मेवाड़ के महाराणा कुम्भा (भाग – 15)

1454 ई. – मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी की रणथंभौर पर चढ़ाई :- महमूद खिलजी ने हाड़ौती और करौली पर चढ़ाई की। उसने रणथंभौर दुर्ग पर फ़तह हासिल की और फिदई खां को वहां तैनात करके लौट गया।

इसके बाद महमूद खिलजी बहमनी राज्य और दक्षिण भारत की घटनाओं में व्यस्त हो गया। महाराणा कुम्भा ने इस समय रणथंभौर पर आक्रमण किया और फिदई खां को परास्त करके विजय प्राप्त की।

1454 ई. – महमूद खिलजी की मेवाड़ पर चौथी चढ़ाई :- रणथंभौर की पराजय का समाचार जब दक्षिण भारत में महमूद खिलजी के पास पहुंचा, तो वह आग-बबूला हो गया। वह फौरन वहां से रवाना हुआ।

महमूद खिलजी ने अपने बेटे गयासुद्दीन को तो फ़ौज समेत रणथंभौर पर हमला करने भेजा और ख़ुद फौज समेत चित्तौड़गढ़ पर हमला करने के लिए रवाना हुआ।

शहज़ादा गयासुद्दीन रणथंभौर की लड़ाई में महाराणा कुम्भा द्वारा तैनात राजपूतों से परास्त होकर लौट गया। इन्हीं दिनों महमूद ने महाराणा कुम्भा द्वारा जारी किया गया सिक्का देखा, जिस पर महाराणा कुंभा का नाम अंकित था।

रणथंभौर दुर्ग

सुल्तान ये देखकर बहुत क्रोधित हुआ और उसने मंदसौर पर हमला करने के लिए मंसूल उल मुल्क के नेतृत्व में एक फ़ौज भेजी। महाराणा कुंभा द्वारा तैनात राजपूतों ने इस फ़ौज को करारी शिकस्त दी।

फिर महमूद ने महाराणा के नाम एक सन्देश भिजवाया, जिसमें लिखा था कि “मेवाड़ से सटे मालवा के इलाकों पर मैं जल्द ही फ़तह करके अपनी औलादों के लिए खिलजीपुर नाम का एक गाँव बसाउंगा”

जब महमूद खिलजी की फ़ौज चित्तौड़गढ़ पहुंची, तो महाराणा ने खत का जवाब अपनी तलवार से दिया। महाराणा कुम्भा ने फिर से इस फ़ौज को करारी शिकस्त दी। महमूद को हारकर लौटना पड़ा।

1456 ई. – महमूद खिलजी की मेवाड़ पर पांचवी चढ़ाई :- मेवाड़ पर बार-बार हमले करना और हार कर लौटना अब महमूद की आदत बन चुकी थी और वह कैसे भी करके मेवाड़ पर विजय पाकर हार के दाग मिटाना चाहता था।

महमूद मंदसौर की तरफ आगे बढ़ा। जब वह पूर्वी राजस्थान में आया, तब वहां अजमेर के कुछ मुसलमान मिले। उन मुसलमानों ने महमूद से कहा कि “अजमेर पर राणा कुम्भा ने हिन्दू हाकिम नियत कर दिया है, आपको अजमेर हिंदुओं से छीन लेना चाहिए।”

अजमेर दुर्ग

महमूद खिलजी ने सैफुल्लाह को फ़ौज देकर जानागढ़ पर हमला करने भेजा। जानागढ़ में राजपूत परास्त हुए और राजपूतानियों ने जौहर किया। फिर सुल्तान महमूद खिलजी रणथंभौर की तरफ़ बढ़ा और झाईन का किला फ़तह किया।

महमूद वहां से टोडाभीम गया और फिर अजमेर पहुंचा। अजमेर में उसने मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के सामने डेरा डाला और गढ़ पर हमला किया।

महाराणा कुम्भा द्वारा अजमेर दुर्ग में तैनात किए गए हाकिम गजाधर सिंह ने किले से बाहर निकलकर महमूद की फ़ौज पर हमला किया। राजपूत लोग दिन में लड़ाई लड़ते और रात को पुनः किले में आ जाते।

4 दिन तक लड़ाई जारी रही। चौथे दिन जब लड़ाई खत्म हुई और राजपूत किले में जा रहे थे, तब कुछ मुसलमान भी किले में दाखिल हो गए और उन्होंने किले के द्वार खोल दिए।

दोनों पक्षों में भीषण लड़ाई हुई, जिसमें गजाधर सिंह वीरगति को प्राप्त हुए और किले पर महमूद का कब्ज़ा हो गया। वहां महमूद ने ख्वाजा निजामुद्दीन को शफी खां की पदवी देकर तैनात किया। वहीं सुल्तान ने एक मस्जिद भी बनवाई।

महाराणा कुम्भा व महमूद खिलजी के बीच हुआ मांडलगढ़ का युद्ध :- अजमेर फ़तह करके महमूद ने मांडलगढ़ पर चढ़ाई की। उसने बनास नदी किनारे पड़ाव डाला। इस समय महाराणा कुम्भा मांडलगढ़ में ही थे।

महाराणा कुम्भा ने विचार किया कि महमूद द्वारा मांडलगढ़ दुर्ग को घेरना मुश्किल काम नहीं है और घेराबंदी के बाद लड़ाई लड़ना बहुत मुश्किल हो जाएगा। इसलिए महाराणा कुम्भा ने सेना सहित मांडलगढ़ से बाहर निकलकर पड़ाव डाला और अपनी सेना को 3 भागों में बांट दिया।

महाराणा कुम्भा की सेना में तीर-धनुष व भाले लेकर कई भील योद्धा भी खड़े थे। महमूद खिलजी ने अपनी सेना के 2 भाग किए। एक भाग का नेतृत्व ताज खां को व दूसरे भाग का नेतृत्व अली खां को सौंपा।

महाराणा कुम्भा ने एक फौज को अली खां से लड़ने भेजा और एक फ़ौज का नेतृत्व स्वयं करते हुए ताज खां से लड़ने हेतु रवाना हुए। दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ, जिसमें महाराणा कुम्भा ने विजय प्राप्त की।

मालवा की सेना की बहुत बुरी स्थिति हो गई। अगले दिन सुल्तान के मंत्रियों व सेनापतियों ने उससे ज़िद छोड़ने को कहा और अपने सैनिकों की दयनीय स्थिति की तरफ सुल्तान का ध्यान आकर्षित किया।

महाराणा कुम्भा

महमूद खिलजी दूसरे दिन लड़ाई किए बगैर ही मालवा के लिए रवाना हो गया। हर बार की तरह इस बार भी फ़ारसी इतिहासकारों ने बहाने बना लिए। निजामुद्दीन और फिरिश्ता ने महमूद के लौटने की वजह बताते हुए लिखा है कि “सुल्तान के पास यात्रा का सामान खत्म हो गया, जिस वजह से उसे लौटना पड़ा।”

महाराणा कुम्भा विजयी फ़ौज समेत रवाना हुए और निजामुद्दीन को परास्त करके अजमेर पर पुनः अधिकार कर लिया। फिर महाराणा ने रणथंभौर के निकट स्थित झाईन का किला भी विजित किया और इस प्रकार महमूद द्वारा जीते गए समूचे भाग को पुनः प्राप्त कर लिया। ये महमूद की मेवाड़ में लगातार पांचवी पराजय थी।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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