मेवाड़ के महाराणा रतनसिंह (भाग – 2)

1528-1531 ई. – मालवा की फ़ौज को शिकस्त देना :- रायसेन के सलहदी तंवर व सीवास के सिकन्दर खां ने मालवा के कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया। जब मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी ने इन दोनों को मारना चाहा, तो ये दोनों मेवाड़ आ गए।

सुल्तान महमूद खिलजी ने महाराणा रतनसिंह पर क्रोधित होकर अपने सिपहसालार शर्जाखां को फौज देकर मेवाड़ भेजा। कुछ समय बाद महमूद ने भी मेवाड़ की तरफ कूच किया।

महाराणा रतनसिंह ने मेवाड़ी फौज के साथ चित्तौड़ से निकलकर कुल बादशाही फौज को उसके मुल्क तक खदेड़ दिया और सम्भल को लूटते हुए सारंगपुर तक जा पहुंचे।

महाराणा की इस चढ़ाई में सलहदी तंवर की सेना भी शामिल थी। महाराणा की इस प्रतिक्रिया को देखते हुए महमूद खिलजी जो उज्जैन तक आ गया था, वापिस लौट गया।

ख़रजी की घाटी में महाराणा रतनसिंह व गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह की मुलाकात हुई। बहादुरशाह इन दिनों मालवा पर चढ़ाई करना चाहता था। महाराणा द्वारा मालवा की सेना को परास्त करने से बहादुरशाह का काम आसान हो गया।

महाराणा रतनसिंह

बहादुरशाह ने महाराणा से कहा कि आप हमें फ़ौजी मदद दे दें, तो हम मालवा वालों को बर्बाद कर देंगे। महाराणा रतनसिंह ने सलहदी तंवर, डूंगरसी व जाजराय को अपनी कुछ सेना के साथ बहादुरशाह के साथ जाने को कहा।

बहादुरशाह ने खुश होकर महाराणा रतनसिंह को 30 हाथी, बहुत से घोड़े व 1500 ज़रदोजी खिलअतें भेंट की। बहादुरशाह ने सेना सहित मालवा पर चढ़ाई की और महमूद खिलजी को बन्दी बनाकर गुजरात ले गया।

बहादुरशाह ने मालवा का राज्य गुजरात में मिला दिया, जिससे बहादुरशाह की शक्ति काफी बढ़ गई। इन्हीं दिनों 26 दिसम्बर, 1530 ई. को मुगल बादशाह बाबर की मृत्यु हो गई।

1531 ई. – महाराणा रतनसिंह का देहान्त :- महाराणा रतनसिंह ने रणथम्भौर का किला लेने के लिए राव सूरजमल हाड़ा को कई बार मेवाड़ बुलाया, पर सूरजमल हर बार टालते रहे, क्योंकि सूरजमल को धोखे का अंदेशा था।

महाराणा रतनसिंह चित्तौड़गढ़ दुर्ग से शिकार के लिए रवाना हुए। इस समय महाराणा के साथ कुछ साथी थे व महाराणा की एक पंवार रानी, जो कि रावत करमचन्द की पुत्री थीं, वो भी साथ थीं।

महाराणा शिकार करते हुए बूंदी के निकट जा रहे थे। वहां से उन्होंने बूंदी में अपने दूत भेजकर राव सूरजमल हाड़ा को कहलवाया कि तुम भी आ जाओ शिकार करने। लेकिन सूरजमल बड़े असमंजस में थे क्योंकि उन्हें महाराणा की मंशा की भनक थी।

सूरजमल ने अपनी माता खेतू राठौड़ से पूछा कि मुझे जाना चाहिए या नहीं, तो माता खेतू ने कहा कि दीवाण (महाराणा) बुलावे, तो तुम्हें जाना ही चाहिए।

महाराणा रतनसिंह के महल

फिर सूरजमल हाड़ा बूंदी और मेवाड़ की सीमा पर स्थित गोकर्ण नामक गाँव मे पहुंचे, जहां महाराणा से भेंट हुई। एक दिन महाराणा रतनसिंह ने सूरजमल से कहा कि “हमने नया हाथी खरीदा है, तुम भी साथ चलो शिकार पर।”

महाराणा रतनसिंह हाथी पर सवार थे व राव सूरजमल घोड़े पर। महाराणा ने अपने हाथी को सूरजमल पर झोंकने की कोशिश की, लेकिन सूरजमल बच गए। तब महाराणा ने कहा कि “लगता है ये हाथी बिगड़ गया है, अब से मैं इस हाथी पर सवारी नहीं करूंगा।”

फिर वापिस सभी अपने शिविर में लौट गए। महारानी पंवार को इस बात का पता लग गया था कि महाराणा रतनसिंह सूरजमल हाड़ा को मारने की योजना बना रहे हैं, तो महारानी ने महाराणा को सलाह दी कि ऐसा न किया जावे, परन्तु महाराणा नहीं माने।

2 दिन बाद महाराणा रतनसिंह ने सूरजमल से कहा कि “चलो, जंगली सूअरों के शिकार पर चलते हैं।” इस वक्त महाराणा ने अपने सब साथियों को शिविर में ही रहने को कहा।

महाराणा रतनसिंह, पूर्बिया पूरणमल, राव सूरजमल हाड़ा व एक खवास, ये चार लोग ही शिकार हेतु रवाना हुए। महाराणा रतनसिंह शिकार करते करते बाजणा नामक गाँव में पहुंच गए।

यहां महाराणा ने पूरणमल को सूरजमल के पास ही खड़े रहने को कहा और स्वयं थोड़ा आगे निकल गए। उद्देश्य यह था कि पूरणमल सूरजमल को मार देवे।

महाराणा वापिस लौटे तब देखा कि अब तक पूरणमल सूरजमल को नहीं मार सके, तो महाराणा ने अपना घोड़ा सूरजमल की तरफ दौड़ाया और तलवार से सूरजमल पर वार किया।

महाराणा की तलवार से सूरजमल के सिर का थोड़ा सा हिस्सा कट गया। इस वक्त पूरणमल पूर्बिया भी सूरजमल पर झपटे, लेकिन सूरजमल ने पूरणमल पर जोरदार वार कर दिया।

महाराणा रतनसिंह पूरणमल को बचाने के लिए आए, लेकिन सूरजमल ने महाराणा के घोड़े की लगाम पकड़ ली, अपनी कमर से कटारी निकाली और महाराणा की गर्दन में घुसेड़ दी।

महाराणा रतनसिंह के महल

कटारी महाराणा की नाभि तक चीरती हुई चली गई, जिससे महाराणा का देहांत हुआ। गहरे घावों के कारण इसी स्थान पर राव सूरजमल हाड़ा व पूरणमल पूर्बिया का भी देहांत हो गया।

महाराणा रतनसिंह का दाह संस्कार पाटण गांव में हुआ और उनके साथ रानी पंवार सती हुईं। इस प्रकार आपसी झगड़े में महाराणा रतनसिंह का देहांत हो गया। अब महाराणा सांगा के दो ही पुत्र जीवित रहे :- विक्रमादित्य व उदयसिंह।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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