1520 ई. – महाराणा सांगा द्वारा बादशाही मुल्क लूटना :- ईडर के हाकिम निजामुल्मुल्क द्वारा एक कुत्ते का नाम संग्रामसिंह रखने के प्रतिशोध स्वरूप महाराणा सांगा ने ईडर पर चढ़ाई करके विजय प्राप्त की थी व हज़ारों मुसलमानों को मार दिया व कइयों को कैद किया।
अहमदनगर में कहर बरपाने के बाद अगले दिन महाराणा सांगा बड़नगर पहुंचे, जहां ब्राह्मणों ने महाराणा से विनती करते हुए कहा कि “आपके पूर्वजों ने हमेशा हमारी सहायता की है, इसलिए आप बड़नगर को न लूटें”
महाराणा सांगा ने उनकी बात मानकर वहां से प्रस्थान किया और बीसलनगर पहुंचे। बीसलनगर की लड़ाई में मेवाड़ी फ़ौज के हाथों वहां का हाकिम हातिम खां मारा गया। महाराणा ने बीसलनगर को लूट लिया।
इस प्रकार महाराणा सांगा ने अपने अपमान का बदला लिया, गुजरात के सुल्तान मजफ्फर का घमंड चूर-चूर किया और रायमल राठौड़ को ईडर की गद्दी सौंपकर चित्तौड़ की तरफ़ प्रस्थान किया।
रणथंभौर विजय :- रणथंभौर दुर्ग पर मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय का राज था, पर महमूद को क़ैद से छोड़ते समय महाराणा सांगा ने उसका आधा राज छीना था, उसमें रणथंभौर भी शामिल था।
लेकिन जब महाराणा सांगा के सिपहसलार रणथंभौर पहुंचे, तो महमूद द्वारा तैनात सेनापति अली ने किला सौंपने से इनकार कर दिया। तब महाराणा सांगा ने फ़ौज भेजकर अली को वहां से खदेड़ा और रणथंभौर पर विजय प्राप्त की।
1520 ई. – सुल्तान मुजफ्फर द्वारा महाराणा सांगा के विरुद्ध फ़ौज भेजना :- महाराणा सांगा द्वारा गुजरात में लूटमार करने के कारण गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर ने लड़ाई की तैयारियां शुरू कर दीं।
सुल्तान मुजफ्फर ने अपनी सेना को उत्साहित करने के लिए सैनिकों का वेतन बढ़ा दिया और एक वर्ष का वेतन एक साथ दे दिया। मुजफ्फर ने इमादुल्मुल्क और केसर खां को 100 हाथी व हज़ारों जंगी सवार देकर रवाना किया।
इन गुजराती सिपहसलारों ने सरगच नामक कस्बे में पड़ाव डाला, जहां इन्हें ख़बर मिली कि राणा सांगा तो गुजरात का मुल्क लूटकर मेवाड़ चले गए हैं। फिर इस गुजराती फ़ौज ने अहमदनगर में पड़ाव डाला।
इन्हीं दिनों सोरठ का हाकिम मलिक अयाज़ 20 हज़ार की फ़ौज व तोपखाने के साथ गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर की सेवा में उपस्थित हुआ।
मलिक अयाज़ ने सुल्तान मुजफ्फर से कहा कि “राणा सांगा के ख़िलाफ़ जंग में मुझको कमान सौंपी जावे, तो मैं वादा करता हूँ कि राणा को बंदी बनाऊंगा या उसका कत्ल करूँगा”। सुल्तान ने खुश होकर उससे कहा कि “सही मौके का इंतज़ार करो”।
दिसंबर, 1520 ई. – गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर ने मलिक अयाज़ को एक खिलअत, एक लाख जंगी सवार, 100 हाथी व तोपखाना देकर चित्तौड़ को बर्बाद करने भेजा।
सुल्तान मुजफ्फर ने मलिक अयाज़ की मदद ख़ातिर ताज खां व किवामुल्मुल्क को 20 हज़ार जंगी सवार और 20 हाथी देकर भेजा। इस तरह 1 लाख 20 हज़ार की जर्रार फ़ौज ने गुजरात से कूच किया।
मलिक अयाज़ फ़ौज समेत मोडासा होते हुए डूंगरपुर पहुंचा। डूंगरपुर में तबाही मचाकर ये फ़ौज बांसवाड़ा पहुंची, जहां के पहाड़ों में रावल उदयसिंह और उग्रसेन पूर्बिया से लड़ाई हुई।
इस लड़ाई में 80 राजपूत काम आए और उग्रसेन ज़ख्मी हुए। मलिक अयाज़ ने वागड़ से कूच करके मन्दसौर का किला घेर लिया और सुरंग खोदकर बारुद से किले की दीवार उड़ा दी।
महाराणा सांगा ने मन्दसौर में अशोकमल नामक एक राजपूत सरदार को तैनात कर रखा था। महाराणा सांगा को गुजराती फ़ौज के आक्रमण की ख़बर मिली, तो उन्होंने फ़ौज समेत मन्दसौर पर चढ़ाई की।
इन्हीं दिनों मांडू का सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय भी मलिक अयाज़ की मदद ख़ातिर फ़ौज समेत आ पहुंचा। ये वही महमूद खिलजी था, जिसको महाराणा सांगा ने कैद करके छोड़ दिया था। हालांकि महमूद के एक बेटे को उन्होंने अपने यहीं रखा था।
महाराणा सांगा ने मंदसौर से 12 कोस दूर स्थित नांदसा गांव में पड़ाव डाला, जहां रायसेन के सलहदी तंवर 10 हज़ार की फ़ौज समेत महाराणा की सेवा में हाजिर हुए।
इसी तरह आसपास के कुछ और छोटे-बड़े राजा भी अपनी-अपनी सेनाओं सहित महाराणा सांगा की फ़ौज में शामिल हो गए। मलिक अयाज़ और उसके अफ़सरों के बीच तकरार हो गई, जिससे वह महाराणा का मुकाबला करने के लिए आगे नहीं बढ़ सका।
मालवा का महमूद खिलजी व किवामुल्मुल्क, ये दोनों महाराणा सांगा से युद्ध लड़ना चाहते थे, पर मलिक अयाज़ लड़ने से मुकर गया।
महमूद खिलजी ने इस युद्ध में भाग इसलिए लिया था, ताकि वह महाराणा सांगा को पराजित करके बदला ले सके व अपने बेटे को महाराणा की कैद से छुड़वा सके।
लेकिन मलिक अयाज़ के पीछे हटने के कारण 1 लाख सैनिक भी उसके साथ लौट गए, जिससे महमूद लड़ने का साहस न कर सका। अब महमूद को यह भय लगने लगा कि कहीं महाराणा सांगा मेरे बेटे को न मरवा दे।
इसलिए उसने महाराणा सांगा से सन्धि की और जुर्माना देकर अपने बेटे को कैद से छुड़ाया। जब मलिक अयाज़ सुल्तान मुजफ्फर के सामने पहुंचा, तो मुजफ्फर ने नाराज़ होकर उसे बुरा भला कहकर सोरठ भेज दिया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)