मेवाड़ के महाराणा कुम्भा (भाग – 22)

महाराणा कुम्भा द्वारा लिखे गए ग्रंथ :- महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल में कई ग्रंथों की रचना की, जिनमें से कुछ ग्रंथ तो प्रामाणिक रूप से कहे जा सकते हैं कि उनकी रचना महाराणा कुम्भा ने ही की।

आधुनिक इतिहासकारों की राय है कि इनमें से कुछ ग्रंथों की रचना में महाराणा कुम्भा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, परन्तु उनका लेखन किसी और ने किया है। महाराणा कुम्भा द्वारा लिखे गए या उनसे प्रभावित ग्रंथ जो बतलाए जाते हैं, वे इस प्रकार हैं :-

संगीतराज :- महाराणा कुम्भा द्वारा लिखे गए सभी ग्रंथों में यह ग्रंथ सबसे बड़ा, सर्वश्रेष्ठ व सिरमौर है। संगीतराज में महाराणा कुम्भा को ‘वेदमार्गस्थापनचतुरासेन’ की उपाधि दी गई है। वेदमार्ग की स्थापना में महाराणा कुम्भा के पिता महाराणा मोकल ने भी काफी प्रयास किए थे।

महाराणा कुम्भा ने संगीतराज में ‘जगदीश्वरीचरणकिंकरेण’ कहकर देवी के प्रति अपनी आस्था प्रकट की। महाराणा कुम्भा ने अपने लेखों की शुरुआत में अक्सर देवी या भगवान शिव का स्मरण किया है।

महाराणा कुम्भा

संगीतराज ग्रंथ में 16,000 श्लोक हैं। बाद में कालसेन नामक एक दक्षिण भारतीय राजा ने संगीतराज ग्रंथ की एक प्रतिलिपि अपने राज्य में तैयार करवा ली थी। महाराणा कुम्भा ने संगीतराज में एक योग्य राजा के गुणों का उल्लेख किया है।

संगीतराज में लिखा है कि एक राजा, राम के समान उच्चकुल का नायक, पात्र-अपात्र का ज्ञान वाला कलाविद, विद्वानों को यथेष्ट सम्मान देने वाला, सत्यभाषी, धनी, कीर्ति प्रिय, अभिष्ट वस्तु का दाता, रूपस्वी व श्रृंगारी होना चाहिए।

संगीतराज ग्रंथ के 5 भाग हैं :- (1) पाठ रत्नकोश :- इसका वर्णन काफी संक्षिप्त है। इसमें स्वर, अलंकार, वादि, संवादि, विवादि, अनुवादि, ताल, लय, मात्रा, न्यास, तांडव आदि की परिभाषाएं दी गई हैं।

(2) गीत रत्नकोश :- इसमें स्वर के मूर्च्छना भेदों का उल्लेख किया गया है। भारतीय संगीत के आधार ‘सरगमपदनिस’ ध्वनियों का भी उल्लेख है। महाराणा कुम्भा ने स्वर अध्याय में पिंडरोत्पत्ति व जीव प्रकृति का वर्णन किया है।

श्रुति प्रकरण में 22 श्रुतियों व उनसे संबंधित नाड़ी, कंठ आदि का वर्णन किया है। मनुष्य के शरीर में वात, पित्त, कफ और सन्निपात चार प्रकार के दोष बताए हैं। इसी प्रकार की स्थिति स्वरों की भी बताई है। स्वर के संबंध में महाराणा कुम्भा का कहना है कि सभी प्रकार की वाणी स्वर में सम्मिलित है।

(3) वाद्य रत्नकोश :- इसमें वाद्ययंत्रों व तालों के बारे में लिखा गया है। प्रत्येक राग के साथ गाई जाने वाली अलग-अलग तालों का भी उल्लेख है। वीणा के 20 प्रकारों का भी वर्णन है। महाराणा कुम्भा को स्वयं वीणा व बांसुरी बजाने में महारथ हासिल थी।

