17 मार्च, 1527 ई. – महाराणा सांगा का खानवा में प्रवेश :- युद्ध के दिन सुबह बाबर खानवा के मैदान में पहुंच गया था और निकट ही खेमे लगवा रहा था।
वह आधे खेमे लगवा चुका था कि तभी महाराणा सांगा के नेतृत्व में राजपूतों की जर्रार फ़ौज की हरावल (सेना की सबसे आगे वाली पंक्ति) दिखाई दी।
महाराणा सांगा की सेना में शामिल प्रमुख राजा, सामन्त व अन्य योद्धा :- सलूम्बर वालों के पूर्वज रावत रतनसिंह चुण्डावत प्रथम, कानोड़ के रावत जोगा सारंगदेवोत, कोठारिया के रावत माणकचन्द चौहान,
जवास के रावत माणकदेव चौहान, डूलावतों का गुड़ा के परबत सिंह डूलावत, आमेट के रावत सींहा चुण्डावत, बेदला के राव चन्द्रभाण सिंह चौहान,
बड़ी सादड़ी के राज राणा अज्जा झाला, देलवाड़ा के राज राणा सज्जा झाला, देवलिया (वर्तमान प्रतापगढ़) के रावत बाघसिंह सिसोदिया, रायसेन व सारंगपुर के शासक सलहदी तंवर,
मारवाड़ के सैन्य सहित मेड़ता के वीरमदेव राठौड़, डूंगरपुर नरेश रावल उदयसिंह, चंदेरी के मेदिनीराय, बीकानेर के कुँवर कल्याणमल राठौड़ (राव जैतसी के पुत्र), ईडर नरेश राव भारमल राठौड़, आमेर नरेश पृथ्वीराज कछवाहा,
बूंदी के नरबद हाड़ा (बूंदी के राव नारायणदास हाड़ा के छोटे भाई व बूंदी की सेना के मुखिया), गागरोन के शत्रुदेव खींची, सीकरी के राव धामदेव सिकरवार, पहाड़गढ़ के राव नारायणदास सिकरवार, माचेड़ी के राजा आसकरण बड़गूजर,
देवती के राजा कुंभा बड़गूजर, मेवात के शासक हसन खां मेवाती, इब्राहिम लोदी का बेटा महमूद खां लोदी, भूपतिराय (सलहदी तंवर के पुत्र), वीरसिंह देव, नरसिंह देव चौहान, दलीपराव, वीरमदेव सिकरवार (राव धामदेव के छोटे भाई)
मारवाड़ नरेश राव गांगा राठौड़ ने मारवाड़ की तरफ़ से वीरमदेव व रायमल राठौड़ को फ़ौज समेत लड़ाई में भेजा था। मेवाड़ के ठिकानों में से सभी सामन्त या उनके भाई-बेटे महाराणा सांगा के साथ इस लड़ाई में मौजूद थे।
हालांकि बिजोलिया के राव अशोक पंवार ने इस लड़ाई में भाग लिया या नहीं, यह अब तक मुझे कहीं पढ़ने को नहीं मिला है। गोकुलदास पंवार नाम के एक राजपूत योद्धा इस लड़ाई में लड़े थे। सम्भव है ये बिजोलिया से ही भेजे गए हों।
राजपूतों की कई रियासतों ने इस लड़ाई में भाग लिया, परन्तु जैसलमेर रियासत द्वारा इस लड़ाई में भाग लेने का कोई वर्णन नहीं मिलता है, जबकि इस वक्त जैसलमेर के शासक महारावल लूणकरण भाटी थे,
जो कि महाराणा सांगा के दामाद थे। सम्भवतः जैसलमेर द्वारा इस युद्ध में भाग न लेने का कारण वहां से अधिक दूरी का होना रहा होगा।
ये एक कभी न भुलाने वाला ऐतिहासिक क्षण था, जब समस्त राजपूताना एक ध्वज के तले था। न सिर्फ राजपूताना, बल्कि वे मुसलमान भी महाराणा सांगा के साथ थे, जो बाबर से बैर रखते थे। कई राजागण महाराणा सांगा का नेतृत्व स्वीकार करके उनके झंडे तले आए।
