1524 ई. – बहादुर खां द्वारा मुसीबत के समय महाराणा सांगा की शरण में आना :- गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर के 8 बेटे थे, जिनमें सबसे बड़ा सिकन्दर था। सिकंदर खां का छोटा भाई बहादुर खां था।
बहादुर खां अपने बड़े भाई का हक़ मारकर गद्दी हासिल करना चाहता था। एक दिन एक फकीर ने भविष्यवाणी की कि गुजरात का अगला सुल्तान बहादुर ही बनेगा। ये बात सिकन्दर को पता चली, तो वह बहादुर को मारने की योजना बनाने लगा।
बहादुरशाह अपनी जान बचाकर भाग निकला और भागते समय उस फकीर के पास गया। फ़क़ीर ने उससे पूछा कि तू गुजरात का सुल्तान बनने के अलावा और क्या चाहता है ?
बहादुर ने कहा कि “मेवाड़ के राणा सांगा ने अहमदनगर को जीतकर वहाँ के मुसलमानों को मार दिया, इसलिए मैं चित्तौड़ को नेस्तनाबूद करना चाहता हूं।”
फ़क़ीर ने कहा कि “चित्तौड़ की बर्बादी के साथ ही तू भी खत्म हो जाएगा।” तब बहादुर ने कहा कि “इसकी मुझे कोई परवाह नहीं है, बस मेरा बदला पूरा हो जाए।”
एक तरफ तो बहादुर मेवाड़ से बदला लेना चाहता था और दूसरी तरफ़ मुसीबत की इस घड़ी में उसे मेवाड़ के अलावा शरण लेने लायक कोई दूसरी जगह भी नहीं दिखी। वह अपने 2 भाईयों चांद खां और इब्राहिम खां को साथ लेकर चाम्पानेर और बांसवाड़ा होता हुआ चित्तौड़ पहुंचा।
महाराणा सांगा ने बहादुर खां को उसके भाइयों समेत शरण दे दी। महाराणा की माता झालीजी तो बहादुर को अपने बेटे समान मानने लगी और उसको बेटा कहकर ही पुकारती थीं।
बहादुर खां द्वारा महाराणा सांगा के भतीजे की हत्या :- एक दिन महाराणा सांगा के भतीजे ने बहादुर खां को किले में दावत दी, जहां नाच-गान भी रखा गया। जलसे के दौरान एक सुंदर लड़की को देखकर बहादुर खां बड़ा खुश हुआ और उसकी तारीफ करने लगा।
महाराणा के भतीजे ने बहादुर खां से कहा कि “जब महाराणा सांगा ने अहमदनगर पर हमला किया था, तब वहां से कई मुस्लिम औरतें कैद करके यहां लाई गई थीं। जिस शरीफ़ज़ादी की तुम तारीफ कर रहे, उसको तो मैं ख़ुद यहां लाया था। इसका बाप एक काज़ी था, जिसको मैंने अपने हाथों से मारा”
ये बात बहादुर खां से सहन न हुई और उसने गुस्से में आकर तलवार निकाली और ऐसा तेज़ वार किया कि महाराणा सांगा के भतीजे के 2 टुकड़े हो गए। इसके तुरंत बाद वहां मौजूद राजपूतों ने बहादुर खां को घेर लिया।
महाराणा सांगा बहादुर खां को मृत्युदण्ड देते, उसके पहले ही राजमाता झालीजी हाथ में कटार लेकर वहां आईं और कहा कि “अगर इसे जीवित नहीं जाने दिया गया, तो मैं इस कटार से मर जाऊंगी”
बहादुर खां को पता था कि अब यहां के राजपूत उसे कभी भी मार सकते हैं, इसलिए वह मेवात की तरफ भाग निकला।
1526 ई. – मेवाड़ी वीरों के हाथों शरजाह खां का वध :- इस वर्ष 15 फरवरी को गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर की मृत्यु हो गई। इसका बड़ा बेटा सिकन्दर तख्त पर बैठा और छोटा भाई लतीफ खां बगावत करके महाराणा सांगा की शरण में चित्तौड़ आ गया।
शरणागत रक्षक महाराणा सांगा ने लतीफ खां को शरण दे दी। सुल्तान सिकन्दर ने लतीफ खां को पकड़ने के लिए शरजाह खां को फ़ौज देकर चित्तौड़ की तरफ भेजा।
शरजाह खां के फ़ौज समेत मेवाड़ के जंगलों में आने के बाद महाराणा सांगा ने पहाड़ी नाकेबंदी करवाकर भागने के रास्ते बंद करवा दिए। मेवाड़ी बहादुरों ने शरजाह खां को उसके 1700 सैनिकों समेत कत्ल किया।
बहादुर खां का गुजरात का सुल्तान बनना :- सुल्तान सिकंदर ने केसर खां को फ़ौज देकर चित्तौड़ की तरफ़ भेजा, लेकिन मात्र 3-4 महीने राज करने के बाद ही सिकन्दर की मृत्यु हो गई। ये ख़बर केसर खां को मिली, तो वो बीच रास्ते से वापिस लौट गया।
सिकन्दर के भाई बहादुर खां को पता चला, तो उसने गुजरात के तख़्त पर बैठने की कोशिश शुरू कर दी और वह चित्तौड़ की तरफ़ आया। चित्तौड़ में कई गुजराती सिपाही भी आकर बहादुर खां से मिल गए।
इन दिनों बहादुर खां केे भाई चांद खां और इब्राहिम भी चित्तौड़ में ही शरण लिए हुए थे। इब्राहिम तो बहादुर खां के साथ गुजरात की तरफ गया और चांद खां चित्तौड़ में ही ठहरा रहा।
इस तरह बहादुर खां फ़ौज समेत गुजरात गया और सुल्तान बहादुरशाह के नाम से तख़्त पर बैठा। किसे मालूम था कि जिस बहादुर खां को मेवाड़ ने दो बार शरण दी थी, राजमाता ने जिसे अपना बेटा मानकर अपनी पनाह में रखा, वही एक दिन चित्तौड़ के दूसरे जौहर का कारण बनेगा।
कुँवर भोजराज का देहांत :- महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज (भक्त शिरोमणि मीराबाई के पति) का देहांत हो गया। कुँवर भोजराज का विवाह मीराबाई जी से 1516 ई. में हुआ व देहांत 1518 से 1523 ई. के मध्य हुआ।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)