मेवाड़ के महाराणा सांगा (भाग -5)

मेदिनीराय का मेवाड़ आगमन :- जब मालवा/मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी की स्थिति कमजोर हुई, तो वहां के मुस्लिम अमीरों ने उसको बर्खास्त करके उसके भाई साहिब खां को मालवा की गद्दी पर बिठा दिया।

इस स्थिति में मालवा के प्रबल राजपूत सरदार मेदिनीराय ने साहिब खां को हटाकर पुनः महमूद को वहां का राज दिलवा दिया। फिर महमूद ने मेदिनीराय को प्रधानमंत्री बना दिया।

विद्रोही अमीरों ने दिल्ली और गुजरात के सुल्तानों की सम्मिलित सेना के साथ मालवे पर चढ़ाई की, तो मेदिनीराय ने इस सम्मिलित सेना को करारी शिकस्त दी। फिर अमीरों ने महमूद को मेदिनीराय की बढ़ती शक्ति का भय दिखाकर भड़काया।

मेदिनीराय को इस बात की भनक लग गई कि महमूद उन्हें मरवाना चाहता है। अब महमूद को भी मेदिनीराय से भय लगने लगा, क्योंकि मेदिनीराय सचेत थे। महमूद भागकर गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर के पास गया और मदद मांगी।

मुजफ्फर ने आसफ ख़ाँ के नेतृत्व में एक सेना भेज दी। महमूद व आसफ खां दोनों की सेनाएं मालवा की तरफ बढ़ने लगी। ये देखकर मेदिनीराय मालवा में अपने बेटे को नियुक्त करके मेवाड़ के महाराणा सांगा की शरण में चले आए।

मेदिनीराय

1519 ई. – गागरोन का युद्ध :- महाराणा सांगा फ़ौज व मेदिनीराय को साथ लेकर मालवा की तरफ रवाना हुए। जब वे सारंगपुर पहुंचे, तब पता चला कि गुजरात के सुल्तान की सेना की मदद से महमूद ने मालवा में तैनात राजपूतों को परास्त करके अधिकार कर लिया है।

ये खबर सुनकर महाराणा सांगा पुनः मेवाड़ लौट आए और उन्होंने मेदिनीराय को गागरोन व चंदेरी की जागीरें देकर अपना सरदार बनाया। गुजरात के सुल्तान की सेना की सहायता से महमूद ने मालवा से रवाना होकर गागरोन दुर्ग पर चढ़ाई कर दी।

इस वक्त मेदिनीराय ने भीमकरण को गागरोन में प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त कर रखा था। महाराणा सांगा ने महमूद से सामना करने के लिए 50 हज़ार की फ़ौज समेत गागरोन की तरफ चढाई की।

इस वक़्त महमूद के साथ गुजरात के बादशाह की फ़ौज भी शामिल थी, जिसका सेनापति आसिफ़ खां था। आसिफ खां ने महाराणा की जर्रार फ़ौज देखकर महमूद को हिदायत दी कि “राणा से आज जंग करना मुनासिब नहीं”

पर महमूद नहीं माना और दोनों फ़ौजें आमने-सामने आई। इस लड़ाई में महमूद के 32 खास सिपहसालार, आसफ खां गुजराती का बेटा व हजारों सैनिक कत्ल हुए।

युद्धभूमि में महमूद जिस जगह लड़ रहा था, वहां आसपास उसके सभी सैनिक मारे जा चुके थे। महमूद बहादुरी से लड़ रहा था, पर सख्त ज़ख्मी होकर घोड़े से गिर पड़ा।

महियारिया गोत्र के चारण हरिदास ने जंग के मैदान में घोड़े से गिरे हुए महमूद को पकड़ लिया और महाराणा के सामने हाजिर किया। महाराणा सांगा महमूद व उसके बेटे को पालकियों में बिठाकर चित्तौड़ ले आए।

महाराणा ने महमूद का इलाज करवाया और चित्तौड़गढ़ में क़ैद में रखा। इस विजय की खुशी में महाराणा सांगा ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थिर रत्नेसर तालाब पर एक भव्य दरबार रखा।

