1527 ई. – खानवा युद्ध के बाद महाराणा सांगा की प्रतिक्रिया :- महाराणा सांगा को मूर्छित अवस्था में बसवा गांव (वर्तमान दौसा जिले में स्थित) में लाया गया, जहां उनको होश आया।
महाराणा ने पूछा कि युद्ध में विजय किसकी हुई, तो मालूम पड़ा कि बाबर युद्ध जीत गया है और हज़ारों राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए।
महाराणा सांगा ने कहा कि “मैं हारकर जीवित अवस्था में चित्तौड़ नहीं जाऊंगा”। फिर महाराणा कुछ दिन बसवा गांव में रहे। इस गांव में महाराणा की याद में एक चबूतरा बनवाया गया, जो अब तक मौजूद है।
महाराणा सांगा बसवा से रणथंभौर चले गए, लेकिन उनके बर्ताव में काफी बदलाव आ गया। वे न किसी से मिलते-जुलते और न ही महलों से बाहर निकलते।
महाराणा की इस उदासीनता और निराशा को दूर करने के लिए बारहठ जमणा नामक एक चारण उनसे मिलने पहुंचे, तो राजपूतों ने उनको महाराणा से मिलने से रोक दिया, परंतु बहुत आग्रह करने के बाद उन्हें महाराणा से मिलने के लिए भीतर भेज दिया गया।
बारहठ जमणा ने महाराणा सांगा को ये दोहे सुनाए :- सतबार जरासंध आगल श्रीरंग, विमुहा टीकम दीध बग। मेलि घात मारे मधुसूदन, असुर घात नांखे अलग।। पारथ हेकरसां हथणापुर, हटियो त्रिया पंडतां हाथ। देख जका दुरजोधण कीधी, पछै तका कीधी सज पाथ।।
इकरां रामतणी तिय रावण, मंद हरेगो दहकमल। टीकम सोहिज पथर तारिया, जगनायक उपरां जल।। एक राड़ भवमाँह अवत्थी, अमरस आणै केम उर। मालतणा केवा ऋण मांगा, सांगा तू सालै असुर।।
अर्थात हे महाराणा, आपको निराश नहीं होना चाहिए। जरासंध से कई बार हारकर भी श्रीकृष्ण ने उसे परास्त किया। जब दुर्योधन ने द्रौपदी पर बुरी दृष्टि डाली, तब अर्जुन हस्तिनापुर से चला गया, परंतु बाद में उसने क्या क्या किया ?
एक बार रावण सीता को हर ले गया था, तो रामचंद्र ने जल पर पत्थर तैराकर कैसा बदला लिया ? हे महाराणा, आप एक पराजय से क्यों इतने दुःखी होते हैं ? आप तो शत्रुओं के लिए काल हैं।
ये दोहे सुनकर महाराणा सांगा की निराशा दूर हो गई और उन्होंने प्रसन्न होकर बारहठ जमणा को वकाण नामक गाँव भेंट किया, जहां अब तक इन चारण के वंशज रहते हैं। महाराणा सांगा ने रणथंभौर में ही नए सिरे से बाबर पर आक्रमण करने के लिए फ़ौजी तैयारियां शुरू कर दीं।
महाराणा सांगा की हत्या :- बाबर ने महाराणा सांगा के प्रमुख सहयोगियों में से एक मेदिनीराय को परास्त करने के लिए चंदेरी पर चढ़ाई की। 19 जनवरी, 1528 ई. को बाबर चंदेरी पहुंचा।
महाराणा सांगा को ये बात मालूम हुई, तो उन्होंने प्रतिशोध लेने के लिए फ़ौज समेत चंदेरी की तरफ कूच किया और कालपी के निकट इरिच गांव में पड़ाव डाला।
महाराणा सांगा द्वारा बाबर से फिर से लड़ने की बात से नाराज़ कुछ दगाबाज़ों ने उनको इरिच गाँव में ज़हर दे दिया, जिससे महाराणा सांगा की तबियत काफी खराब हो गई।
