मेवाड़ के महाराणा रायमल (भाग – 4)

1504 ई. – उत्तराधिकार संघर्ष :- महाराणा रायमल के जीते-जी मेवाड़ में उत्तराधिकार संघर्ष शुरु हुआ। यह संघर्ष महाराणा रायमल के शीर्ष 3 पुत्रों (सबसे बड़े पुत्र कुँवर पृथ्वीराज, दूसरे पुत्र कुँवर जयमल व तीसरे पुत्र कुँवर संग्रामसिंह/सांगा) के बीच हुआ।

एक दिन कुंवर पृथ्वीराज, कुंवर जयमल व कुंवर संग्रामसिंह ने जब अपनी-अपनी जन्म-पत्रियां एक विद्वान ज्योतिषि को दिखाई, तो ज्योतिषि ने कहा कि “ग्रह तो कुंवर पृथ्वीराज और कुंवर जयमल के भी ठीक हैं, पर मेवाड़ के महाराणा तो कुंवर संग्रामसिंह बनेंगे”

इस वजह से दोनों बड़े भाईयों ने कुंवर संग्रामसिंह को मारने का इरादा किया। सीधी लड़ाई में कुँवर पृथ्वीराज कुँवर संग्रामसिंह से काफी तेज थे। कुंवर पृथ्वीराज ने तलवार की हूल मारी, जिससे कुंवर संग्रामसिंह की एक आंख फूट गई।

तभी इनके काका कानोड़ के रावत सारंगदेव (सारंगदेवोत राजपूतों के मूलपुरुष व महाराणा लाखा के पुत्र अज्जा के पुत्र) यहां आ पहुंचे। रावत सारंगदेव ने लड़ाई रुकवाकर दोनों को फटकार लगाते हुए कहा कि “तुम अपने पिता के जीवित रहते ये दुष्टता कैसे कर सकते हो ?”

कुँवर पृथ्वीराज द्वारा सांगा की आंख फोड़ने का दृश्य

रावत सारंगदेव कुंवर संग्रामसिंह को कुँवर पृथ्वीराज से बचाकर अपने मकान पर ले गए और उनकी आँख का इलाज करवाया, फिर भी कुँवर की आंख न बच सकी।

रावत सारंगदेव ने अपने भतीजों को सलाह दी कि “ज्योतिषी की बात पर विश्वास करके यूं लड़ना उचित नहीं। अगर उत्तराधिकार की भविष्यवाणी सुननी ही है, तो नाहरमगरा के पास भीमल गांव में तुंगल कुल के चारण की बेटी बीरी देवी से पूछो”

रावत सारंगदेव और तीनों कुंवर वहां पहुंचे, तो बीरी देवी ने कहा कि “कल सुबह आना”। सुबह ये सब वहां पहुंचे, तो कुंवर पृथ्वीराज तो वहां रखे एक सिंहासन पर बैठ गए। कुंवर जयमल इसी सिंहासन के कोने पर बैठे।

कुंवर संग्रामसिंह नीचे चटाई पर बैठे और इसी चटाई के कोने पर रावत सारंगदेव बैठ गए। बीरी देवी आई और जैसे ही कुँवर पृथ्वीराज ने उनसे कुछ पूछना चाहा, तभी बीरी देवी ने उनसे कहा कि “तुम्हें कुछ कहने की आवश्यकता नहीं, मुझे तुम्हारे यहां आने का कारण पहले ही पता है”

देवी ने कहा कि “जो चटाई मैंने मेवाड़ के भावी महाराणा के लिए बिछाई थी, उस पर तो कुंवर संग्रामसिंह बैठ गए, इसलिए महाराणा तो संग्रामसिंह ही बनेंगे। रावत सारंगदेव चटाई के कोने में बैठे, इसलिए वे मेवाड़ के किसी छोटे हिस्से के मुख्तार होंगे। कुँवर पृथ्वीराज और कुँवर जयमल किसी दूसरे के हाथ से मारे जावेंगे”

