महाराणा कुम्भा के प्रसिद्ध दरबारी विद्वान मंडन का परिचय :- ये गुजरात के खेता ब्राम्हण के पुत्र थे। प्रसिद्ध कुंभलगढ़ दुर्ग के शिल्पी मंडन ही थे। मंडन अपने समय में हिंदुस्तान के सर्वश्रेष्ठ शिल्पियों में से एक थे।
मंडन वास्तुशास्त्र के ज्ञाता थे। वे शुभ-अशुभ में विश्वास रखते थे। उन्होंने कई ग्रंथों की रचना भी की। मंडन के 2 पुत्र हुए :- गोविंद व ईश्वर।
मंडन द्वारा रचित ग्रंथ :- कोदण्ड मंडन (दण्ड अर्थात धनुर्विद्या का वर्णन), वास्तु मंडन, वास्तुसार, वास्तुशास्त्र, वैद्य मंडन (अनेक प्रकार की व्याधियों व उनके उपचार का वर्णन), रूप मंडन (मूर्ति निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन),
शकुन मंडन (शुभ-अशुभ का वर्णन), देवमूर्ति प्रकरण (मूर्ति निर्माण व मूर्ति स्थापना का वर्णन, इस ग्रंथ के 8 भाग हैं), प्रासाद मंडन, राजवल्लभ मंडन। (प्रासाद मंडन व राजवल्लभ मंडन का वर्णन अगले भाग में विस्तार से किया जाएगा।)
महाराणा कुम्भा के बारे में मंडन द्वारा लिखित महत्वपूर्ण तथ्य :- महाराणा कुम्भा के आश्रित कवि मंडन के लिखे ग्रंथानुसार महाराणा कुंभा रत्नों से जड़ित सुंदर सिंहासन पर बिराजते थे। महाराणा कुम्भा जब कभी भी दुर्ग से बाहर निकलते, तब उनके आगे छड़ीदार चला करते थे, जो महाराणा के हर एक इशारे को समझते थे।
ये छड़ीदार शस्त्रों से लैस होते थे। महाराणा के छत्र, चँवर, ताम्बूल आदि धारण करने वाले लोग राजमहल के दायीं ओर निवास करते थे। महाराणा कुम्भा नाट्यशाला, अध्ययन शाला, वादित्र शाला (वादविवाद हेतु) में भी समय व्यतीत करते थे।
मंडन द्वारा लिखित अन्य बातें :- मंडन ने स्त्रियों के आभूषणों का वर्णन करते हुए लिखा है कि स्त्रियां कांच का चूड़ा, मणियुक्त चूड़ा व हाथीदांत का चूड़ा पहनती हैं। गेहूं, जौ, मूंग, तिल, जुआर, कंगु, ब्रीहि, गन्ना आदि की खेती होती है।
मांस, शराब व अफीम के बारे में मंडन ने लिखा है कि मांस का प्रयोग केवल शिकार और बलि के निमित्त होता है। वैश्यों और ब्राह्मणों में इसका प्रचार नहीं है।
अफीम को पानी में खूब गोटकर तैयार की जाती है और आने वाले लोगों या अतिथियों को पिलाई जाती है, इसे बड़ा आदर सूचक माना जाता है। गांवों में शराब तैयार करने की भट्टियां हैं। (शराब का प्रचलन राजपरिवार में नहीं था)
मंडन शुभ-अशुभ को बहुत मानते थे। उनके अनुसार बालकों को जब पहली बार शिक्षा प्राप्त करने हेतु पाठशाला भेजा जाता है, तब अच्छा मुहूर्त देखकर भेजना चाहिए। गुरु, शुक्र, बुध व रविवार शुभ हैं।
सोमवार को पहली बार पाठशाला भेजने पर मूर्खता आती है, मंगल व शनिवार को पहली बार पाठशाला भेजने पर मृत्यु का भय रहता है।
