को सूर्यवंशी माना है।
मारवाड़ के राठौड़ वंश की उत्पत्ति व राठौड़-गहरवार के बीच संबंधों पर विख्यात इतिहासकार डॉ. ओझा का लेख महत्वपूर्ण है। इस लेख के कुछ महत्वपूर्ण अंश इस तरह हैं :-
“राठौड़ और गहरवार को एक ही वंश मानने की अवधारणा की उत्पत्ति चंदबरदाई कृत पृथ्वीराज रासो से हुई है। फिर रासो के आधार पर कर्नल जेम्स टॉड व भाटों ने भी यही मान लिया।
इन सबका परिणाम यह हुआ कि वर्तमान राठौड़ स्वयं को कन्नौज के गहड़वाल/गहरवार के राजा जयचंद का वंशज मानते हैं। कुछ समय पहले तक मैं (डॉ. ओझा) भी राठौड़ों को गहरवारों का वंशज ही मानता था।
लेकिन इतिहास में शोध की वृद्धि के बाद कई नई बातें सामने आई, जिससे मुझे अपना पूर्वमत बदलना पड़ा। राजा जयचंद के पुत्र हरिश्चंद्र का 1196 ई. का एक शिलालेख मिला है, लेकिन राजपूताने की बहियों में हरिश्चंद्र का नाम नहीं लिखा गया।
राष्ट्रकूटों (राठौड़ों) का प्रतापी राज्य दक्षिण में रहा। सोलंकियों द्वारा उनका राज्य छीन लेने के बावजूद भी राष्ट्रकूटों का अधिकार कई जगह बना रहा। दक्षिण, गुजरात, काठियावाड़, सौदत्ति, हठूंडी, गया, बेतुल, पथारी, धनोप आदि क्षेत्रों से राष्ट्रकूटों के ताम्रपत्र मिले हैं।
सौदत्ति वाले स्वयं को ‘रट्ट’ लिखते थे, जो राष्ट्र या राष्ट्रकूट का ही संक्षिप्त रूप है। यदि गहड़वालों के साथ उनकी किसी प्रकार की समानता होती, तो वे इसका उल्लेख शिलालेखों व ताम्रपत्रों में अवश्य करते।
जिस समय कन्नौज पर गहड़वालों का राज था, उस समय राष्टकूटों की एक शाखा बदायूं में राज करती थी, जिसका प्रवर्तक चंद्र नामक शासक था। उसके व कन्नौज के चंद्रदेव के नामों में समानता होने के कारण कुछ लोगों ने दोनों को एक ही व्यक्ति मान लिया
और अपनी पोथियों में लिख दिया कि चंद्रदेव गहड़वाल के 2 पुत्रों मदनपाल व विग्रहपाल से क्रमशः कन्नौज व बदायूं की शाखाएं चलीं। वास्तव में इन दोनों चंद्र के शिलालेखों से ज्ञात होता है कि ये दोनों समकालीन ही नहीं थे।”
इस प्रकार डॉक्टर ओझा ने कई तथ्य अपने लेख में रखे हैं। ओझा जी के अनुसार राठौड़ और गहड़वालों के बीच विवाह संबंध भी हुए हैं। यदि ये दोनों एक ही वंश के होते तो इनके बीच विवाह संबंध न होते।
यह विषय राजपूताने के इतिहास के सर्वाधिक विवादित विषयों में से एक है, जिसमें इतिहासकार एकमत नहीं है। मुहणौत नैणसी की अवधारणा वर्तमान में सर्वाधिक प्रसिद्ध है।
मारवाड़ के प्रसिद्ध लेखक मुहणौत नैणसी के अनुसार भगवान श्री राम के पुत्र कुश के वंशज राजा जयचंद (कन्नौज) हुए, जिनकी तीसरी पीढ़ी में राव सीहा हुए, जो मारवाड़ के राठौड़ वंश के मूलपुरुष हैं।
मारवाड़ की पोथियों में राजा जयचंद व राजा सीहा के बीच 2 नाम और मिलते हैं। राजा जयचंद के पुत्र वरदाईसेन हुए, वरदाईसेन के पुत्र सेतराम हुए और सेतराम के पुत्र राव सीहा हुए।
मेवाड़ के ग्रंथ वीरविनोद ने भी यही वंशावली लिखी है, लेकिन ग्रंथकर्ता ने यह सन्देह जताया है कि राजा जयचंद के बाद सीधे ही राव सीहा हुए थे अर्थात उनके बीच में वरदाईसेन व सेतराम नहीं हुए।
वीरविनोद की यह मान्यता बिल्कुल गलत है, क्योंकि यह बात शिलालेखों से प्रमाणित है कि राव सीहा के पिता सेतराम थे। इससे कुछ अलग बांकीदास री ख्यात में वरदाईसेन व सेतराम के बीच एक और शासक का होना लिखा है, जिनका नाम ‘सेन’ था।
बहरहाल, अधिकतर लेखकों के अनुसार राठौड़ सूर्यवंशी हैं और वर्तमान समय में सभी राठौड़ स्वयं को सूर्यवंशी ही मानते हैं। इसलिए इस विषय को अधिक विवादित न बनाते हुए मारवाड़ के राठौड़ वंश से संबंधित इतिहास अगले भाग से शुरू किया जाएगा।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
Bhài sahab YouTube channel bnao ,ya fir ek kitaab likho aap , jankari BAHUT sahi tareeke s pesh karte ho aap .. m jrur apki likhi hui kitab padhna chahunga