इन राजाओं को पाती पेरवन के तहत बुलाया गया था। उन्हें इसके बदले कोई धनराशि नहीं दी गई, बल्कि वे सभी जानते थे कि बाबर से बड़ी चुनौती इस समय और कोई दूसरी नहीं है। यह मातृभूमि प्रेम ही था, जो इन राजाओं को एक ध्वज के नीचे ले आया।
ये वो युद्ध नहीं था कि एक राजा ने किसी दूसरे राजा पर चढ़ाई करके उसका राज छीन लिया। ये वो युद्ध था, जो समस्त हिंदुस्तान का भाग्य तय करने वाला था। राजपूतों ने देख लिया था कि पानीपत की लड़ाई के बाद बाबर ने इब्राहिम लोदी के सिपाहियों के साथ क्या किया था।
बाबर उन क्रूर आक्रांताओं में से था जो अपने विरोधी मुसलमानों को भी परास्त करने के बाद उनके सिरों की मीनार बनवाता था। पानीपत की लड़ाई में मुर्दों के ढेर में से इब्राहिम लोदी को ढूंढा गया और उसका सिर काटकर बाबर के सामने पेश किया गया था।
खानवा के युद्ध में मुगलों व राजपूतों की भिड़ंत :- 17 मार्च, 1527 ई. को सुबह साढ़े 9 बजे से खानवा का युद्ध शुरू हुआ।
जहां बाबर ने अपनी 60 हज़ार की सेना को 8 भागों में विभाजित कर रखा था, वहां महाराणा सांगा ने अपनी 1 लाख 20 हज़ार की सेना को मात्र 4 भागों में ही विभाजित किया।
महाराणा सांगा की सेना के ये 4 भाग हरावल (सेना का अग्रिम भाग), चन्दावल (सेना का पिछला भाग), वाम पार्श्व व दक्षिण पार्श्व थे। जब दाएं-बाएं पक्षों में लड़ाई हुई, तो राजपूतों का पलड़ा भारी रहा।
बाबर ने बाबरनामा में लिखा है कि “राजपूतों का जो हिस्सा कमज़ोर पड़ जाता था, उसकी मदद ख़ातिर दूसरे राजपूत बराबर पहुंच जाया करते थे। ये देखकर मैंने भी उन लश्कर तक मदद पहुंचानी शुरू कर दी, जो कमज़ोर पड़ रहे थे।”
मुगलों की तरफ़ से मलिक कासिम, खुसरो कोकलताश, बाबा कशका की सैनिक टुकड़ियों को राजपूतों ने घेर लिया, तो बाबर के भाई चीन तैमूर को इनकी मदद के लिए आगे आना पड़ा।
चीन तैमूर ने अपनी सैनिक टुकड़ी सहित राजपूतों के वाम पार्श्व के मध्य भाग पर हमला किया, जिससे मुगल सेना का दक्षिण पार्श्व नष्ट होने से बच गया। चीन तैमूर ज़ख्मी बादशाही सिपहसालारों को बादशाही लश्कर के बीच में ले गया।
बाबर ने कमजोर पड़ी टुकड़ी की मदद ख़ातिर हिंदूबेग कोचीन को भेजा, फिर उसके पीछे कोकलताश को भेजा, उसके पीछे असद को भेजा। लेकिन फिर भी राजपूतों का पलड़ा भारी रहा, इसलिए बाबर ने यूनस अली, शाह मंसूर बर्लास और अब्दुल्ला किताबदार को भेजा।
फिर भी राजपूतों ने जोर पकड़ा, तो बाबर को एशक आका व मोहम्मद खलील को भेजना पड़ा। इस तरह महाराणा सांगा और बाबर दोनों ही अपने कमजोर पक्षों की मदद ख़ातिर समय-समय पर सेनाएं भेजते रहे।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)