मेवाड़ के महाराणा कुम्भा (भाग – 28)

महाराणा कुम्भा द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य व जीर्णोद्धार कार्य :- मांडलगढ़ दुर्ग :- महाराणा कुम्भा ने मांडलगढ़ दुर्ग में जो मंदिर बनवाए थे, वे चाम्पानेर की संधि के बाद हुए मालवा और गुजरात के सुल्तानों के हमले में नष्ट कर दिए गए।

वसंतगढ़/बसंतगढ़ /बसंती दुर्ग (आबू – सिरोही) :- सिरोही राज्य के उजड़े हुए नगर वसंतपुर को महाराणा कुम्भा ने फिर से बसाया।

महाराणा कुम्भा ने यहां भगवान विष्णु को समर्पित 7 जलाशयों का निर्माण करवाया व एक बगीचा बनवाया। महाराणा कुम्भा ने झगड़ा नामक एक जैन से चैत्यालय का जीर्णोद्धार करवाया।

अचलगढ़ दुर्ग (आबू) :- अचलगढ़ का पुनर्निर्माण करवाकर कोट आदि बनवाए। महाराणा कुम्भा ने अचलगढ़ दुर्ग की प्रतिष्ठा विक्रम संवत 1509 माघ पूर्णिमा (1452 ई.) को करवाई।

कुम्भस्वामी विष्णु मंदिर :- अचलगढ़ के निकट स्थित इस मंदिर में भगवान विष्णु के 24 अवतारों की प्रतिमाएं हैं। इस मंदिर की शैली भी चित्तौड़गढ़ में स्थित कुम्भस्वामी मंदिर जैसी ही है। इस मंदिर में एक त्रिमुखी मूर्ति है, जिसके 12 हाथ हैं। यह मूर्ति भगवान विष्णु व उनके अवतार नृसिंह व वराह के सम्मिलित स्वरूप की है।

अचलगढ़ दुर्ग

महाराणा कुम्भा ने अचलगढ़ में 1 सरोवर व 4 जलाशय बनवाए। आबू में हरिश्चन्द्र की गुफा के निकट पुराने महल स्थित हैं, जिनका निर्माण भी महाराणा कुम्भा ने ही करवाया।

महाराणा कुम्भा ने झाड़ौल के आहोर में स्थित दुर्ग की सीमाओं को आगे बढ़ाया, जालौर दुर्ग के कोट का विस्तार किया, सूत्रधार केल्‍हा की देखरेख में भंडारण के लिए आकोला गढ़ का निर्माण किया, धनोप गढ़ का जीर्णोद्धार किया, बनेड़ा गढ़ का जीर्णोद्धार किया।

महाराणा कुम्भा ने गढ़बोर का जीर्णोद्धार किया, सेवंत्री का जीर्णोद्धार किया, कोट सोलंकियान का जीर्णोद्धार किया, मिरघेरस या मृगेश्‍वर का जीर्णोद्धार किया, रणकपुर के घाटे में कोट का निर्माण करवाया, उदावट के पास एक कोट का निर्माण करवाया।

महाराणा कुम्भा ने केलवाड़ा में हमीरसर तालाब के पास कोट का जीर्णोद्धार करवाया, जावर का किला बनवाया, कोटड़ा का किला बनवाया, पानरवा किले का जीर्णोद्धार करवाया, सेनवाड़ा में कोट का निर्माण करवाया, बगडूंदा में कोट का निर्माण करवाया।

महाराणा कुम्भा ने देसूरी में कोट का निर्माण करवाया, घाणेराव में कोट का निर्माण करवाया, मुंडारा में कोट का निर्माण करवाया।

एकलिंगजी मंदिर में करवाए गए कार्य :- महाराणा कुम्भा ने पिता महाराणा मोकल द्वारा प्रारंभ किए गए कार्य के तहत परकोटे का अधूरा कार्य पूरा करवाया। इस समय इस बस्‍ती का नाम ‘काशिका’ रखा गया जो वर्तमान में कैलाशपुरी है।

मंडप, तोरण, ध्वजादंड व कलशों से एकलिंगजी के मंदिर को अलंकृत किया, मंदिर के पूर्व में कुम्भमण्डप बनवाया, एकलिंग जी मंदिर के परिसर में ही विष्णु मंदिर बनवाया, जिसे बाद में लोगों ने मीरा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध कर दिया।

महाराणा कुम्भा ने एकलिंगजी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाकर ये 4 गांव इस मंदिर के पूजन व्यय के लिए भेंट किए :- नागदा, कठडावण, मलकखेड़ा व भीमाणा। महाराणा ने एकलिंगजी मंदिर से कुछ मील दूर सेमा गांव में एक पहाड़ी पर शिव मंदिर का निर्माण करवाया।

