1518 ई. – बाड़ी (धौलपुर) का युद्ध :- खातोली के युद्ध में हुई पराजय का बदला लेने के लिए दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी ने सेनापति मियां माखन के नेतृत्व में एक बड़ी फ़ौज मेवाड़ की तरफ रवाना की।
सेनापति मियां माखन के नेतृत्व में मेवाड़ अभियान में भाग लेने वाले बादशाही सिपहसलार :- मियां हुसैन खां ज़रबख्श, मियां खानखाना फारमुली, मियां मारूफ़, सैय्यद खां फुरत, हाजी खां, दौलत खां, अल्लाहदाद खां, यूसफ़ खां।
मेवाड़ की तरफ़ कूच करते समय रास्ते में किसी बात पर मियां माखन और हुसैन खां के बीच तकरार हो गई। हुसैन खां सुल्तान इब्राहिम लोदी से भी नाराज़ चल रहा था। ऊपर से मियां माखन से तकरार हो जाने के बाद बात और बिगड़ गई।
हुसैन खां एक हज़ार की फ़ौज लेकर आगे निकल गया और महाराणा सांगा से कहा कि मैं इस जंग में आपकी तरफ से लड़ना चाहता हूँ। महाराणा सांगा ने हुसैन खां को अपनी फौज में शामिल कर लिया।
मियां माखन के पास अभी भी 30 हज़ार सैनिक व 300 हाथी थे। महाराणा सांगा भी दिल्ली की शाही फ़ौज की चढ़ाई की खबर सुनकर फ़ौज समेत चित्तौड़गढ़ से रवाना हुए। महाराणा सांगा स्वयं हाथी पर सवार थे।
दोनों सेनाएं बाड़ी (धौलपुर) में जमा हुईं। मियां माखन ने 7 हज़ार घुड़सवारों सहित सैय्यद खां फुरत और हाजी खां को दायीं ओर, अल्लाहदाद खां, दौलत खां व यूसुफ खां को बायीं ओर तैनात किया।
पहले दिन बाड़ी (धौलपुर) में दोनों पक्षों में लड़ाई हुई, जिसमें दिल्ली की फ़ौज बुरी तरह परास्त हुई। शाही फ़ौज के बहुत से सिपाही मारे गए। जब दोनों पक्षों के बचे-खुचे सिपाही अपने शिविर में गए, तब हुसैन खां ने मियां माखन को एक ख़त लिखा।
इस ख़त में लिखा था कि “अब तुम्हें मालूम हुआ होगा कि एक दिल होकर लड़ने वाले लोग क्या-क्या कर सकते हैं। तुम पर लानत है कि 30 हज़ार सवार होने के बावजूद राजपूतों से हार गए।”
इस वक्त लोदी की फ़ौज की एक और टुकड़ी का नेतृत्व मियां मारूफ कर रहा था। हुसैन खां ने मारूफ़ को भी एक ख़त लिखकर कहा कि “अब तुम्हें मालूम पड़ गया होगा कि मियां माखन किस तरह लड़ाई की कमान संभाल रहा है।”
(हुसैन के कहने का आशय था कि यदि फौज का नेतृत्व उसके हाथ में होता तो शाही सेना की ऐसी पराजय नहीं होती)
रात के वक्त ही मियां मारूफ़, मियां माखन और हुसैन खां ने पत्र के ज़रिए सलाह की और इस नतीजे पर पहुंचे कि “सुल्तान इब्राहिम लोदी ने हमारे साथ सही बर्ताव नहीं किया, फिर भी हमें मिलकर इन राजपूतों से लड़ना चाहिए।”
अगले दिन फिर लड़ाई शुरू हुई। लड़ाई की शुरुआत में ही हुसैन खां महाराणा सांगा की फ़ौज से निकलकर अपनी फौजी टुकड़ी समेत लोदी की फ़ौज से मिल गया। इस वक्त मियां मारूफ़ के नेतृत्व में 6 हज़ार घुड़सवार थे, जो महाराणा सांगा की फ़ौज से 2 मील की दूरी पर था।
तीनों नेतृत्वकर्ताओं ने एक साथ मिलकर मेवाड़ की सेना पर आक्रमण किया, परन्तु यह एकता भी उनके किसी काम न आ सकी। महाराणा सांगा ने इब्राहिम लोदी की इस सेना को बुरी तरह परास्त किया।
लोदी का सेनापति मियां माखन भाग निकला। महाराणा सांगा ने बयाना तक शाही फ़ौज का पीछा किया और मालवा का कुछ भाग अपने अधीन कर लिया।
इस तरह लगातार दूसरी बार पराजित होने से दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी की कमज़ोरी और महाराणा सांगा का रौब समूचे हिंदुस्तान को मालूम पड़ गया। कुछ समय बाद हुसैन खां ने फिर कोई चाल चली, जिससे नाराज़ होकर दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी ने उसको मार दिया।
चन्देरी पर विजय :- चन्देरी के गौड़ राजा महाराणा के आदेश नहीं मानते थे। जब महाराणा सांगा बाड़ी का युद्ध जीतकर मालवा के कुछ भाग जीत रहे थे, तभी उन्होंने ठाकुर कर्मचन्द पंवार के बेटे जगमाल को फौज देकर चन्देरी भेजा।
जगमाल गौड़ राजा को बंदी बनाकर महाराणा के दरबार में ले आए, जहां गौड़ राजा ने महाराणा की अधीनता स्वीकार की। महाराणा सांगा ने जगमाल पर प्रसन्न होकर उनको ‘राव’ का खिताब दिया।
इब्राहिम पूरब दिसा न उलटै, पछम मुदाफर न दै पयाण। दखणी महमदसाह न दौड़े, सांगो दामण त्रहु सुरताण।। अर्थात इब्राहिम पूर्व से, मुजफ्फरशाह पश्चिम से, मुहम्मदशाह दक्षिण से चित्तौड़ की तरफ़ नहीं बढ़ सकते, क्योंकि महाराणा सांगा ने इन तीनों सुल्तानों के पैर जकड़ दिए हैं।
महाराणा सांगा से संबंधित अन्य तथ्य :- महाराणा सांगा के राज में मेवाड़ के प्रधान ने 2 बीघा भूमि देवी के मंदिर के लिए भेंट की थी, जिसका शिलालेख मिला है। महाराणा सांगा ने 5-6 प्रकार के तांबे के सिक्के जारी किए थे।
महाराणा सांगा के राज में तिवाड़ी ब्राम्हणों ने डिग्गी का प्रसिद्ध कल्याणराय जी का मंदिर बनवाया। महाराणा सांगा के शासनकाल में जावर में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की गई।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)