मंडन ने राजा के महल में ही नृत्य शाला बनाए जाने का उल्लेख किया है। नाट्य शाला में राजा के साथ सभासद, राजमंत्री, वैद्य, ज्योतिषी, कवि, राजा की रानियां व उपपत्नियां होती थीं, जिनके बैठने के लिए विशिष्ट स्थल बने हुए थे।
महाराणा कुम्भा के अन्य दरबारी विद्वान :- गोविंद :- ये मंडन के पुत्र थे। गोविंद द्वारा रचित ग्रंथ :- (1) कलानिधि :- ये देवालयों के शिखर से संबंधित भारत का एकमात्र स्वतंत्र ग्रन्थ है अर्थात इस सम्पूर्ण ग्रंथ में केवल मंदिरों के शिखर का ही वर्णन किया गया है।
(2) सार समुच्चय :- ये अनेक प्रकार की व्याधियों से संबंधित ग्रंथ है। इसमें बीमारियों व उनके इलाज का वर्णन किया गया है। (3) उद्धारधोरिणी (4) द्वारदीपिका।
कान्हव्यास :- महाराणा कुम्भा ने ग्रंथ ‘एकलिंग महात्म्य’ का पहला भाग लिखा था। इस ग्रंथ का दूसरा भाग कान्हव्यास ने लिखा।
जैन आचार्य सोमदेव :- महाराणा कुम्भा ने जैन आचार्य सोमदेव को ‘कविराज’ की उपाधि दी। उस समय वाद-विवाद की प्रतियोगिताएं हुआ करती थीं, जिनमें सोमदेव वादियों को हराने में कुशल थे। इनका प्रभाव इतना ज्यादा था कि इनका नाम सुनकर ही प्रतिवादी चौंक जाते थे।
हीरानन्द मुनि :- महाराणा कुम्भा इनको भी गुरु मानते थे। हीरानन्द जैन थे। महाराणा कुम्भा ने इनको ‘कविराज’ की उपाधि दी।
नाथा :- ये मंडन के भाई थे। इन्होंने ‘वास्तुमंजरी’ ग्रंथ लिखा। कवि मेहा :- इन्होंने ‘तीर्थमाला’ ग्रंथ लिखा, जिसमें 120 तीर्थों का वर्णन किया है।
विद्यानन्द :- ये महाराणा कुंभा के गुरु थे। सारंग व्यास :- ये महाराणा कुम्भा के संगीत गुरु थे।
आशानन्द :- ये पुराण वाचक थे। इन्हीं के वंश में विद्वान चक्रपाणि मिश्र हुए, जो महाराणा प्रताप के समकालीन थे।
महाराणा कुम्भा के शासनकाल में अन्य प्रसिद्ध जैन विद्वान :- जयचंद्र सूरी, सुन्दर सूरी, भुवनसुंदर सूरी, सुंदरगणि, सोमसुंदर, मुनिसुंदर, टिल्ला भट्ट/तिल्ह भट्ट।
महाराणा कुम्भा के शासनकाल में मेवाड़ में लिखित ग्रंथों का वर्णन :- माणिक्य सुंदरगणि ने 1444 ई. में देलवाड़ा में ‘भवभावना बालावबोध’ नामक ग्रंथ लिखा।
जयशेखर सूरी :- इन्होंने 1434 ई. में देलवाड़ा में ‘गच्छाचार’ नामक ग्रंथ की रचना की। यह ग्रंथ हुंबड़ जाति के श्रेष्ठि सींघा ने उस ज़माने में 2 हज़ार का धन व्यय करके लिखवाया।
प्रतिष्ठा सोम :- इन्होंने ‘सोम सौभाग्य’ नामक काव्य लिखा, जिसमें मेवाड़ की भूमि का वर्णन किया गया है। यह काव्य 10 सर्गों में विभाजित है। इसमें ऐतिहासिक महत्व की बातें भी लिखी गई हैं।
इस प्रकार महाराणा कुम्भा के शासनकाल में अनेक ग्रंथों की रचना हुई। साहित्य व कला के दृष्टकोण से महाराणा कुम्भा का शासनकाल स्वर्णकाल था।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)