महाराणा कुम्भा ने आदिवासियों पर नियंत्रण के लिए देवलिया में कोटड़ी गिरवाकर नवीन किला बनवाया, गागरोन दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया, कैलाशपुरी में त्रिकूट पर्वत पर नवीनीकरण किया, भैंसरोडगढ़ दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया।

कुशाल माता मंदिर :- महाराणा कुम्भा ने 1457 ई. में महमूद खिलजी को बैराठगढ़ (बदनोर) के युद्ध में परास्त करने के बाद इसी विजय के उपलक्ष्य में बदनोर में यह मंदिर बनवाया।

कुशाल माता मंदिर (बदनोर)

महाराणा कुम्भा ने मेरों के आक्रमण से रक्षा हेतु बदनोर के निकट विराट का किला बनवाया, मेरों के प्रभाव को रोकने के लिए मचान दुर्ग बनवाया, भीलों पर नियंत्रण रखने हेतु भोमठ दुर्ग बनवाया।

रणकपुर का सूर्य मंदिर :- महाराणा कुम्भा द्वारा रणकपुर के जैन मंदिरों के निकट ही एक सूर्य मंदिर बनवाया गया, जिसमें सूर्य को 7 घोड़ों पर सवार दिखलाया गया है।

हारित ऋषि की मूर्ति :- महाराणा कुम्भा ने बप्पा रावल के गुरु हारित ऋषि की एक मूर्ति बनवाई। इस मूर्ति पर 1445 ई. का लेख खुदा है। यह मूर्ति एकलिंग जी में कांकरोली रोड़ पर स्थित एक पुराने मंदिर में मौजूद है।

महाराणा कुम्भा ने पदराड़ा में विष्णु भगवान का मंदिर बनवाया, सेमा की पहाड़ी पर शिव मंदिर बनवाया, अपने राज्य की सीमाओं में वे सभी मंदिर जो अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान नष्ट कर दिए गए थे, महाराणा कुंभा ने उन्हीं अवशेषों पर दोबारा उनका निर्माण करवाया।

धर्मशालाएं :- यात्रियों के ठहरने की समुचित व्यवस्था के लिए महाराणा कुंभा ने मेवाड़ में कई स्थानों पर धर्मशालाएं बनवाईं।

महाराणा कुम्भा के शासनकाल में जैनियों व अन्य सेठियों द्वारा निर्मित मंदिर :- इन मंदिरों के निर्माण के लिए महाराणा कुम्भा ने आज्ञा भी दी, भूमि भी दी व अन्य आवश्यक सहायताएं भी की।

शांतिनाथ जैन मंदिर :- यह मंदिर सारंग नवलखा ने 1437 ई. में नागदा में बनवाया। कृष्ण भगवान का मंदिर :- यह मंदिर 1443 ई. में तिल्ह भट्ट ने कडिया गांव में बनवाया। वसंतपुर के जैन मंदिर, भूला के जैन मंदिर।

गुणराज द्वारा सिरोही के अजारी व पिंडवाड़ा में मंदिरों का निर्माण करवाया गया। गुणराज ने उदयपुर केे सालेरा में स्थित मंदिर का निर्माण भी करवाया। 1439 ई. में रत्ना ने रणकपुर में त्रैलोक्यदीपक नामक युगादीश्वर का चतुर्भुज मंदिर बनवाया।

रणकपुर जैन मंदिर (पाली) :- 1439 ई. में धरणक शाह द्वारा निर्मित। इन मंदिरों के शिल्पी देपाक थे। फर्ग्यूसन ने लिखा है कि उत्तरी भारत में कोई भी अन्य मन्दिर इतनी अच्छी तरह से सजाया गया नहीं है, जैसा कि रणकपुर का मंदिर सजाया गया है।

महाराणा कुम्भा

रणकपुर जैन मंदिर में 1444 स्तम्भ, 54 शिखर, 24 मण्डप, 84 देव कुलिकाएँ व 13 शिलालेख हैं। इस मंदिर को ‘खंभों का अजायबघर’ भी कहते हैं। एक प्राचीन पत्र के अनुसार इस मंदिर के निर्माण में 99 लाख रुपए खर्च हुए। रणकपुर जैन मंदिर जैनियों के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है।

गढ़बोर का चारभुजा मंदिर :- कांकरोली के निकट गढ़बोर में यह मंदिर कब बना, ये ज्ञात नहीं। परन्तु महाराणा कुम्भा के शासनकाल में 1444 ई. में इस मंदिर का जीर्णोद्धार खरवड़ जाति के महीपाल, उनके पुत्र लक्ष्मण, लक्ष्मण की पत्नी व पुत्र झांझा ने करवाया।

इन सबके अलावा महाराणा कुम्भा ने चित्तौड़गढ़ में विजय स्तम्भ सहित कई निर्माण कार्य करवाए व कुम्भलगढ़ का निर्माण करवाया, जिनका वर्णन पिछले भागों में किया जा चुका है।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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