मेवाड़ के महाराणा कुम्भा (भाग – 26)

महाराणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया विजय स्तम्भ :- विजय स्तम्भ का निर्माण कार्य 1440 ई. में शुरू हुआ व 1448 ई. में पूर्ण हुआ। विक्रम संवत 1505 माघ बदी 10 (1448 ई.) को विजय स्तम्भ की प्रतिष्ठा की गई।

इसके मुख्य शिल्पी जैता (लाखा के पुत्र) थे। अन्य शिल्पी नापा, पोमा, पूंजा, भूमि, चुथी, बलराज आदि थे। विजय सतंभ के अन्य नाम कीर्ति स्तम्भ, जय स्तम्भ, नौ खंडा महल आदि हैं।

उपेन्द्रनाथ डे ने विजय स्तम्भ को ‘विष्णु ध्वज’ कहा, क्योंकि महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित विजय स्तम्भ भगवान विष्णु को समर्पित है। ओझा जी ने विजय स्तम्भ को ‘पौराणिक देवताओं का अमूल्य कोष’ कहा।

गोपीनाथ शर्मा ने विजय स्तम्भ को ‘हिन्दू देवी-देवताओं का व्यवस्थित संग्रहालय’ कहा। फर्ग्यूसन ने विजय स्तम्भ की तुलना रोम के टार्ज़न स्तम्भ से की है। गर्जट ने विजय स्तम्भ को ‘मूर्तियों का अजायबघर’ कहा।

विजय स्तंभ

कर्नल जेम्स टॉड ने विजय स्तम्भ को कुतुबमीनार से बेहतर कहा है, लेकिन वास्तव में विजय स्तम्भ की तुलना कुतुबमीनार से करना व्यर्थ है, क्योंकि जैसा मूर्तियों का अलंकरण विजय स्तम्भ पर किया गया है, वैसी कला कुतुबमीनार में नहीं है।

12 फीट ऊंची व 42 फ़ीट चौड़ी जगती पर विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया गया। विजय स्तम्भ नीचे से चौड़ा, बीच में संकरा एवं ऊपर से पुनः चौड़ा है। यह डमरू के आकार का है। विजय स्तम्भ की चौड़ाई नीचे से 30 फ़ीट है। विजय स्तम्भ की ऊंचाई 122 फीट है। इसमें 157 सीढियां हैं। इसकी 9 मंज़िल हैं।

विजय स्तम्भ के आन्तरिक तथा बाह्य भागों पर भारतीय देवी-देवताओं, अर्द्धनारीश्वर, उमा-महेश्वर, लक्ष्मीनारायण, ब्रह्मा, सावित्री, हरिहर, विष्णु के विभिन्न अवतारों व रामायण एवं महाभारत के पात्रों की सैकड़ों मूर्तियां हैं।

विजय स्तम्भ की मूर्तियों में खास बात ये है कि प्रत्येक मूर्ति के नीचे या ऊपर उक्त मूर्ति का नाम खुदा है। विजय स्तम्भ के प्रवेश द्वार पर गदा व चक्र धारण किए हुए जनार्दन की मूर्ति है। पहली मंजिल में ब्रह्मा, विष्णु व रुद्र की मूर्तियां हैं। तीनों के 4-4 हाथ हैं।

दूसरी मंजिल में हरिहर (भगवान विष्णु व शिव के सम्मिलित रूप) की मूर्ति है। इस मूर्ति द्वारा धारण किए हुए आयुधों (हथियारों) में से आधे शिव के व आधे विष्णु के हैं। हरिहर की मूर्ति के दोनों तरफ 2 स्त्रियों की मूर्तियां हैं।

इनके अलावा कई छोटी मूर्तियां हैं, जो कि अग्नि, यम, भैरव, वरुण, वायु आदि की हैं। पास ही अर्द्धनारीश्वर की मूर्ति है। साथ ही धनद, इंद्र आदि की मूर्तियां भी हैं। पास ही एक मूर्ति है, जो ब्रह्मा, विष्णु व शिव का सम्मिलित स्वरूप है। इस प्रतिमा के 6 हाथ हैं।