ये सुनते ही कुँवर पृथ्वीराज और कुँवर जयमल ने कुँवर संग्रामसिंह व रावत सारंगदेव पर हमला कर दिया। कुँवर पृथ्वीराज ने कुँवर संग्रामसिंह पर तलवार से वार किया, पर रावत सारंगदेव ने वह वार अपने सिर पर ले लिया, जिससे कुँवर संग्रामसिंह बच गए।

तीनों भाइयों में उत्तराधिकार संघर्ष का दृश्य

इस विषय में एक कहावत प्रचलित है :- “पीथल खग हाथां पकड़, वह सांगा किय वार। सारंग झेले सीस पर, उणवर साम उबार”।

रावत सारंगदेव सख़्त ज़ख्मी हुए, फिर भी उन्होंने तलवार निकालकर कुँवर पृथ्वीराज पर वार किया, जिससे कुँवर पृथ्वीराज घायल होकर गिर पड़े। इस तरह कुंवर पृथ्वीराज व रावत सारंगदेव तो ज्यादा जख्मी होकर वहीं पड़े रहे।

कुंवर संग्रामसिंह घोड़ा लेकर बच निकले। कुंवर जयमल ने संग्रामसिंह का पीछा किया। सैवंत्री गांव में राठौड़ बीदा जैतमालोत रूपनारायण के दर्शन हेतु आए हुए थे। उन्होंने कुंवर संग्रामसिंह को खून से लथपथ देखा, तो उनको घोड़े से उतारकर घावों पर पट्टियां की।

राठौड़ बीदा मारवाड़ के राव सलखा के दूसरे पुत्र जैतमाल जी के वंशज थे। कुंवर जयमल वहां पहुंचे, तो बीदा ने कुँवर संग्रामसिंह को जयमल के सुपुर्द करने से इनकार किया।

बीदा ने कुंवर संग्रामसिंह को तो गोडवाड़ की तरफ रवाना किया और खुद जयमल से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। बीदा राठौड़ के साथी रायपाल राठौड़ भी कुँवर संग्रामसिंह की रक्षार्थ इसी जगह वीरगति को प्राप्त हुए।

बीदा राठौड़ के वंशज केलवा के राठौड़ हैं। बीदा राठौड़ की छतरी रूपनारायण मंदिर के परिसर में बनी है, जिस पर खुदे हुए लेख में यह घटना विक्रम संवत 1561 ज्येष्ठ वदी 7 (1504 ई.) को घटित होना लिखा है।

कुंवर संग्रामसिंह कुछ दिन मारवाड़ में एक गडरिये के यहां रहे, फिर वहां से निकलकर अजमेर के पास श्रीनगर के ठाकुर करमचन्द पंवार की 2-3 हजार की फौज में वेष बदलकर व पहचान छुपाकर एक आम सैनिक की हैसियत से रहे।

रावत सारंगदेव की पेंटिंग, जो कि मेरे निवेदन पर मित्र दुर्गेश सिंह गहरवार द्वारा बनाई गई

इस पूरे प्रकरण में अक्सर गलती कुँवर पृथ्वीराज की बताई जाती है, पर मेरे अनुसार ये उचित नहीं। कुँवर पृथ्वीराज तेज़ मिजाज के अवश्य थे, परन्तु वे राज्य के वास्तविक उत्तराधिकारी थे। कुँवर जयमल व संग्रामसिंह को इस बखेड़े में नहीं पड़ना चाहिए था।

परन्तु इतिहास तो सदैव तलवार की धार से ही लिखा जाता है। महान व्यक्ति के उत्थान के पीछे कई लोगों का साथ व सहयोग होता है। इस उत्तराधिकार संघर्ष में 2 बार कुँवर संग्रामसिंह के प्राण रावत सारंगदेव ने बचाए व एक बार राठौड़ बीदा ने प्राण बचाए।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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