मेवाड़ के महाराणा रायमल (भाग – 2)

गयासुद्दीन खिलजी का मेवाड़ पर दूसरा हमला (1500 ई. से पूर्व) :- मालवा के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने पहली बार चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया, तब महाराणा रायमल ने उसे करारी शिकस्त दी थी। इसका बदला लेने का विचार करके गयासुद्दीन ने दोबारा मेवाड़ पर आक्रमण किया।

इस बार गयासुद्दीन ने अपने सेनापति मलिक जफ़र खां को फ़ौज देकर मेवाड़ को बर्बाद करने भेजा। इस समय बेगूं के जागीरदार चाचकदेव हाड़ा थे। चाचकदेव ने चित्तौड़ आकर महाराणा रायमल को गयासुद्दीन के हमले से अवगत कराया।

चाचकदेव हाड़ा ने कहा कि “गयासुद्दीन ने मेवाड़ के पूर्वी भाग में कोटा, भैंसरोड, सोपर वगैरह इलाकों में थाने मुकर्रर कर दिए हैं।”

महाराणा रायमल ने एक फ़ौज तैयार की। इस समय महाराणा ने अपने कुँवर, सामंत, पासवान पुत्रों आदि को घोड़े देकर विदा किया।

महाराणा रायमल

इन कुँवर, सामंत आदि के नाम समकालीन ‘रायमल रासो’ में लिखित हैं, जो कि निम्नलिखित हैं :- (कोष्ठक में उनको दिए गए घोड़े का नाम लिखा गया है, इससे यह भी मालूम पड़ता है कि 15वीं सदी में घोड़ों के नाम किस प्रकार के रखे जाते थे)

महाराणा रायमल के 5 पुत्र, जिन्होंने इस लड़ाई में भाग लिया :- कुँवर पृथ्वीराज (घोड़ा :- परेवा), कुँवर जयमल (जैत तुरंग), कुँवर संग्रामसिंह/सांगा (जंगहत्थ), कुँवर पत्ता (पंखराज), कुँवर रामसिंह (रेवंत पसाव)

महाराणा रायमल के सामन्त, पासवान आदि, जिन्होंने इस लड़ाई में भाग लिया :- गागरोन के कुँवर कल्याणमल खींची (सोहन मुकुट), सलूम्बर के रावत कांधल चुंडावत (मृग), सारंगदेवोत राजपूतों के मूलपुरुष कानोड़ के रावत सारंगदेव (सिंहला),

महाराणा कुम्भा के भाई क्षेमकर्ण के पुत्र देवलिया रावत सूरजमल, जो अपने पिता क्षेमकर्ण के दाड़िमपुर के युद्ध में महाराणा रायमल के विरुद्ध लड़ते हुए मारे जाने के बावजूद महाराणा रायमल का साथ देने इस लड़ाई में शामिल हुए। (घोड़ा – सूरज पसाव),

रावत भवानीदास सोढा (भुंभरयो), चाचावत सोढा (नीलो), किशनसिंह डोडिया, कर्णसिंह डोडिया (चंचलो), तम्बकदास बाघेला (छींपड़ो), हुल्ल दूदा लोहटोत (हीरो), रावल उदयसिंह (उच्चैश्रवा), भीमसिंह भाणावत (नरिंद),

मारवाड़ के राव जोधा के पुत्र सावंतसिंह राठौड़ (रिपुहण), पर्वतसिंह राठौड़ (हयथाट), जोगा राठौड़ (सायर), भाण छप्पनिया राठौड़ (रेणायर), कांधल मेहावत सांखला (दलभंजन), सुल्तानसिंह हाड़ा (श्रृंगार हार), हटीसिंह हाड़ा (बांदरा),

बणबीर हाड़ा (विनोद), भाखर हाड़ा (सिंहला), रामपुरा के भाखर चंद्रावत सिसोदिया (चित्रांगद), उदा भांजावात (नैनसुख), नाथू रायमलोत (जगरूप), सगता गेपावत (गजकेसरी), पूंजा देवड़ा (भ्रमर), सूरजसेन सोलंकी (कोड़ीधज),

चित्तौड़गढ़ दुर्ग

सांवल सोलंकी (हाथीराव), मेघ खेतावत सोलंकी (सपंख), रघुनाथ सोलंकी (रींछड़ो), रघुनाथ सोलंकी (हीरो), रघुनाथ गौड़ (लाडो), हंसा बालणोत (हंस), राव सुल्तान (आरबी), जोगायत डुंगरोत (जशकलश), सिंह सुवावत (सीचाणा),

