गयासुद्दीन खिलजी की मेवाड़ पर तीसरी चढ़ाई (1500 ई. से पूर्व की घटना) :- मालवा/मांडू के सुल्तान गयासुद्दीन ने महाराणा रायमल के पास दोस्ती का प्रस्ताव लेकर अपने एक खैरख्वाह को भेजा।
महाराणा रायमल उस मुलाज़िम से बड़ी ही नम्रता से बात कर रहे थे, तभी कुंवर पृथ्वीराज ने ये देखा तो महाराणा से बोले “हुज़ूर, क्या मुसलमानों से इतनी नरमी से बात करते हैं ?”
ये सुनकर वह मुलाज़िम उसी वक्त गुस्से से उठकर सुल्तान गयासुद्दीन के पास पहुंचा और सारा हाल कह सुनाया। सुल्तान गयासुद्दीन ने मेवाड़ पर चढाई की। महाराणा रायमल ने भी कुंवर पृथ्वीराज के नेतृत्व में फौज भेजी।
कुंवर पृथ्वीराज ने महाराणा को वचन दिया कि “आज किसी भी हाल में मैं गयासुद्दीन को बन्दी बनाकर आपके सामने हाजिर करूँगा”। मेवाड़-मारवाड़ की सरहद पर दोनों फ़ौजों में लड़ाई हुई।
दिन भर की लड़ाई के बाद कोई नतीजा नहीं निकला और रात होने पर दोनों फौजें अपने-अपने डेरों में चली गई। कुंवर पृथ्वीराज ने अपना वचन पूरा करने के लिए चालाकी से रात के वक्त 500 मेवाड़ी बहादुरों के साथ सुल्तान के डेरों पर हमला कर दिया।
10-10 राजपूतों के गिरोह बनाए गए और सुल्तान की फ़ौज पर चारों तरफ़ से हमले किए गए। राजपूतों ने खेमों में घुसकर मालवा की फ़ौज तहस-नहस कर दी। कई दुश्मनों को मारने के बाद कुंवर पृथ्वीराज ने सुल्तान गयासुद्दीन को बन्दी बना लिया।
बन्दी बनाकर जब कुंवर चित्तौड़ दुर्ग में जाने लगे, तो बादशाही फौज ने उनको चारों तरफ से घेर लिया। कुंवर पृथ्वीराज ने गयासुद्दीन से कहा कि “अगर ज़िन्दा रहना है, तो बेहतर होगा कि कुल बादशाही फौज पीछे हट जावे”
गयासुद्दीन ने अपनी फ़ौज से कहा कि “अगर तुम लोग राजपूतों पर हमला करोगे, तो ये लोग मुझको हर्गिज़ जीता नहीं छोड़ेंगे, अगर मेरे खैरख्वाह हो तो खामोश खड़े रहो।”
गयासुद्दीन ने फौज को पीछे हटने का हुक्म दिया। कुंवर पृथ्वीराज गयासुद्दीन को चित्तौड़ ले आए। महाराणा रायमल ने महीने भर बाद दण्ड (जुर्माना) लेकर गयासुद्दीन को छोड़ दिया।
गयासुद्दीन को बन्दी बनाने की यह घटना पुरानी ख्यातों में लिखी गई है। इसका वर्णन शिलालेखों व फ़ारसी तवारीखों में नहीं मिलता है।
1503 ई. – नासीरुद्दीन की मेवाड़ पर चढ़ाई :- गयासुद्दीन खिलजी के बाद उसका बेटा नासिरुद्दीन मालवा की गद्दी पर बैठा। उसने अपने बाप की शिकस्त का बदला लेने के लिए मेवाड़ पर चढ़ाई की।
इस घटना का ज़िक्र मेवाड़ के इतिहास में नहीं मिलता। फिरिश्ता के लिखे अनुसार इस लड़ाई में मेवाड़ की पराजय हुई और नासिरुद्दीन महाराणा से धन लेकर चला गया।
फ़ारसी तवारीखों में अक्सर ऐतिहासिक घटनाओं को इतनी चालाकी से लिखा जाता कि वर्णन पक्षपात भरा भी न लगे और सुल्तानों की इज्ज़त भी रह जाए।
जिन लड़ाइयों में इन सुल्तानों की पराजय होती, उनके वर्णन में ये लिख देते की सुल्तान धन लेकर अपने मुल्क लौट गए। जबकि यदि विजय होती तो चित्तौड़ के किले या मेवाड़ के किसी हिस्से पर सुल्तान का अधिकार अवश्य होता।
चीरवा के चारभुजा मंदिर का पुनर्निर्माण :- उदयपुर के चीरवा गांव के उत्तरी छोर पर चारभुजा जी का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में चारभुजा जी की पाषाण की चतुर्भुज प्रतिमा की स्थापना मेवाड़ के तलारक्ष उद्धरण के पुत्र रतभू के पुत्र केल्हण के पुत्र उदयी के पुत्र कर्माजी ने की थी।
यह मूर्ति कर्माजी मन्देर तालाब की पाल पर स्थित प्राचीन जीर्णशीर्ण मंदिर से लाए थे। उस समय चीरवा में चारभुजा जी का छोटा सा मंदिर बनवाया गया था। 1503 ई. में महाराणा रायमल के शासनकाल में इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया।
महाराणा रायमल द्वारा बन्द की गई प्रथा :- मेवाड़ में एक प्राचीन प्रथा चली आ रही थी कि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए व उसका कोई पुत्र न हो, तो उसकी सम्पत्ति पर राजा का अधिकार हो जाता था।
महाराणा रायमल ने इस प्रथा का अंत कर दिया। अर्थात महाराणा रायमल के समय में ही सम्पत्ति के मामलों में स्त्रियों को भी अधिकार प्राप्त हो गए। इसकी जानकारी एकलिंगेश्वर मंदिर के दक्षिणद्वार की प्रशस्ति से मिलती है।
दान-पुण्य-भेंट :- महाराणा रायमल ने प्रहाण और थूर नामक गाँव गोपाल भट्ट को भेंट किए। महाराणा ने लखावली गांव भीमदेव शर्मा को भेंट किया।
जैन मंदिर का निर्माण :- महाराणा रायमल के शासनकाल में 1486 ई. में चित्तौड़गढ़ दुर्ग में गोमुख कुंड के निकट एक छोटा सा जैन मंदिर बनवाया गया, जिसमें स्थापित की जाने वाली मूर्ति दक्षिण भारत से लाई गई थी।
अद्भुत जी के मंदिर का निर्माण :- महाराणा रायमल ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में अद्भुत जी का मंदिर बनवाया। यह एक शिव मंदिर है। यह मंदिर महाराणा ने 1483 ई. में बनवाना प्रारंभ किया था। इस मंदिर के शिल्पी हरदास थे।
नारलाई का शिलालेख :- महाराणा रायमल के शासनकाल में 1500 ई. में मेवाड़ के इतिहास से सम्बंधित एक शिलालेख गोडवाड़ के नारलाई गांव में स्थित जैन मंदिर में खुदवाया गया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)