मेवाड़ के महाराणा कुम्भा (भाग – 29)

1468 ई. – महाराणा कुम्भा की हत्या :- महाराणा कुम्भा कुम्भलगढ़ से एकलिंग जी के दर्शन को कैलाशपुरी पधारे, जहां मन्दिर के बाहर एक गाय बड़ी जोर से हम्माई। महाराणा का ध्यान गाय की तरफ गया, पर फिर मन्दिर के अन्दर पधारकर सीधे कुम्भलगढ़ के लिए निकले।

अगले दिन दरबार करने तक महाराणा ने एक शब्द तक नहीं बोला। दरबार से अचानक तलवार हाथ में ली और बोले “कामधेनु तंडव करिय”

जब कोई दरबारी महाराणा से कुछ सवाल करता, तब महाराणा सिर्फ इसी शब्द का उच्चारण करते। दरअसल महाराणा कुम्भा को उन्माद रोग हो गया था।

किसी की हिम्मत न हुई की महाराणा से इस शब्द का कारण पूछे, तब महाराणा के छोटे पुत्र रायमल ने पूछा कि आप बार-बार इस शब्द का उच्चारण क्यों कर रहे हैं, तो महाराणा कुम्भा ने रायमल को देश निकाला दे दिया।

महल से बाहर निकलकर सभी सर्दारों ने रायमल से कहा कि आपको देश छोड़कर जाने की जरुरत नहीं है। आप महाराणा के उन्माद रोग के ठीक होने तक बस कुछ दिनों के लिए अपने ससुराल ईडर चले जावें।

रायमल ईडर चले गए। माघ मास की दशमी को महाराणा कुम्भा उन्माद रोग के चलते कुम्भलगढ़ दुर्ग में स्थित मामादेव के कुण्ड पर खयालों में खोये हुए थे। यह कुंड मामादेव मंदिर के निकट ही स्थित था, जो सम्भवतः वर्षा के ज्यादा पानी से नष्ट हो गया।

महाराणा कुम्भा

महाराणा कुम्भा के ज्येष्ठ पुत्र उदयकर्ण (उदा) ने इस अवसर का लाभ उठाकर पीछे से तलवार से वार कर महाराणा का सिर काट दिया। जो महाराणा अपने जीवन में कभी किसी से न हारे, वे अपनों से ही हार गए।

महाराणा कुम्भा के रनिवास का वर्णन :- महाराणा कुम्भा दिखने में बहुत सुंदर थे। उन्हें कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति में ‘कान्ताओं में धीरललित’ कहा गया है। महाराणा कुम्भा ने संगीतराज ग्रंथ में नाट्यशाला की दीवारों को विभिन्न चित्रों से चित्रित होना बताया है।

महलों में राजमाता, पटरानी आदि के अलग-अलग निवास स्थानों का उल्लेख है। रानियों के अलावा कई अन्य दास-दासियों और अन्य नारियों के रहने का उल्लेख भी है। इन महलों के वाम भाग में वस्त्रालय, देव मन्दिर, वाटिका, औषधालय, घुड़शाला आदि बने हुए थे।

महलों के बाहरी भाग में राजकुमारों के महल थे। महाराणा कुम्भा के दरबारी विद्वान मंडन के अनुसार बसन्त व वर्षा ऋतु में सुंदर नारियों के सुकोमल कंठों से संगीत का विधान किया जाता था। वहां झूलने के लिए सुंदर झूले डाले जाते थे।

महाराणा कुम्भा की रानियां :- महाराणा कुम्भा की कई रानियां थीं, परन्तु कुछ के ही नाम लिखे मिलते हैं। (1) रानी कुम्भलदेवी जी, जिनके  नाम पर महाराणा कुम्भा ने कुंभलगढ़ दुर्ग बनवाया था। (2) रानी अपूर्व देवी जी, जिनका वर्णन रसिक प्रिया टीका में मिलता है।

