मेवाड़ के महाराणा कुम्भा (भाग – 25)

महाराणा कुम्भा द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग में करवाए गए निर्माण कार्य :- महाराणा कुम्भा ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में अनेक निर्माण कार्य करवाए। कोट का निर्माण :- महाराणा कुम्भा ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग को मजबूती प्रदान करने के लिए इसके कोट को सुदृढ करवाया।

मार्ग का निर्माण :- महाराणा कुम्भा ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में रथमार्ग का निर्माण करवाया। इस मार्ग से आम जनता को भी बड़ी सुविधा हुई। इसका वर्णन कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति में किया गया है।

दरवाज़ों का निर्माण :- महाराणा कुम्भा ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कुछ नए द्वार बनवाए व कुछ पुराने द्वारों का नवीनीकरण करवाया। 1450 ई. में महाराणा कुम्भा ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में नवीन द्वार का निर्माण करवाया।

महाराणा कुम्भा ने रामपोल, हनुमानपोल, भैरवपोल, महालक्ष्मी पोल, चामुंडापोल, तारापोल, राजपोल सहित 9 दरवाजे बनवाए। तारापोल को झरोखों से युक्त बनाया गया था।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित हनुमान पोल

कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति के अनुसार लक्ष्मी से सम्पर्क स्थापित करने वाले राजा लोग महाराणा कुम्भा की शरण लेते हैं, इसलिए लक्ष्मीपोल का निर्माण करवाया गया। कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति में लिखा है कि भैरवपोल अमरावती के मंदिर के समान प्रतीत होती है।

महाराणा कुम्भा ने किले की पुरानी प्राचीरों को समाप्त कर दिया था। पहले जोरलापोल के आगे रामपोल की तरफ जाने के साथ-साथ मुख्य दीवारों के कुछ नीचे एक सुदृढ दीवार और थी। महाराणा कुम्भा ने इसे हटाकर केवल एक ही मार्ग रामपोल को रखा, ताकि लड़ने में आसानी रहे।

जलस्रोतों का निर्माण :- महाराणा कुम्भा ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में रमाकुण्ड का निर्माण करवाया। इसके अलावा कुछ तालाब व बावड़ियां बनवाई। महाराणा ने अरहट, रहट आदि जलयंत्रों का निर्माण भी करवाया।

कुम्भस्वामी मंदिर व आदिवराह मंदिर :- महाराणा कुम्भा ने इन दोनों मंदिरों का निर्माण एक ही स्थान पर पास-पास करवाया। ये दोनों ही विष्णु मंदिर हैं। बड़े मंदिर की प्राचीन मूर्ति मुस्लिमों ने तोड़ दी, जिसके बाद नई मूर्ति स्थापित की गई।

मूल रूप से कुम्भस्वामी मंदिर 9वीं शताब्दी में बनवाया गया था, परन्तु अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण से इसका अधिकांश हिस्सा नष्ट हो गया। फिर महाराणा कुम्भा ने इसका नवीनीकरण किया। कुम्भस्वामी मंदिर का निर्माण कार्य 1448 ई. में पूर्ण हुआ।

इस मंदिर में भगवान विष्णु के स्वरूपों, त्रिविक्रम (भगवान विष्णु का वराह अवतार), तुलसी माधव, धनुष बाण सहित राम-लक्ष्मण, गणेश, कृष्ण-रुक्मिणी, 14 हाथ व 4 मुख वाले गरुड़धारी भगवान विष्णु, त्रिपुरसुंदरी, यम, वरुण,

कार्तिकेय, चामुंडा, ब्रह्मा, अग्नि, हरिहर, लकुलीश, नाग-नागणी, शिव-पार्वती के विवाह, दुर्गा के स्वरूप सिंहवासिनी देवी, अर्द्धनारीश्वर आदि देवी-देवताओं की प्रतिमाएं हैं। मन्दिर के सभा मंडप में 20 विशाल स्तम्भ हैं।

कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति में कुम्भस्वामी मन्दिर के बारे में लिखा है कि “यह कैलाश पर्वत के समान सुंदर हिमालय जैसा प्रसिद्ध और स्वर्ण कलशों से युक्त होने के कारण सुमेरू पर्वत सा प्रतीत होने वाला श्रेष्ठतम मन्दिर है।”

चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित कुंभश्याम/कुंभस्वामी मंदिर

मन्दिर में भगवान वराह के हाथों में ढाल, शंख, घोड़े की लगाम, चक्र, गदा, तलवार आदि को दर्शाया गया है। निज मन्दिर में वराह की प्रतिमा पूजी जाने के लिए प्रतिष्ठापित की गई।

श्रृंगार चौरी/चंवरी :- महाराणा कुम्भा के खजांची वेला (साह केला के पुत्र) ने 1448 ई. में शांतिनाथ का एक मंदिर बनवाया। इस मंदिर में 2 मुख्य द्वार हैं। 1455 ई. में इस मंदिर में मोहन नामक व्यक्ति द्वारा कुछ और निर्माण कार्य भी किया गया। मूल रूप से यह मंदिर 12वीं सदी या उससे भी पहले का है।

महावीर स्वामी जैन मंदिर :- यह मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में जैन कीर्ति स्तम्भ के पास स्थित है। इस मंदिर का निर्माण कार्य 1428 ई. में महाराणा मोकल से आज्ञा लेकर प्रारंभ किया गया, जो कि 1438 ई. में महाराणा कुंभा के शासनकाल में समाप्त हुआ।

इस मंदिर का निर्माण गुणराज के पुत्र वाल्हा ने करवाया। इस मंदिर की प्रशस्ति की रचना चारित्र रत्नमणि ने की। इस मंदिर की प्रतिष्ठा सोमसुंदर सूरी ने की। मंदिर में उमा-महेश्वर व ब्रह्मा-सावित्री की मूर्तियां भी हैं।

समिद्धेश्वर मंदिर में निर्माण कार्य :- यह मंदिर मूल रूप से परमार राजा भोज ने बनवाया। फिर महाराणा मोकल ने इस मंदिर का नवीनीकरण किया। तत्पश्चात महाराणा कुम्भा ने इस मंदिर में कुछ और निर्माण कार्य करवाया।

श्रेयांसनाथ का जैन मंदिर :- महाराणा कुम्भा से आज्ञा लेकर ईडर के निवासी वीसल ने चित्तौड़ दुर्ग में इस मंदिर का निर्माण करवाया।

कुंभा महल :- महाराणा कुम्भा ने 13वीं सदी में बने हुए महलों के अवशेषों पर एक नया महल बनवाया, जो आज कुम्भा महल के नाम से प्रसिद्ध है। महाराणा ने कुंभा महल में एक नृत्यागार भी बनवाया।

कुम्भा महल (चित्तौड़गढ़ दुर्ग)

इस प्रकार महाराणा कुम्भा ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग को न सिर्फ युद्धों के दृष्टिकोण से सुरक्षित किया, बल्कि मंदिरों, जलाशयों, नए महलों से इसकी रौनक और बढ़ा दी। चित्तौड़गढ़ दुर्ग में सम्भवतः महाराणा कुम्भा जितना कार्य किसी अन्य शासक ने नहीं करवाया।

महाराणा कुम्भा ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया, जो कि समस्त भारतवर्ष की श्रेष्ठतम शिल्प रचनाओं में से एक है। इसके बारे में अगले भाग में विस्तार से लिखा जाएगा।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

error: Content is protected !!