भक्त शिरोमणि मीराबाई जी

भक्त शिरोमणि मीराबाई जी :- मीराबाई जी का जन्म कुड़की गांव में हुआ। राठौड़ों के राणी मंगा भाटों द्वारा लिखित बहियों के अनुसार मीराबाई जी का जन्म 1555 श्रावण सुदी 1 शुक्रवार (20 जुलाई, 1498 ई.) को हुआ।

पिता :- मारवाड़ नरेश राव जोधा के पुत्र राव दूदा हुए, जिनका अधिकार मेड़ता पर रहा। वर्तमान में मेड़ता राजस्थान के नागौर जिले में आता है। राव दूदा ने अपने चौथे पुत्र रतनसिंह को 12 गांव जागीर में दिए थे, जिनमें से एक गांव कुड़की भी था।

एक अन्य गांव का नाम बाजोली था, जिसको रतनसिंह ने 1509 ई. में मिसण (मिश्रण) गोत्र के एक चारण को दान में दे दिया था। मीराबाई रतनसिंह राठौड़ की इकलौती पुत्री थीं। मीराबाई की माता का नाम वीर कुंवरी था, जो झाला वंश से थीं।

आरंभिक जीवन :- मीराबाई जी का आरंभिक जीवन ही कष्टों से शुरू हुआ, क्योंकि बाल्यावस्था में ही उनकी माता का देहांत हो गया। फिर राव दूदा ने मीराबाई जी को अपने यहां बुलवा लिया। इस तरह मेड़ता में ही उनका पालन-पोषण हुआ।

मीराबाई जी का महल

गुरु :- मीराबाई के गुरु का नाम गजाधर था। ये ब्राह्मण थे, इनका गोत्र कांठिया तिवारी था। ये मीराबाई को पढ़ने-लिखने के अलावा कथा-पुराण भी सुनाते थे। मीराबाई ने देवनागरी, संगीतशास्त्र, छंदशास्त्र और संस्कृत भाषा का अध्ययन किया।

1515 ई. में मेड़ता के राव दूदा का देहांत हो गया। उनके ज्येष्ठ पुत्र राव वीरमदेव मेड़ता के शासक बने। इस घटना के अगले ही वर्ष 1516 ई. में मीराबाई जी का विवाह मेवाड़ के महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र कुँवर भोजराज से हुआ।

इस समय मीराबाई के गुरु गजाधर भी उनके साथ चित्तौड़ चले गए। चित्तौड़ में एक मंदिर की पूजा का दायित्व इन गुरु को सौंप दिया गया।

1518 से 1523 ई. के बीच किसी वर्ष कुँवर भोजराज का देहांत हो गया। मीराबाई बचपन से ही भगवद्भक्ति में रुचि रखती थीं, इसलिए इस शोक की घड़ी में भी वे भक्ति में लगी रहीं। मीराबाई जी के कोई संतान नहीं हुई।

1527 ई. में मीराबाई जी के पिता रतनसिंह राठौड़ खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा की तरफ़ से बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और अगले ही वर्ष 1528 ई. मीराबाई जी के ससुर महाराणा सांगा का देहांत हो गया।

1528 ई. से 1531 ई. तक मेवाड़ पर महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र महाराणा रतनसिंह का राज रहा। फिर 1531 ई. में मेवाड़ की गद्दी पर महाराणा विक्रमादित्य बैठे, जिनको मीराबाई जी की भक्ति अपनी कुल मर्यादा के ख़िलाफ़ लगती थी।

इस समय तक मीराबाई की भक्ति और उनके भजनों की ख्याति हिंदुस्तान में दूर-दूर तक फैल चुकी थी। दूर-दूर से साधु-संत उनसे मिलने आया करते थे। मीराबाई जी द्वारा साधु संतों से मिलना, कृष्णप्रेम में नाचना आदि बातें महाराणा विक्रमादित्य को पसंद नहीं आई।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित मीराबाई जी का मंदिर

महाराणा विक्रमादित्य ने मीराबाई जी को मारने के प्रयास किए, पर सफ़लता नहीं मिली। कहते हैं कि मीराबाई जी को विष का प्याला दिया गया, जिसे पीने के बावजूद उन्हें कुछ न हुआ।

मीराबाई जी के ऐसे कष्टों का हाल सुनकर उनके स्वर्गीय पिता के बड़े भाई राव वीरमदेव राठौड़ ने उनको मेड़ता बुलवा लिया। मीराबाई मेड़ता गईं, तो वहां भी साधु-संतों की भीड़ लगी रहती थी।

फिर जब मारवाड़ के राव मालदेव ने मेड़ता पर विजय प्राप्त की, तो मीराबाई जी तीर्थयात्रा पर चली गईं और द्वारका में रहने लगीं। द्वारका में भी सब लोग मीराबाई की भक्ति पर मंत्रमुग्ध हो गए।

1546 ई. में मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह ने मीराबाई जी को मेवाड़ लाने के लिए ब्राम्हणों को द्वारका भेजा। मीराबाई जी उन ब्राम्हणों से मिलीं और फिर मंदिर में प्रवेश करके द्वार बन्द कर लिए। द्वार खोलने पर मीराबाई जी वहां नहीं मिलीं। वे अपने कान्हा में विलीन हो गईं।

कुछ का मानना है कि मीराबाई जी ने जल समाधि ले ली। राठौड़ों के राणी मंगा भाटों द्वारा लिखित बहियों के अनुसार मीराबाई जी का देहांत 1605 चैत्र शुक्ल 5 (12 जून, 1548 ई.) को हुआ। डॉ. ओझा ने मीराबाई जी के देहांत का वर्ष 1546 ई. लिखा है।

मीराबाई जी द्वारा पूजी हुई एक मूर्ति आमेर के प्रसिद्ध जगतशिरोमणि मन्दिर में स्थित है। इसी तरह एक मूर्ति मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह ने नूरपुर के राजा बासु तंवर को भेंट की थी, जिसकी स्थापना नूरपुर में की गई।

ग्रंथ, राग आदि :- मीराबाई के अनेक भजन हिंदुस्तान में प्रसिद्ध हैं। मीराबाई जी का मलार राग काफी प्रसिद्ध है। मीराबाई जी ने रागगोविंद, राग सोरठ पद संग्रह, फुटकर पद आदि ग्रंथों की रचना की। मीराबाई द्वारा रचित फुटकर पद काफी प्रसिद्ध हैं।

श्री गिरधर आगे नाचूंगी। नाचि नाचि पिव रसिक रिझाये प्रेमी जन को जाचूंगी। प्रेम प्रीति की बांध घुंघरू सूरत की कछनी काचूंगी। लोकलाज कुल मर्यादा, या मैं एक न राखूंगी, पिव के पंलगा पौढूंगी, मीरा हरि रंग राचूंगी।

मीराबाई जी

पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे। मैं तो मारा नारायण री आप ही हो गई दासी रे। मैं तो सांवरिया के रंग राची। साजी सिणगार बांध पग घुंघरू लोकलाज तजि नाची।

जिस प्रकार ‘शक्ति’ में आज महाराणा प्रताप का नाम देशभर में ही नहीं, बल्कि विदेशों तक भी ख्याति प्राप्त चुका है, उस तरह ‘भक्ति’ में मीराबाई का नाम केवल उत्तर भारत ही नहीं, दक्षिण भारत व कई देशों तक ख्याति प्राप्त कर चुका है।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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