वीणा बजाते हुए महाराणा कुम्भा

(4) नृत्य रत्नकोश :- महाराणा कुम्भा ने नाट्यशाला का उल्लेख किया है। इस ग्रंथ के अनुसार उच्च कुलों के लिए चतुष्कोणात्मक व अन्य कुलों के लिए त्रिकोणात्मक नाट्यशालाएं बनती थीं।

महाराणा कुम्भा के अनुसार विवाह, राजाओं के अभिषेक, यात्रा विजयोत्सव, यज्ञ आदि कर्मों में नृत्य किया जाता था। महाराणा कुम्भा ने किसी काव्य को पढ़ने या सुनने से भी अधिक श्रेष्ठ नृत्य को माना है। उन्होंने नृत्य को धर्मार्थ काम और मोक्ष का साधन माना है।

इस ग्रंथ में नृत्य की विभिन्न मुद्राओं और शरीर के अंगों का वर्णन किया गया है। महाराणा कुम्भा ने इसमें सिर की 14, सम्मिलित हाथों की 24, वक्ष की 5, कमर की 5, चरणों की 13, बाहु की 16 व ग्रीवा की 9 अवस्थाओं का वर्णन किया है।

नट व नर्तकियों की प्रतिमाएं विजय स्तम्भ में भी उत्कीर्ण हैं। नृत्यरत्नकोश में महाराणा कुम्भा ने अकाल न पड़ने व वर्षा होते रहने की कामना की है। महाराणा कुम्भा ने नन्दी के मुख से कहलाया है कि समय पर वर्षा होती रही।

(5) रस रत्नकोश :- रस निष्पति के बारे में महाराणा कुम्भा द्वारा लिखा गया है कि मनुष्य के हृदय में विभिन्न प्रकार के भाव सदैव रहते हैं, जो अव्यक्त रूप से रहते हैं। बाह्य भावों का प्रभाव हृदय के भीतर के भावों पर पड़ता है।

यदि नाट्यशाला में करुण रस का दृश्य देखा जाए, तो हृदय के भीतर के भावों पर प्रभाव पड़ता है और हृदय में जो करुण रस अव्यक्त रूप से रहता है, वह संचारियों द्वारा प्रकटित हो जाता है।

रसिकप्रिया :- ये महाराणा कुम्भा द्वारा लिखित टीका है, जो जयदेव द्वारा लिखित ‘गीतगोविन्द’ ग्रंथ पर आधारित है। सूड प्रबंध :- ये रसिकप्रिया का पूरक ग्रंथ है। इसकी रचना 1448 ई. में चित्तौड़गढ़ दुर्ग में की गई।

कामराज रतिसार :- इसके 7 भाग हैं। इस ग्रंथ का लेखन 1461 ई. को विजयादशमी के दिन कुम्भलगढ़ दुर्ग में पूर्ण हुआ।

महाराणा कुम्भा

चंडीशतक टीका :- महाकवि बाण द्वारा रचित ग्रंथ चंडीशतक पर महाराणा कुम्भा ने एक टीका लिखी। इसमें 3400 श्लोक हैं। इसमें मूल ग्रंथ के मुश्किल पदों को स्पष्ट रूप से समझाने का प्रयास किया गया है।

महाराणा कुम्भा द्वारा संगीत से सम्बन्धित लिखे गए ग्रंथ :- संगीत मीमांसा, संगीतक्रम दीपिका, संगीत रत्नाकर टीका, संगीत सुधा।

महाराणा कुम्भा द्वारा लिखे गए अन्य ग्रंथ :- हरिवार्तिक, वाद्य प्रबंध, राजवर्णन। राजवर्णन ‘एकलिंग महात्म्य’ ग्रंथ का प्रारंभिक भाग है। महाराणा कुम्भा ने 4 नाटकों की भी रचना की थी।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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