(3) अजमेर के ठाकुर मोटमराव नरसिंहोत गौड़ की पुत्री, जिनसे महाराणा रायमल का जन्म हुआ। (4) बूंदी के राव बीरू हाड़ा की पुत्री, जिनसे उदयकर्ण का जन्म हुआ। (5) हमीरपुर के राणा रण विक्रम की पुत्री, जिनका कुम्भलगढ़ प्रशस्ति के अनुसार हरण किया गया।

महाराणा कुम्भा की अन्य रानियों के नाम नहीं मिले हैं। ख्यातों में प्यारकंवर, अपरमदे, हरकंवर, सारंगदे आदि नाम मिलते हैं, पर इनकी विश्वसनीयता पर संदेह है।

कर्नल जेम्स टॉड ने मीराबाई को महाराणा कुम्भा की पत्नी बता दिया जो कि गलत है, मीराबाई महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज की पत्नी थीं।

महाराणा कुम्भा

महाराणा कुम्भा के 11 पुत्र :- (1) महाराणा उदयकर्ण (उदा) :- इसने अपने देवता तुल्य पिता को मारकर बड़ा भारी अपराध किया। इसका इतिहास अगले भाग में लिखा जाएगा।

(2) महाराणा रायमल :- उदयकर्ण के बाद ये शासक बने। (3) कुंवर नगराज/नंगा/नागराज :- बांकीदास री ख्यात के अनुसार इनके वंशज नंगावत कहलाए। (4) कुंवर गोपालसिंह :- इनके कोई संतान नहीं हुई।

(5) कुंवर आसकरण (6) कुंवर अमरसिंह (7) कुंवर गोविन्ददास/गोयन्द :- इनके कोई संतान नहीं हुई। (8) कुंवर जैतसिंह (9) कुंवर महरावण (10) कुंवर क्षेत्रसिंह (11) कुंवर अचलदास

महाराणा कुम्भा की पुत्रियां :- महाराणा कुम्भा की 2 ही पुत्रियों के नाम मिलते हैं। (1) इंद्रादे जी :- जयपुर की ख्यातों के अनुसार इनका विवाह वहां के राजा उद्धरण (राजा उधा) से हुआ था।

(2) साहित्य, शिल्प व संगीत की प्रकांड ज्ञाता रमाबाई जी :- ये ‘वागीश्वरी’ नाम से भी प्रसिद्ध हुईं। ये भी संगीत शास्त्र की ज्ञाता थीं। इनका विवाह सोरठ (जूनागढ़) के राजा मंडलीक से हुआ था।

मेवाड़ की ख्यातों में राजा मंडलीक द्वारा रमाबाई जी को दुख देने व उडणा पृथ्वीराज द्वारा अपनी भुआ रमाबाई जी को मेवाड़ ले आने की बातें लिखी हैं, जो काल्पनिक हैं। क्योंकि रमाबाई जी द्वारा बनवाए गए विष्णु मंदिर की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि उनके व राजा मंडलीक के बीच संबंध अच्छे थे।

इतिहासकार रामवल्लभ सोमानी जी व ओझा जी के अनुसार राजा मंडलीक ने महमूद बेगड़ा के हमले में परास्त होकर मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए रमाबाई जी सदा-सदा के लिए मेवाड़ आ गईं।

एक अन्य कारण ये भी हो सकता है कि राजा मंडलीक के देहांत के बाद रमाबाई जी मेवाड़ आ गई हों। रमाबाई जी का देहांत भी मेवाड़ में ही हुआ।

रमाबाई जी द्वारा बनवाया गया विष्णु मंदिर (जावर)

रमाबाई जी द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य :- रामस्वामी मंदिर (जावर – मेवाड़) :- यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा विक्रम संवत 1554 चैत्र शुक्ल 7 (1497 ई.) को सम्पन्न हुई। इस मंदिर के शिल्पी ईश्वर थे, जो की प्रसिद्ध शिल्पी मंडन के पुत्र थे।

रमाबाई जी ने जावर में स्थित विष्णु मंदिर के ठीक पास में रामकुंड नामक एक जलाशय बनवाया, कुंभलगढ़ दुर्ग में कुंडेश्वर मंदिर के दक्षिण की तरफ एक सरोवर बनवाया और कुम्भलगढ़ दुर्ग में दामोदर मन्दिर बनवाया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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