महाराणा सांगा द्वारा महमूद को कैद करने का दृश्य

महाराणा सांगा ने खुश होकर चित्तौड़ का राज हरिदास को सौंपना चाहा, पर हरिदास ने लेने से मना किया व सिर्फ 12 गाँव लेकर ही सन्तुष्ट हुए। इन 12 गांव में से पांचली गांव में अब तक हरिदास के वंशज मौजूद हैं।

जैतसिंह दधिवाड़िया के 4 पुत्र हुए :- महपा, मांडण, देवा और बरसिंह। जैतसिंह को पहले धारता व गोठीपा गांव जागीर में दिए गए थे।

महाराणा सांगा ने उक्त दरबार में महपा को ढोकलिया गांव व मांडण को शावर गांव भेंट किया, तो इन दोनों भाइयों ने अपने पिता की जागीर के गांव अपने छोटे भाइयों को दे दिए। देवा को धारता गांव व बरसिंह को गोठीपा गांव मिला।

महाराणा द्वारा महमूद को क़ैद से मुक्त करना :- महाराणा सांगा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय को 3 माह तक क़ैद में रखा और फिर एक दिन महाराणा ने महमूद को एक गुलदस्ता देना चाहा।

तो महमूद ने महाराणा से कहा कि “किसी चीज को देने के दो ही तरीके होते हैं। या तो हाथ ऊंचा करके अपने से छोटे को दिया जाए या फिर हाथ नीचा करके अपने से बड़े को नज़र (भेंट) किया जाए। मैं तो आपका कैदी हूँ, इसलिए नज़र का तो कोई सवाल नहीं उठता। इस ख़ातिर एक भिखारी की तरह इस गुलदस्ते को लेने के लिए मैं अपने हाथ नहीं पसार सकता”

ये सुनकर महाराणा सांगा बड़े प्रसन्न हुए। महाराणा सांगा ने महमूद को रिहा किया और उसे 1 हज़ार राजपूत साथ भेजकर इज़्ज़त के साथ विदा किया। साथ ही साथ उसे मांडू का आधा राज भी लौटा दिया गया।

महमूद को विदा करने से पहले महाराणा सांगा ने उससे फ़ौज खर्च, एक रत्नजड़ित मुकुट व सोने की कमरपेटी ली। ये मुकुट व कमरपेटी होशंगशाह के ज़माने से मालवा वालों का राज्य चिह्न था। भविष्य में महमूद दोबारा हमला ना करे, इसलिए उसके बेटे को महाराणा ने अपने पास ही रखा।

तबकात-ए-अकबरी में निजामुद्दीन बख्शी लिखता है “जो काम राणा सांगा से हुआ, वैसा अजीब काम आज तक किसी से न हुआ। सुल्तान मुजफ्फर गुजराती ने तो महमूद को अपनी पनाह में आने पर सिर्फ उसकी मदद की थी, लेकिन लड़ाई में फतह पाने के बाद दुश्मन को गिरफ्तार करके वापिस उसको राज्य दे देना, यह काम आज तक मालूम नहीं कि किसी दूसरे ने किया हो”

महाराणा सांगा द्वारा दिखाई गई इस उदारता की प्रशंसा समकालीन मुस्लिम लेखकों ने की है, लेकिन राजनैतिक दृष्टिकोण से महाराणा का यह कदम हानिकारक सिद्ध हुआ।

ऐसी प्रसिद्धि है कि महाराणा सांगा ने चित्तौड़गढ़ में भाक्सी नामक स्थान पर महमूद को कैद रखा था, लेकिन ओझा जी का मत है कि भाक्सी काफी छोटा स्थान है, जहां महमूद जैसे बड़े शासक को कैद नहीं रखा जा सकता, उसे कहीं अन्यत्र कैद रखा होगा।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित भाक्सी

जब महमूद खिलजी मांडू पहुंचा, तब गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर ने अपने बहुत से सिपहसालार महमूद के पास भेजे। ये सिपहसालार महमूद का हाल पूछने के लिए भेजे गए थे, क्योंकि वह कैद में रहकर लौटा था।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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