1527 ई. – बाबर की धौलपुर विजय :- मुगल बादशाह बाबर ने बाबा कुली बेग को दूत बनाकर धौलपुर के मोहम्मद जेतून के पास भेजकर अधीनता स्वीकार करने के लिए कहलवाया।
मोहम्मद जेतून ने बाबा कुली बेग से कहा कि “मैं तो मेवाड़ के राणा सांगा का ताबेदार (अधीनस्थ) हूँ, इसलिए आपका ताबेदार बनूंगा, तो राणा धौलपुर पर चढ़ाई जरूर करेगा”
कुली बेग ने यह बात बाबर को बताई तो बाबर ने धौलपुर पर हमला करने का फैसला किया। बाबर ने जुनैद बरलास को फ़ौज समेत भेजकर धौलपुर पर फ़तह हासिल की।
महाराणा सांगा की खंडार विजय :- बाबर द्वारा पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी को मारने से महाराणा सांगा को इतना मालूम पड़ गया था कि हिंदुस्तान में उनका सबसे प्रबल शत्रु अपनी जड़ें जमाने के लिए तैयार है।
इसलिए महाराणा सांगा ने भी अपने राज्य की सीमाओं का और अधिक विस्तार करना तय किया। रणथंभौर के निकट स्थित खंडार का किला वर्तमान में सवाई माधोपुर जिले में स्थित है। खंडार के किले पर हसन का राज था।
महाराणा सांगा ने खंडार पर चढ़ाई कर 3 महीने तक किला घेरे रखा। हसन को यकीन हो गया कि महाराणा सांगा से जीतना नामुमकिन है, इसलिए उसने किले से बाहर निकलकर आत्मसमर्पण कर दिया और सन्धि करके खण्डार का किला महाराणा को सौंप दिया।
बाबर द्वारा विशेष तोप ढलवाना :- बाबर जानता था कि हिंदुस्तान में उसके सबसे बड़े शत्रु महाराणा सांगा ही हैं और उनसे युद्ध की घड़ी भी निकट आ गई है।
महाराणा सांगा के विरुद्ध लड़ाई में उपयोग करने के लिए बाबर ने उस्ताद अली कुली से कहा कि “मुझे राणा के खिलाफ़ लड़ाई से पहले एक बढ़िया तोप बनवाकर दो।” अली कुली ने कहा कि “आपने जितना वक्त दिया है, उसमें तोप बनवाने का काम पूरा हो जाएगा।”
अली कुली द्वारा तय वक्त पर तोप निर्माण का काम पूरा न हो सका, उसे लगा कि उसने अपने बादशाह को निराश कर दिया। इसलिए वह भट्टी में गिरकर आत्महत्या करने लगा, लेकिन बाबर ने उसको रोककर तसल्ली दी।
बाबर द्वारा उम्मीद बंधवाने के बाद अली कुली ने मन लगाकर तोप ढलवाने के काम को तेजी से आगे बढ़ाया। 10 फ़रवरी, 1527 ई. को उस्ताद अली कुली ने तोप तैयार करके बाबर की मौजूदगी में चलाई, जिसका गोला 600 क़दम की दूरी पर जाकर गिरा।
बाबर ने खुश होकर उसको एक घोड़ा दिया। कई जगह पढ़ने में आता है कि हिंदुस्तान में तोप व बारूद का प्रयोग पहली बार बाबर ने ही किया था, परन्तु यह सत्य नहीं है।
इतिहास का गहन अध्ययन करने से मालूम पड़ता है कि बाबर से 200 वर्ष पूर्व ही हिंदुस्तान में तोप व बारूद का प्रयोग हो चुका था। जब महमूद बेगड़ा ने पावागढ़ पर हमला किया था, तब उसने मलिक अयाज़ के ज़रिए तोपों का प्रयोग किया था।
इसी तरह मालवा के महमूद खिलजी प्रथम ने महाराणा कुम्भा के शासनकाल में मांडलगढ़ पर हमला किया तब तोपों का प्रयोग किया था। इनसे भी अधिक पहले विजयनगर साम्राज्य व बहमनी सुल्तानों के बीच हुई लड़ाइयों में भी तोपों के प्रयोग का वर्णन मिलता है।
लेकिन हिन्दू शासकों द्वारा 16वीं सदी से पहले तोपों के प्रयोग का वर्णन कहीं पढ़ने में नहीं मिला है। जिसका कारण सम्भव है कि मुस्लिमों ने यह कला अपने तक ही सीमित रखी हो या सम्भव है कुछ और कारण रहा हो।
हसन खां मेवाती का महाराणा से मिल जाना :- जब पानीपत की लड़ाई हुई, तब मेवात की तरफ से अफगानों ने इब्राहिम लोदी का साथ दिया था। उस लड़ाई में इब्राहिम लोदी तो मारा गया और मेवात के हसन खां के बेेेटे नाहर खां को बाबर ने ओल के तौर पर क़ैद कर लिया था।
(ओल :- जब कोई शासक या व्यक्ति किसी अन्य शासक या व्यक्ति को दबाकर उसे जीवित छोड़ देता या माफ कर देता या उसका राज्य उसे वापिस लौटा देता था तो पराजित व्यक्ति से वह कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति अपने साथ ले जाता था, जो कि पराजित व्यक्ति का संबंधी हो या खास हो, ताकि पराजित व्यक्ति दोबारा उससे लड़ने की जुर्रत न कर सके)
लेकिन अब जब महाराणा सांगा लगातार अपने साम्राज्य का विस्तार करते जा रहे थे, तो बाबर ने विचार किया कि पश्चिमी अफगानों को अपने साथ मिला लेना चाहिए।
बाबर ने नाहर खां को कैद से छोड़ दिया और उसे एक खिलअत भेंट करके हसन खां के पास भेज दिया। बाबर को लगा कि ऐसा करने से हसन खां खुश होकर उसके साथ मिल जाएगा, परन्तु हुआ बिल्कुल उल्टा। हसन खां मेवाती अपनी फ़ौज समेत महाराणा सांगा से मिल गए।
बाबर के लिए मुसीबतें बढ़ती जा रही थीं। उसके लिए महाराणा सांगा से जूझना सीधे मृत्यु से लड़ना था, क्योंकि महाराणा सांगा से सामना करने के दो ही परिणाम थे :- या तो बाबर महाराणा सांगा को परास्त करके हिंदुस्तान में अपनी जड़ें जमा ले या फिर हिंदुस्तान फतह करने का ख्वाब लेकर अपने वतन लौट जाए।
अगले भाग में बयाना के भीषण युद्ध का वर्णन किया जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)