मेवाड़ के महाराणा कुम्भा (भाग – 16)

1456 ई. – महाराणा कुम्भा द्वारा नागौर विध्वंस :- नागौर पर फ़िरोज़ खां का राज़ था। फ़िरोज़ खां को एक बार महाराणा मोकल ने व एक बार महाराणा कुम्भा ने परास्त किया था।

1451 ई. में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी ने नागौर पर चढ़ाई की, लेकिन फ़िरोज़ ने गुजरात के सुल्तान की मदद पाकर महमूद की कोशिश नाकामयाब कर दी। इस घटना के कुछ समय बाद फ़िरोज़ मर गया।

फ़िरोज़ के 2 बेटे थे :- बड़ा बेटा शम्स खां व छोटा बेटा मुहाफ़िज़ खां। फ़िरोज़ के मरने पर शम्स खां नागौर के तख़्त पर बैठा, पर उसके छोटे भाई मुहाफ़िज़ खां ने उससे नागौर छीन लिया। (कहीं-कहीं इसका नाम मुजाहिद खां लिखा है)

शम्स खां भागकर मेवाड़ के महाराणा कुम्भा की शरण में आया और महाराणा से कहा कि मुझे नागौर का मालिक बना दें तो आपका बड़ा एहसान होगा। महाराणा ने उसको नागौर दिलाने का वचन दे दिया।

नागौर दुर्ग

1455 ई. में महाराणा कुम्भा के नेतृत्व में मेवाड़ी फ़ौज जब नागौर पहुंची, तो मुहाफिज़ खां घबराया। वह महाराणा कुम्भा से युद्ध करने की स्थिति में नहीं था। उसने नागौर का राज बिना लड़े ही अपने बड़े भाई शम्स खां को दे दिया।

महाराणा कुंभा ने शम्स खां से कहा कि “हमारी अधीनता स्वीकार करने के चिह्नस्वरूप तुम्हें इस किले की एक बुर्ज गिरानी होगी। इसकी मरम्मत तुम कभी नहीं करवाओगे।”

रियासतकाल में अक्सर जब एक शासक अपना प्रभाव दिखाता था, तो किले का एक हिस्सा गिरवा देता और उस गिराए गए हिस्से की मरम्मत बिना उस शासक की अनुमति के नहीं करवाई जा सकती थी।

महाराणा कुम्भा बुर्ज गिरवाने का आदेश देकर पुनः मेवाड़ लौट आए, लेकिन शम्स खां महाराणा के उपकारों को भूल गया। शम्स खां ने महाराणा की अधीनता अस्वीकार करते हुए किले का एक अंश गिराने की बजाय उसको और सुदृढ़ करवाया।

इसके अतिरिक्त नागौर में गौहत्याएं करवाना शुरू कर दिया गया। महाराणा कुम्भा बड़े क्रोधित हुए और उन्होंने 1456 ई. में हज़ारों सैनिकों के साथ नागौर कूच किया। शम्स खां को अंदाज़ा नहीं था कि महाराणा कुम्भा इस कुकृत्य का क्या दण्ड देने वाले हैं।

शम्स खां इतना शक्तिशाली नहीं था कि महाराणा कुम्भा जैसे प्रबल शासक का सामना कर सके। इसलिए महाराणा के पहुंचने से पहले ही शम्स खां किला अपने एक अधिकारी को सौंपकर अपने परिवार सहित अहमदाबाद के सुल्तान कुतुबुद्दीन की शरण में चला गया।

नागौर दुर्ग

सुल्तान कुतुबुद्दीन तो वैसे भी महाराणा कुम्भा का शत्रु था। शम्स खां ने सुल्तान कुतुबुद्दीन को खुश करने के लिए अपनी बेटी का निकाह उससे करवा दिया। कुतुबुद्दीन ने मलिक गदई और राय अमीचंद के नेतृत्व में एक फ़ौज नागौर के लिए रवाना की।

महाराणा कुम्भा ने नागौर का किला घेर लिया। नागौर के कुछ सिपहसालार सेना सहित किले से बाहर आए और महाराणा की फ़ौज पर हमला किया, जिसमें नागौर वालों ने शिकस्त खाई।

इसके बाद गुजरात के सुल्तान की भेजी हुई फ़ौज आ पहुंची। महाराणा कुम्भा ने इस फौज को भी करारी शिकस्त दी। महाराणा कुम्भा की इस विजय का वर्णन फ़ारसी तवारीखों में भी मिलता है।

फिरिश्ता लिखता है कि “मलिक गदई, राय अमीचन्द और नागौर की फ़ौजों को राणा कुम्भा ने करारी शिकस्त दी। इस लड़ाई में गुजरात के कई सैनिक मारे गए और भारी नुकसान हुआ।”

तारीख-इ-अल्फ़ी में गुजराती फ़ौज के साथ शम्स खां का नागौर आना भी लिखा है। यह तवारीख भी महाराणा कुम्भा की विजय का वर्णन करती है।

लेकिन महाराणा कुम्भा का क्रोध केवल नागौर जीतकर शांत नहीं हुआ। महाराणा ने रौद्र रूप धारण किया और आदेश दिया कि “नागौर की ऐसी दशा करो कि मालवा और गुजरात के सुल्तानों के हृदय कांप उठे।”

ग्रंथ वीरविनोद में नागौर के मुसलमानों द्वारा गोहत्या करवाना लिखा है, लेकिन इतिहासकार रामवल्लभ सोमानी इस बात से इनकार करते हुए लिखते हैं कि “नागौर में गोवध होना शंकास्पद है, क्योंकि समसामयिक जैन कृतियों में नागौर में धार्मिक स्वाधीनता का उल्लेख है।”

परन्तु मैं सोमानी जी के इस कथन से सहमत नहीं हूं, क्योंकि महाराणा कुम्भा के शासनकाल में खुदवाई गई कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति में गायों को छुड़वाने की बात लिखी गई है।

कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति के अनुसार “महाराणा कुंभा ने फ़िरोज़शाह की बनवाई हुई मस्जिद जला दी, खाई को भरवा दिया, किले को तोड़ दिया, कई हाथी छीन लिए, यवनियों को क़ैद किया, यवनों को दंड दिया, यवनों से

गायों को छुड़ाया, नागपुर (नागौर) को गोचर बना दिया, पूरे नगर को मस्जिदों सहित जला दिया, शम्स खां के ख़ज़ाने से विपुल धन संचय छीना और गुजरात के सुल्तान को उपहास का पात्र बनाकर रख दिया।”

महाराणा कुम्भा

इस घटना के लगभग 100 वर्ष बाद लिखी गई तवारीख तबकात-ए-अकबरी के अनुसार “राणा कुम्भा ने नागौर में फसलों का नामोनिशान तक नहीं छोड़ा, उसने वहां की मुसलमान रैय्यत (प्रजा) का कत्लेआम करवा दिया।”

महाराणा कुम्भा द्वारा नागौर में की गई इस भीषण कार्रवाई से मालवा और गुजरात के सुल्तान अत्यंत क्रोधित हो गए। महाराणा की इस कार्रवाई के कारण ही मालवा और गुजरात के सुल्तानों ने आपस में सन्धि करने का विचार किया, जिसका वर्णन आगे लिखा जाएगा।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. NANDLAL MOD
    April 5, 2022 / 11:02 am

    होकम,इतिहास को सही मायने मैं प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद,

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