मेवाड़ के महाराणा रायमल (भाग – 1)

महाराणा रायमल का परिचय :- महाराणा रायमल के पिता महाराणा कुम्भा व माता अजमेर के ठाकुर मोटमराव नरसिंहोत गौड़ की पुत्री थीं।

महाराणा रायमल का व्यक्तित्व :- महाराणा रायमल उदार व नम्र स्वभाव के थे। युद्धों में अक्सर इन्होंने बहादुरी दिखाते हुए शत्रुओं को परास्त किया, इसलिए वीरता में पीछे नहीं थे।

1473 ई. – राज्याभिषेक :- कहते हैं कि महाराणा रायमल का राज्याभिषेक जावर में हुआ। महाराणा रायमल ने अपने पिता के हत्यारे व बड़े भाई उदयकर्ण को दाड़िमपुर, कुम्भलगढ़, चित्तौड़गढ़, जावर, पानगढ़ आदि लड़ाइयों में परास्त करके मेवाड़ पर अधिकार कर लिया।

मेरे विचार से सामन्तों ने महाराणा रायमल का राजतिलक जावर में कर दिया होगा, परन्तु राज्याभिषेक का उत्सव कुम्भलगढ़ या चित्तौड़गढ़ में ही हुआ होगा।

महाराणा रायमल

गयासुद्दीन खिलजी का मेवाड़ पर पहला हमला :- महाराणा रायमल ने अपने बड़े भाई उदयकर्ण के दोनों बेटों सूरजमल व सैंसमल को मेवाड़ से बेदखल कर दिया था, तो ये दोनों अपमानित होकर मालवा/मांडू के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी के पास गए।

गयासुद्दीन खिलजी उसी महमूद खिलजी का बेटा था, जिसने महाराणा कुम्भा के समय मेवाड़ पर कई चढ़ाइयाँ की थीं। गयासुद्दीन खिलजी ने भी अपने पिता के साथ इन चढ़ाइयों में सेनापति के पद पर रहकर पहाड़ी लड़ाइयां लड़ने का अनुभव प्राप्त किया था।

1469 ई. में गयासुद्दीन मालवा का सुल्तान बना। महाराणा रायमल के भतीजों सूरजमल व सैंसमल ने गयासुद्दीन से कहा कि “हमारे काका ने हमें मेवाड़ से बेदखल कर दिया है, इसलिए आप हमें मेवाड़ का राज दिलवाने में मदद करो”

दोनों भाइयों की की अर्जी पर सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने मेवाड़ पर हमला करने का फैसला किया। मेवाड़ पर आक्रमण करने का एक और कारण ये भी था कि वह अपने पिता महमूद खिलजी की शिकस्त का बदला लेना चाहता था।

इस वक्त मेवाड़ की फौजी ताकत कम हो गई थी, क्योंकि उदयकर्ण और रायमल में काफी लड़ाईयां हुई थी। मेवाड़ की सेना को दोतरफा नुकसान हुआ था। मेवाड़ के कई इलाके उदयकर्ण के शासनकल में ही हाथ से निकल गए थे।

इसलिए इस मौके पर एक मजबूत दुश्मन के हमले का जवाब देना बड़ा मुश्किल था। गयासुद्दीन अपनी जर्रार फ़ौज समेत मेवाड़ में प्रवेश करते हुए चित्तौड़गढ़ किले के सामने पहुंचा और बिना देरी किए किले की घेराबंदी शुरू की।

महाराणा रायमल ने फ़ौज समेत किले से बाहर निकलकर ऐसा पुरज़ोर आक्रमण किया कि गयासुद्दीन की फ़ौज तितर-बितर हो गई। सुल्तान की तरफ के कई सैनिक मारे गए और उसका सेनापति ज़हीरल मारा गया।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग

गयासुद्दीन मांडू की तरफ भाग निकला। इस युद्ध में महाराणा रायमल की तरफ से लड़ने वाले एक गौड़ राजपूत की बहादुरी के बारे में एकलिंगजी मंदिर के दक्षिण द्वार की प्रशस्ति में लिखा है कि

“वीरवर गौर (गौड़) ने किले की एक श्रृंग (बुर्ज़) पर खड़े रहकर प्रतिदिन बहुत से मुसलमानों को मारा, जिसके कारण महाराणा ने उस श्रृंग (बुर्ज़) का नाम ‘गौरश्रृंग’ रखा। वह गौर (गौड़) भी मुसलमानों के रूधिर स्पर्श का दोष निवारण करने के लिए स्वर्ग गंगा में स्नान करने को परलोक सिधारा”

इस प्रशस्ति की रचना महाराणा रायमल के समय ही हुई थी। बहुत सम्भव है कि ये गौड़ राजपूत महाराणा रायमल के ननिहाल पक्ष से रहे हों और महाराणा का साथ देने के लिए अजमेर से मेवाड़ आए हों।

गयासुद्दीन द्वारा यह आक्रमण किस वर्ष में किया गया, यह ज्ञात नहीं हो सका है। गयासुद्दीन परास्त हुआ, परन्तु वह इस पराजय को नहीं भुला। उसने दोबारा मेवाड़ पर आक्रमण करने की तैयारियां शुरू कर दी।

कुँवर पृथ्वीराज का परिचय :- महाराणा रायमल ने अपने ज्येष्ठ पुत्र कुंवर पृथ्वीराज को मेवाड़ का सेनापति घोषित किया। वास्तव में यदि महाराणा रायमल का इतिहास लिखा जाए, तो उसमें अधिकांश वृत्तांत कुँवर पृथ्वीराज का ही आएगा।

कुंवर पृथ्वीराज अपने तेज तर्रार मिज़ाज व बहादुराना बर्ताव के कारण इतिहास में ‘उड़णा राजकुमार’ या ‘उड़न पृथ्वीराज’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस समय पूरे राजपूताने में महाराणा से ज्यादा चर्चे कुंवर पृथ्वीराज के हुआ करते थे।

ये बड़े उग्र स्वभाव के थे। इन्होंने मेवाड़ के हित में कई लड़ाईयाँ लड़ीं। इन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन में कभी पराजय का मुंह नहीं देखा। बनवीर इन्हीं कुंवर पृथ्वीराज का दासीपुत्र था।

कुंवर पृथ्वीराज एक स्थान से दूसरे स्थान पर जिस तीव्रता से पहुँचते थे और दुश्मन पर जिस तीव्र वेग से आक्रमण करते थे उसके कारण उस वक्त उन्हें लोग ‘उडणा (उड़ने वाला) पृथ्वीराज’ कहने लगे थे।

महाराणा रायमल द्वारा जारी किए गए सिक्के

मुहणौत नैणसी ने अपनी ख्यात में लिखा है कि “पृथ्वीराज ने एक ही दिन में टोडा और जालौर पर धावा किया था, तब से वे ‘उड़न पृथ्वीराज’ कहलाये”

कुँवर पृथ्वीराज युद्ध आदि में सही-गलत व नियमों में बंधे नहीं रहते थे। उनका लक्ष्य केवल विजय था, चाहे वो किसी भी तरीके से मिले। स्वभाव से बहुत अधिक महत्वाकांक्षी थे।

अगले भाग में गयासुद्दीन खिलजी की मेवाड़ पर दूसरी चढ़ाई का वर्णन लिखा जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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