सिंह समरावत (सारंग), राव जयब्रम्ह (मोर), सारंग रायमलोत (सैंसरूप), नारायणदास कर्मसिंहोत (निर्मोलक), राघव महपावत पंवार (लटियालो), राव दूल्हा (रेवंत), रायसिंह (सालहो), मालदेव (मनरंजन), सगता (सारंग),

सूवा वीसावत (साहणदीप), भांडा सींधल (दल श्रृंगार), रावत जोगा (रणधवल), जैसा बालेचा (बिहंग), हरदेह (हंसमन), खेमा (चित्रंग), पर्वत (पारावत), खंगार (कटारमल्ल), हरराज (रूपड़ो), करणा (सहजोग), नरपाल (करडो),

भारमल (पंचरेण), हाजा (हरलंगल), महासाणी महेश (माणक), महासाणी आयण (बाल सिरताज), मेरा (जगमोहन), कायस्थ कान्ह (केवड़ो), निशानदार (गरूड़), छत्रधारी (निकलंक), तंबोलदार (सुचंग), पाणेरी (मोतीरंग),

हरिदास कपड़दार (पदार्थ), भीमसिंह (रूपरेख), चरड़ा (हयविनोद), ब्रम्हदास (बलोहा), लोला (लाडलो), नेतसी (कमल), तेजसी (तरंजड़ा), तेजा (तेजंगल), कीता (काछी), महेश (मेघनाद), बाला (बोर), चरड़ा (सांवकरण),

मूला (मनवश), लोका (लाखीणो), देवीदास (हयदीप), रामदास (पेखणा), रामदास पुरोहित (मनमेल), राय विनोद प्रधान (अलवा), अचला (अमर ढाल), सांवल (शंकर पसाव), भामा (भगवती पसाव)

महाराणा की मांडलगढ़ पर चढ़ाई :- मांडू के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी का सेनापति मलिक ज़फ़र खां इस वक्त मांडलगढ़ में था। रूपमल्ल नामक घोड़े पर सवार होकर महाराणा रायमल चित्तौड़गढ़ के किले से बाहर निकले।

महाराणा रायमल ने आसेर, रायसेन, चंदेरी, नरवर, बूंदी, आमेर, सांभर, अजमेर, चाटसू, लालसोट, मारहोट, टोडा आदि के राजाओं को साथ लेकर मांडलगढ़ की तरफ़ कूच किया। महाराणा ने मांडलगढ़ को घेरकर मालवी सिपाहियों पर हमला किया।

मांडलगढ़ में जमकर लड़ाई हुई, जिसमें मलिक ज़फ़र खां की तरफ़ से कई सिपहसालार मारे गए। मलिक ज़फ़र खां बची-खुची फ़ौज समेत भाग निकला। महाराणा रायमल ने उसको मांडू तक खदेड़ दिया।

मांडू के पास खैराबाद नाम के गांव में महाराणा रायमल और मालवा की सेना के बीच एक और लड़ाई हुई, जिसमें महाराणा रायमल विजयी रहे। महाराणा ने खैराबाद को लूटकर तबाह कर दिया।

महाराणा रायमल के समय की एकलिंगेश्वर की प्रशस्ति में लिखा है कि “मेदपाट के अधिपति रायमल ने मंडल दुर्ग (मांडलगढ़) के पास जफर के सैन्य का नाश कर शकपति ग्यास (गयासुद्दीन) के गर्वोन्नत सिर को नीचा कर दिया।”

मांडलगढ़ दुर्ग

कुँवर पृथ्वीराज द्वारा मालवा में घुसकर सुल्तान के सिपाहियों को मारना :- उड़णा राजकुमार पृथ्वीराज ने मालवा के सुल्तान को सबक सिखाने के लिए मालवा में प्रवेश किया। वे नीमच में जा पहुंचे और वहां 5,000 सवार एकत्र कर देपालपुर को लूट लिया और वहां के हाकिम को मार डाला।

इस प्रकार गयासुद्दीन के दो आक्रमण पूरी तरह विफल हो चुके थे। अब तक मालवा के सुल्तानों को मेवाड़ में कोई कामयाबी हासिल नहीं हुई। मालवा की बड़ी-बड़ी सेनाओं को प्रत्येक बार करारी शिकस्त देना वास्तव में सिद्ध करता है कि मेवाड़ी तलवारों के आगे सुल्तान बेबस थे।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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