महाराणा रतनसिंह का परिचय :- इन महाराणा के पिता महाराणा सांगा व माता जोधपुर के राव बाघा सूजावत की पुत्री थीं। महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज का देहांत होने के कारण दूसरे पुत्र रतनसिंह मेवाड़ के उत्तराधिकारी हुए।
राज्याभिषेक :- महाराणा सांगा की हत्या का समाचार चित्तौड़गढ़ पहुंचा, तो 5 फरवरी, 1528 ई. (माघ सुदी 15 विक्रम संवत 1584) को रतनसिंह मेवाड़ की गद्दी पर बिराजे।
महाराणा रतनसिंह का व्यक्तित्व :- महाराणा रतनसिंह सन्धिप्रिय व बहादुर शासक थे। लेकिन खुशामद करने वालों व मीठी बातें करने वालों के बहकावे में जल्द आ जाया करते थे।
भाइयों से रणथंभौर छीनने का प्रयास :- इस वक्त महाराणा रतनसिंह के 2 ही भाई जीवित थे :- कुंवर विक्रमादित्य व कुंवर उदयसिंह। इन दोनों की माता महारानी कर्णावती थीं।
महारानी कर्णावती ने महाराणा सांगा की जीवित दशा में ही इनको रणथंभौर जैसी बड़ी जागीर दिलवा दी थी। उस समय तो रतनसिंह विरोध नहीं कर पाए थे, लेकिन अब गद्दी पर बैठने के बाद उन्होंने यह जागीर हथियाने का प्रयास शुरू किया।
महाराणा रतनसिंह ने पूरणमल पूर्बिया को रणथंभौर भेजकर महारानी कर्णावती से कहलाया कि “आप तो हमारे सिर पर तीर्थ हैं। आपको आपके पुत्रों सहित चित्तौड़गढ़ आ जाना चाहिए।”
महारानी कर्णावती को लगा कि रतनसिंह धोखे से उन्हें चित्तौड़ बुलाना चाहते हैं। महारानी कर्णावती ने कहलवाया कि “स्वर्गीय महाराणा सांगा ने विक्रम और उदय को रणथंभौर की जागीर देकर मेरे भाई सूरजमल को उनका संरक्षक बनाया है, इसलिए फिलहाल यहां का सब कुछ सूरजमल के अधीन ही है।”
साथ ही सूरजमल हाड़ा ने पूरणमल के ज़रिए महाराणा रतनसिंह तक यह संदेश पहुंचाया कि “मैं चित्तौड़गढ़ आऊंगा और इस विषय में महाराणा से स्वयं बातचीत करूंगा।”
इसके अलावा महाराणा रतनसिंह ने पूरणमल के ज़रिए सूरजमल हाड़ा को यह भी कहलाया था कि “महाराणा सांगा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी से उसका रत्नजड़ित मुकुट व सोने की कमरपेटी छीनकर विक्रमादित्य को दी थी, वह पूरणमल के हाथों भिजवा दी जावे।”
लेकिन सूरजमल हाड़ा ने कमरपेटी व ताज देने से इनकार कर दिया और कहा कि “यह तो स्वयं स्वर्गीय महाराणा ने अपने पुत्र विक्रम को सौंपी है, इसे हम कैसे लौटा सकते हैं ?”
कुछ समय बाद सूरजमल हाड़ा मेवाड़ गए और महाराणा रतनसिंह से बातचीत की, लेकिन इन दोनों के बीच विरोध कम न हुआ। फिर एक दिन सूरजमल हाड़ा ने महाराणा रतनसिंह की गद्दीनशीनी के टीके के दस्तूर के रूप में एक घोड़ा व हाथी भेंट किया।
महाराणा रतनसिंह ने ये घोड़ा और हाथी वापिस सूरजमल हाड़ा के पास भिजवा दिए और कहलवाया कि “मुझको वही हाथी और घोड़ा भेंट करो, जो स्वर्गीय महाराणा सांगा ने तुमको भेंट किया था।”
इसके जवाब में सूरजमल हाड़ा ने कहलवाया कि “मैं कोई गांव का पटेल नहीं हूं कि घोड़े-हाथी मेरे पास चराई के लिए छोड़ दिए गए हों। महाराणा सांगा ने मुझको उपहारस्वरूप भेंट किए थे, उसको मैं आपको भेंट नहीं कर सकता।”
चारण भाणा को महाराणा सांगा ने मांडलगढ़ में रीठ, कोदिया समेत कुल 12 गांवों की जागीर दी थी। एक दिन चारण भाणा अपने यजमान गौड़ राजपूतों से नेग लेने के लिए बूंदी गए। बूंदी में वे सूरजमल हाड़ा के दरबार में भी गए।
फिर चारण भाणा चित्तौड़गढ़ में महाराणा रतनसिंह के दरबार में आए। चारण भाणा ने वहां जाकर बूंदी के सूरजमल हाड़ा की बड़ी तारीफें की। महाराणा ने पूछा कि “सूरजमल ने ऐसा कौनसा बहादुरी का काम कर दिया है और तुमको क्या दिया है उसने ?”
चारण भाणा ने कहा कि “एक दिन सूरजमल शिकार के लिए गए। मैं भी उनके साथ था। जंगल में उन पर दो रीछ आ पड़े। सूरजमल ने कटारी निकालकर एक ही बार में उन दोनों का काम तमाम कर दिया।”
चारण भाणा ने कहा कि “सूरजमल ने मुझको लाल लश्कर नाम का घोड़ा और मेघनाद नाम का हाथी भेंट किया है।” ये बात सुनकर महाराणा रतनसिंह को बड़ा क्रोध आया, क्योंकि ये वही घोड़ा व हाथी था, जो महाराणा सांगा ने सूरजमल हाड़ा को भेंट किया था।
महाराणा रतनसिंह ने चारण भाणा को मेवाड़ से निकल जाने का आदेश दिया। भाणा बूंदी चले गए, जहां सूरजमल हाड़ा ने उनको हरणा नामक गाँव की जागीरी दी। इस गांव में अब तक चारण भाणा के वंशज मौजूद हैं।
महाराणा रतनसिंह द्वारा जारी सिक्के :- महाराणा रतनसिंह ने तांबे के सिक्के जारी किए, जो दिखने में महाराणा कुम्भा के समय जारी सिक्कों के बराबर सुंदर दिखते थे। डॉक्टर ओझा जी ने इन सिक्कों को महाराणा सांगा द्वारा जारी करवाए सिक्कों की तुलना में काफी अच्छे सिक्के माना है।
पुण्डरीक के मंदिर का जीर्णोद्धार :- महाराणा रतनसिंह के मंत्री कर्मसिंह ने काठियावाड़ में पालीताणा के पास स्थित शत्रुंजय तीर्थ में बहुत से निर्माण कार्य करवाए और पुण्डरीक के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाकर उसमें आदिनाथ की मूर्ति स्थापित की।
इस काम को करने के लिए 3 सूत्रधार (सुथार) अहमदाबाद से व 19 सूत्रधार मेवाड़ से गए थे। ऐसा कर्मसिंह के खुदवाए गए शिलालेख से पता चलता है।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
Maharana ki Mata Shri ka nam tha Rani Rathor ji Shri Dhan Kanwarji