विष का प्रभाव बढ़ता देखकर सामंत महाराणा सांगा को लेकर मेवाड़ की तरफ़ लौटना चाहते थे। वे उनको कालपी गांव तक लाए और यहीं 30 जनवरी, 1528 ई. (माघ सुदी 9 विक्रम संवत 1584) को उनका देहांत हो गया।
महाराणा की पार्थिव देह को कालपी से मांडलगढ़ लाया गया और मांडलगढ़ में ही दाहक्रिया की गई। बाबर ने मेदिनीराय पर हमला इसलिए किया था, क्योंकि उसे भय था कि राजपूतों की शक्ति पूरी तरह समाप्त नहीं की, तो वे फिर हावी हो जाएंगे।
खानवा का युद्ध हुए अभी अधिक समय नहीं हुआ था, बाबर स्वयं भी फौजी कमी से जूझ रहा था। ऐसी स्थिति में महाराणा सांगा व मेदिनीराय की सेना मिलकर बाबर की सेना से लड़ती, तो यहां सम्भावना थी कि बाबर परास्त हो जाता। परन्तु विश्वासघात ने इन संभावनाओं पर पानी फेर दिया।
बाबर की मृत्यु :- बाबर ने मेदिनीराय की सेना को चंदेरी के युद्ध में परास्त किया। खानवा के युद्ध में इब्राहिम लोदी के बेटे महमूद लोदी ने भी महाराणा सांगा की तरफ से भाग लिया था। 1529 ई. में बाबर और महमूद लोदी के बीच घाघरा का युद्ध हुआ, जिसमें महमूद लोदी परास्त हुआ।
1530 ई. में 47 वर्ष की आयु में बाबर की मृत्यु हो गई। बाबर को पहले आगरा में दफनाया गया, पर फिर उसकी इच्छा पर पुनर्विचार किया गया और आखिरकार उसे हिंदुस्तान की बजाय काबुल में दफनाया गया।
महाराणा सांगा द्वारा जारी किए गए सिक्के :- महाराणा सांगा ने 5-6 अलग-अलग प्रकार के तांबे के सिक्के जारी किए थे। ये सिक्के चौकोर, मोटे व असावधानी से बनाए हुए थे। ये सिक्के महाराणा कुम्भा के शासनकाल में जारी किए गए सिक्कों की तरफ सुंदर नहीं थे।
महाराणा सांगा के पुत्र :- (1) कुंवर भोजराज, जिन्होंने मीराबाई जी से विवाह किया। भोजराज जी का देहांत कुँवरपदे काल में ही हो गया। (2) कुंवर कर्ण, जिनका देहांत भी कुँवरपदे में हो गया।
(3) महाराणा रतनसिंह, जो कि मेवाड़ के अगले महाराणा बने। (4) कुंवर परबत सिंह / पर्वत सिंह, जिनका देहांत भी कुँवरपदे में हो गया। (5) कुंवर कृष्णदास, जिनका देहांत भी कुँवरपदे में हो गया।
(6) महाराणा विक्रमादित्य, जो कि अपने भाई महाराणा रतनसिंह के देहांत के बाद मेवाड़ के महाराणा बने। (7) महाराणा उदयसिंह, जो कि महाराणा विक्रमादित्य के देहांत के बाद बनवीर को गद्दी से हटाकर मेवाड़ के महाराणा बने।
महाराणा सांगा की पुत्रियां :- महाराणा सांगा की 4 पुत्रियां थीं :- कुँवरबाई, गंगाबाई, पद्माबाई, राजबाई। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
राजपूताना इतिहास पर शानदार वेबसाइटहै यह। महाराणा सांगा के बारे में नई जानकारियां देने के लिए आभार 💐
हम आपका बहुत शुक्रिया करते है। प्रभु से हमारी प्रार्थना है की वे आपको स्वस्थ रखे और दीर्घायु प्रदान करे ताकि आप राजपूताने का इतिहास लिखने का बहुमूल्य कार्य सिद्ध कर सके। आपको बहुत धन्यवाद। कभी आपको मिलने का अवसर मिला तो खुद को बहुत ही भाग्यशाली समझूंगा।