तीसरी मंजिल में विरंजी, जयंत नारायण, चंद्रार्क आदि की मूर्तियां हैं। तीसरी मंज़िल पर 9 बार ‘अल्लाह’ लिखा हुआ है। ये इसलिए लिखवाया गया, ताकि भविष्य में जब भी ये किला मुसलमानों के हाथों में जाए तो वे विजय स्तम्भ को न तुड़वाए।

विजय स्तंभ

चौथी मंजिल विशेष रूप से देवियों की प्रतिमाओं से सुसज्जित है। इस मंज़िल में लक्ष्मी, त्रिपुरा, नन्दा, क्षेमकरी, मंगला, हरि सिद्धि, रेवती, त्रिखण्डा, लीला, सुलीला, लीलांगी, ललिता, लीलावती, उमा, पार्वती, हिंगलाज, हिमवती आदि देवियों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं।

पांचवी मंज़िल पर लक्ष्मी-नारायण, उमा-महेश्वर, ब्रह्मा-सावित्री की युग्म प्रतिमाएं हैं। लक्ष्मी-नारायण की प्रतिमा गरुड़ासन में है।

छठी मंज़िल पर सरस्वती, लक्ष्मी, काली आदि देवियों की प्रतिमाएं हैं। सरस्वती के 6 हाथ हैं और हंस पर सवार है। पास में ही नृत्य करते हुए एक झुंड की प्रतिमा है। पास ही भैरव, गणेश, कार्तिकेय, शिव-पार्वती, जया, विजया, अतिगण, सितोगण आदि की प्रतिमाएं हैं।

ठीक पास में एक प्रतिमा है, जो पांडुरोग (पीलिया) को दर्शाती है। इससे पता चलता है कि उस समय यह रोग ज्यादा होने लगा था। इस प्रतिमा में 6 हाथ हैं व सवारी बैल है।

7वीं मंज़िल में भगवान विष्णु के अवतारों की प्रतिमाएं हैं। वराह, परशुराम व नरसिंह की प्रतिमाओं में 4-4 हाथ हैं। हिरण्यकश्यप को चीरते हुए दिखाया गया है। वामन रूप की प्रतिमा में 2 हाथ हैं।

8वीं मंज़िल में कोई प्रतिमा नहीं है। चारों ओर 8 स्तम्भ हैं। यहां से 9वीं मंज़िल पर जाने का रास्ता नहीं है। यह भाग बिजली गिरने से क्षतिग्रस्त हो गया था, जिसका पुनर्निर्माण महाराणा स्वरूपसिंह द्वारा करवाया गया।

डॉ. ओझा लिखते हैं “कीर्ति स्तम्भ तो भारत भर में हिन्दू जाति की कीर्ति का एक अलौकिक स्तम्भ है, जिसके महत्व और व्यय का अनुमान उसे देखने मात्र से ही हो सकता है”

कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति :- इस प्रशस्ति की रचना प्रारंभ करने वाले कवि अत्रि का देहांत होने पर यह कार्य उनके पुत्र कवि महेश ने पूरा किया। महाराणा कुम्भा ने महेश को 2 हाथी, सोने की डंडी वाले 2 चंवर, 1 श्वेत छत्र प्रदान किया।

20वीं सदी में ‘अभिनव भारत समिति’ नामक क्रांतिकारी संगठन के प्रत्येक नए सदस्य के लिए विजय स्तम्भ के नीचे शपथ लेना अनिवार्य था। 15 अगस्त, 1949 ई. को विजय स्तम्भ पर डाक टिकट जारी किया गया।

विजय स्तंभ का निर्माण करवाते हुए महाराणा कुम्भा

विजय स्तम्भ माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान व राजस्थान पुलिस का प्रतीक चिह्न है। उत्तरी भारत में वैष्णव मूर्तियों का इतना बड़ा संग्रह और कहीं नहीं है।

इतिहासकार रामवल्लभ सोमानी विजय स्तम्भ को महाराणा कुम्भा की मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर विजय का प्रतीक नहीं मानते, उनके अनुसार यह महाराणा कुम्भा ने भगवान विष्णु के निमित्त ही बनवाया था।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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