मेवाड़ के महाराणा सांगा (भाग – 6)

1518 ई. – महाराणा सांगा व गुजरात के सुल्तान द्वारा ईडर के उत्तराधिकार संघर्ष में हस्तक्षेप :- ईडर के उत्तराधिकार संघर्ष में महाराणा सांगा द्वारा रायमल राठौड़ का पक्ष लिए जाने पर भारमल नाराज़ होकर गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर की शरण में चले गए और मदद मांगी।

सुल्तान मुजफ्फर ने निजामुल्मुल्क को फ़ौज समेत ईडर पर चढ़ाई करने भेजा। रायमल घबराकर बीजानगर की पहाड़ियों में चले गए और बाद में गुजराती सेनाओं से कई लड़ाइयां लड़े। आखिर में निजामुल्मुल्क ने ईडर पर कब्ज़ा कर लिया।

1520 ई. – महाराणा सांगा की ईडर पर चढ़ाई :- एक दिन एक भाट ने निजामुल्मुल्क के सामने महाराणा सांगा की प्रशंसा करते हुए कहा कि “आज पूरे हिंदुस्तान में महाराणा संग्रामसिंह जैसा कोई दूसरा राजा नहीं है। महाराणा ने रायमल को शरण दी है, इसलिए आप भले ही थोड़े दिन ईडर में रह लो, पर अंत में राज्य तो रायमल को ही मिलेगा”

ये सुनकर निजामुल्मुल्क ने एक कुत्ते का नाम संग्रामसिंह रखकर उसे ईडर के दरवाजे पर बांध दिया और भाट से कहा कि “अगर संग्रामसिंह ऐसा ही मर्द है, तो यहां आकर अपनी किस्मत आज़मावे। मैं भी देखता हूँ कि वह कुत्ता किस तरह रायमल की हिफाज़त करता है। मैं यहीं बैठा हूँ, वह आता क्यों नहीं है यहां ?”

महाराणा सांगा

भाट ने कहा कि “महाराणा सांगा जरूर आवेंगे और तुमको ईडर से निकालेंगे”। फिर इस भाट ने चित्तौड़ आकर महाराणा सांगा को यह बात बताई, तो महाराणा ने 40 हज़ार सवारों समेत ईडर पर चढाई की।

रास्ते में डूंगरपुर रावल उदयसिंह अपनी फौज समेत महाराणा की सेवा में हाजिर हुए। निजामुल्मुल्क ने सुल्तान मुजफ्फर को खत लिखकर मदद मांगी, लेकिन सुल्तान के मंत्रियों और निजामुल्मुल्क के बीच अनबन थी, जिसके कारण मंत्रियों ने सुल्तान से कहा कि इस वक्त निजामुल्मुल्क की मदद वास्ते फ़ौज भेजना ठीक नहीं है।

सुल्तान मुजफ्फर फौज समेत रवाना हुआ और मुहम्मदाबाद पहुंचा, जहां उसे निजामुल्मुल्क का खत मिला, जिसमें लिखा था कि “राणा के पास 40 हज़ार सवार हैं और मेरे पास महज़ 5000, इस ख़ातिर ईडर को बचाना नामुमकिन है।”

मुजफ्फर ने फिर मंत्रियों से सलाह की और मंत्रियों ने फ़ौज भेजना गलत बताया। गुजराती सुल्तान और उसके मंत्रियों के बीच सलाह मशवरे होते रहे और इधर महाराणा सांगा ईडर तक आ पहुंचे।

निजामुल्मुल्क लड़ने के लिए किले से बाहर निकला, पर महाराणा की फौज देखकर बिना लड़े ही भागकर फिर से ईडर के किले में जा छिपा। कुछ समय बाद वह ईडर छोड़कर अहमदनगर के किले में चला गया। महाराणा सांगा ने ईडर पर अधिकार करके वहां की गद्दी पर रायमल राठौड़ को बिठाया।

महाराणा सांगा

महाराणा सांगा की अहमदनगर पर चढाई :- निजामुल्मुल्क के अहमदनगर में छिपे होने की खबर सुनकर महाराणा सांगा ने अहमदनगर के किले को घेर लिया। निजामुल्मुल्क के सैनिकों ने किले के द्वार बन्द कर दिए और किले से ही हमले किए।

महाराणा की तरफ से डूंगरसिंह चौहान सख्त जख्मी हुए और उनके कई भाई-बेटे इस लड़ाई में काम आए। महाराणा ने डूंगरसिंह को बदनोर की जागीर दी थी।

बदनोर में डूंगरसिंह द्वारा बनवाए हुए महल, तालाब, बावड़ियाँ आदि मौजूद हैं। वर्तमान में डूंगरसिंह चौहान के वंशज वागड़ में रहते हैं। डूंगरसिंह चौहान के पुत्र कान्हसिंह चौहान ने बड़ी बहादुरी दिखाई।

कान्हसिंह ने महावत से कहा कि हाथी से किले के दरवाजे तुड़वा दो। हाथी ने दरवाजे पर लगी कीलों से डरकर हमला न किया, जिससे कान्हसिंह ने दरवाजे पर लगी कीलों को पकड़ा और हाथी से कहा कि टक्कर मारे।

हाथी की टक्कर से दरवाजा खुल गया, पर कान्हसिंह के जिस्म से कीले आरपार हो गए व वे वीरगति को प्राप्त हुए। ऐसी ही एक घटना महाराणा अमरसिंह के समय ऊँठाळा दुर्ग में हुई, जिसमें बल्लू शक्तावत ने वही काम किया जो यहां कान्हसिंह ने किया।

कान्हसिंह की वीरता से उत्साहित होकर राजपूतों ने अहमदनगर के किले में घुसकर सब मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया।

निजामुल्मुल्क अपनी फौज समेत किले के पीछे की खिड़की से भाग रहा था कि तभी उस भाट ने देख लिया, जिसने महाराणा सांगा की तारीफ की थी। भाट ने कहा कि “तुम तो सदा ही महाराणा के आगे भागा करते हो”।

ये सुनकर निजामुल्मुल्क लज्जित हुआ और बाहर निकलकर नदी के मुहाने पर जाकर महाराणा का सामना करने के लिए रुक गया। महाराणा सांगा ने अहमदनगर का किला फतह किया व निजामुल्मुल्क से मुकाबले के लिए नदी की तरफ निकले।

महाराणा सांगा

नदी किनारे निजामुल्मुल्क ने 1200 जंगी सवार व 1000 पैदल फौज के साथ महाराणा सांगा की फौज का सामना किया। मुबारिजुल्मुल्क का सिपहसालार असत खां मारा गया।

मुबारिजुल्मुल्क जख्मी हालत में खिज्र खां के साथ भागकर अहमदाबाद चला गया। अहमदनगर की लड़ाई में महाराणा सांगा ने कई मुसलमानों को कैद किया। फिर महाराणा सांगा ने फ़ौज समेत बड़नगर की तरफ कूच किया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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