बाबर ने पहले ही युद्ध के लिए जो जगह सोची थी, खानवा के उस मैदान में उसने खाइयां खुदवाकर पीछे गाड़ियों को खड़ा करके उन्हें आपस में जंजीरों से जकड़वा दिया। 13 मार्च, 1527 ई. को बाबर अपनी सम्पूर्ण सेना सहित खानवा के मैदान में पहुंच गया।
उसने वहां से एक कोस दूर डेरे लगा दिए। खाइयों के करीब उसने समस्त तोपों को भी जमा दिया। बाबर के पास तोपों की संख्या बहुत ज्यादा थी। जिन गाड़ियों को जंजीरों से जकड़ा गया था, उनके पीछे बन्दूकची और तोपचियों को तैनात किया गया।
तोपों की दाई तरफ मुस्तफा रूमी और बाई तरफ उस्ताद अली को तैनात किया गया। ये दोनों बाबर के तोपखाने के मुख्य अफसर थे। मुस्तफा रूमी ने तो रूमियों की शैली में इन गाड़ियों का निर्माण करवाया और उस्ताद अली ने तोपें ढलवाने का काम पूरा किया।
17 मार्च, 1527 ई. – खानवा का युद्ध :- तुजुक-ए-बाबरी में बाबर लिखता है कि “हमारी फतह दिल्ली, आगरा, जौनपुर वगैरह पर हुई। हिन्दु, मुसलमान सबने हमारी ताबेदारी कुबूल की। सिर्फ राणा सांगा ने सब मुखालिफों का सरगिरोह बनकर सिर फेरा। वह
विलायत हिन्द में इस तरह गालिब था कि जिन राजा और रावों ने किसी की ताबेदारी नहीं की थी, वे भी अपने बड़प्पन को छोड़कर उसके झण्डे के नीचे आए। 200 मुसलमानी शहर उसके काबू में थे। मस्जिदें उसने खराब
कर डाली थीं। कायदा विलायत के मुताबिक उसका मुल्क 10 करोड़ रुपये सालाना आमदनी को पहुंचा था। बड़े-बड़े नामी सर्दार इस्लाम की अदावत उसके साथ थे। ये सब राणा सांगा के झण्डे तले इस्लाम के ख़िलाफ़ चढ़कर आए”
बाबर द्वारा फ़ौज का हौंसला बढ़ाना :- बाबर ने घोड़े पर बैठकर अपनी पूरी फौज में घूमकर सिपहसालारों को बड़े-बड़े खिताबों से नवाज़ा और उनमें जोश भरा।
बाबर ने उनसे कहा कि “जो कोई दुनिया में आया है, वो एक दिन मरेगा, जब हम मर जाएंगे, तो सिर्फ खुदा ही बाकी रह जाएगा। नेकनामी से मरना बदनाम होकर जीने से अच्छा है। जो हम नेकनामी से मर जाएं तो अच्छा है। हमको तो नाम ही चाहिए,
जिस्म तो मौत के वास्ते ही है। जंग में मरोगे तो शहीद और जिंदा रहोगे तो गाज़ी कहलाओगे। तुम सबको कुरान की कसम है कि कोई भी इस लड़ाई से मुंह फेरने का ख़्याल नहीं करेगा। जब तक जान बदन से न निकले, तब तक इस लड़ाई से अलग मत होना”
मुगल बादशाह बाबर की तरफ से खानवा के युद्ध में भाग लेने वाले सिपहसालार :- शहजादा हूमायुँ (बाबर का बेटा), शहजादा सुलेमान शाह (बाबर का बेटा), शहजादा आसकरी मिर्जा (बाबर का बेटा), चीन तैमूर सुल्तान (बाबर का भाई),
शहजादा हिंदाल मिर्जा (ये बाबर का बेटा था, इसकी बेटी रुकैया बेगम हुई, जिससे बाबर के पोते अकबर का निकाह हुआ), शेर अफगान, सुल्तान अलाउद्दीन आलम खां (सुल्तान बहलोल लोदी का बेटा), मुस्तफा रुमी,
निजामुद्दीन अली खलीफा व उसका बेटा तर्दीबेग, सैयद मेहन्दी ख्वाजा (इसने बयाना की लड़ाई में मुगल फ़ौज का नेतृत्व किया था), शैख जैन खवाफी, यूनस अली, शाह मन्सूर बर्लाश, दर्वेश मुहम्मद सारवान, अब्दुल्ला किताबदार,
मीर हमामुहम्मदीन कोकलताश, खुसरो शाह, उस्ताद अली कुली, ख्वाजा खाबिन्द, संघर अली खां, मीर मोहिब अली खलीफा, मीर अब्दुल अजीज, मीर मुहम्मद अली खां, कासिम हुसैन सुल्तान, असद मलिक हस्त, एशक आका,
मुहब्बे अली, आराइश खां, ख्वाजा हुसैन, मलिक दाद किर्रानी, शैख घूरन काइम, खान-ए-खाना दिलावर खां, अहमद यूसफ ओगलाकची, हिन्दुबेग कोचीन, किमामबेग उर्दूशाह, पीर कुली सीस्तानी, ख्वाजा पहलवान बदख्शी,
अब्दूशकूर, सुलेमान, मुहम्मद जमान मिर्जा, वलीखाजिनक मिर्जा, मुहम्मद सुल्तान मिर्जा, आदिल सुल्तान, कतलक कदम कराविल, शाहहुसैन बारकी, जानीबेग अन्का, मोमिन अन्का, अमीर जलाल खां,
मुहम्मद खलील आख्ताबेगी, कमाल खां, निजाम खां, मलिक कासिम, खुसरो कोकलताश, रुस्तम तुर्कमान, बाबा कशका, ख्वाजा हुसैन वज़ीर, अब्दुल अजीज मीर आखोर मुहम्मद अली खिंगजंग व अन्य।
बाबर द्वारा की गई फौजी जमावट :- तोपों की पंक्ति के पीछे बाबर की सेना कई भागों में बांटी गई थी। बाबर ने अपनी सेना की हरावल (अग्रिम पंक्ति) को 2 भागों में बांटा। हरावल के दक्षिण पार्श्व में बाबर ने हुमायूं के नेतृत्व में एक सेना खड़ी की।
बाबर स्वयं हरावल के दोनों भागों के बीच में कुछ पीछे की ओर एक अलग सेना के साथ तैनात था। बाबर घोड़े पर सवार था। इनके अलावा बाबर ने 2 सेनाएं अलग-अलग दिशाओं में युद्धभूमि से दूर खड़ी की। हरावल के वाम पार्श्व में मेहंदी ख्वाजा आदि को तैनात किया गया।
इराक का राजदूत सुलेमान आका और सीस्तान का हुसैन आका बाबर के पास पहले ही मौजूद थे। ये दोनों इस बड़े युद्ध को देखना चाहते थे। इनका काम लड़ने का नहीं था। बाबर ने इन दोनों को हुमायूं के अधीनस्थ सैन्य के पास खड़े रहकर युद्ध देखने की सलाह दी।
इस युद्ध के सैनिक आंकड़े बहुत अस्पष्ट हैं। अगले भागों में दोनों पक्षों के सैनिक आंकड़ों पर शोधपरक लेख विस्तार से लिखा जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)