मेवाड़ के महाराणा कुम्भा (भाग – 11)

महाराणा कुम्भा के शासनकाल के प्रथम 7 वर्षों की विजयों का वर्णन :- राजस्थान के कई क्षेत्रों पर मुसलमानों का कब्ज़ा हो चुका था। महाराणा कुम्भा जानते थे कि यदि उन्हें मालवा और दिल्ली के सुल्तानों से लोहा लेना है, तो उन्हें स्वयं एक साम्राज्य की स्थापना करनी होगी।

रणथंभौर विजय :- महाराणा कुम्भा ने रणथंभौर पर आक्रमण करके फिदई खां व अलाउद्दीन नाम के शासक को परास्त किया और गढ़ पर अधिकार किया।

अजमेर विजय :- महाराणा मोकल के अंतिम समय में राव रणमल राठौड़ ने पंचोली खेमसी को भेजकर अजमेर पर विजय प्राप्त की थी और खाटू गांव का पट्टा खेमसी को जागीर में दिया था।

लेकिन उसके बाद नागौर के हाकिम ने अजमेर फिर से छीन लिया था, इस कारण महाराणा कुम्भा ने अजयमेरु (अजमेर) पर आक्रमण कर मुस्लिमों को परास्त किया और दुर्ग पर अधिकार किया।

नागौर विजय :- महाराणा कुम्भा की नागौर विजय का वर्णन 1439 ई. के रणकपुर के शिलालेख में मिलता है। महाराणा कुम्भा ने नागौर पर बाद में और भी आक्रमण किए थे।

इससे मालूम पड़ता है कि महाराणा की यह विजय अधिक समय तक नहीं रही थी या फिर महाराणा जुर्माना वसूल करके लौट गए होंगे। महाराणा ने इस समय नागौर के शासक फ़िरोज़ को परास्त किया, जिसकी लड़ाई पहले महाराणा मोकल से भी हुई थी।

नागौर दुर्ग

सपादलक्ष विजय :- अजमेर, नागौर, डीडवाना तक का भाग सपादलक्ष कहलाता था। महाराणा कुम्भा ने सपादलक्ष के सैन्य अभियान में विजय हासिल करने के लिए पैदल सैनिकों का अधिक प्रयोग किया। शाकम्भरी, सांभर तक का भू-भाग महाराणा कुम्भा ने जीत लिया।

आमेर विजय :- आम्रदादी (आमेर) पर कछवाहा राजपूतों का अधिकार था, परन्तु कायमखानियों ने कछवाहों को परास्त करके आमेर पर कब्ज़ा कर लिया। फिर आमेर के शासक राजा उद्धरण/उधा कछवाहा अपने श्वसुर महाराणा कुम्भा के पास मदद ख़ातिर आए।

महाराणा कुम्भा ने राजा उद्धरण को आमेर की गद्दी दिलाने का वचन दिया और कायमखानियों को परास्त कर राजा उद्धरण को वहां का शासक नियुक्त किया। इस विजय की पुष्टि संगीतराज से होती है।

टोडा विजय :- टोडा पर सोलंकियों का राज था, जिनको मुसलमान शासकों ने परास्त कर दिया था। टोडा के ठाकुर महाराणा कुम्भा की शरण में आए। महाराणा कुम्भा ने टोडा को मुस्लिमों से जीतकर पुनः सोलंकियों को सौंपा। इस विजय की पुष्टि एकलिंग माहात्म्य ग्रंथ से होती है।

हमीरपुर विजय :- महाराणा कुम्भा ने हमीरपुर की लड़ाई में रणवीर विक्रम को क़ैद किया और उसकी पुत्री से विवाह किया।

महाराणा कुम्भा की अन्य विजय :- महाराणा कुंभा ने मलारणा, नारदीयनगर, शोध्यानगरी, धान्यनगर, सिंहपुरी, वासा, सीहारे, बीसलनगर, जनकाचल पर्वत, आमृदाचल पर्वत पर विजय प्राप्त की। इन स्थानों के नाम पुराने होने के कारण वर्तमान नाम पता नहीं चल पाया है।

महाराणा कुम्भा

मेर विद्रोह का दमन :- बदनोर के आसपास मेरों का राज था। ये लोग इस इलाके में अक्सर विद्रोह किया करते थे। महाराणा लाखा के समय में भी इन्होंने विद्रोह किया था।

महाराणा कुम्भा के समय यहां के मेरों का नेता था मुन्नीर, जो कि मुस्लिम धर्म स्वीकार कर चुका था। महाराणा कुम्भा ने मुन्नीर को परास्त किया। मेरों ने महाराणा कुम्भा के शासनकाल के बाद महाराणा रायमल के समय पुनः विद्रोह कर दिया था।

1438 ई. – मेवाड़ में भीषण अकाल :- इस वर्ष मेवाड़ में भीषण अकाल पड़ा, लेकिन जैन धरणक शाह ने अपार धन संपत्ति से इस अकाल का प्रभाव काफी कम कर दिया। महाराणा कुंभा ने अनेक स्थानों पर खैरातखाने खोले, जहां जनता को मुफ़्त भोजन उपलब्ध करवाया गया।

महाराणा कुम्भा के शासनकाल में चलने वाले सिक्कों का वर्णन :- महाराणा कुम्भा ने सोने, चांदी व तांबे के सिक्के चलाए। कुम्भलगढ़ में कुबेर की मूर्ति के पीछे प्रतिहारी रूपयों की थैली लेकर प्रदर्शित किया गया है।

अब तक महाराणा कुम्भा के निम्नलिखित 8 प्रकार के सिक्के मिल चुके हैं :- (1) सामने के भाग पर ‘कुम्भलमेरू महाराणा श्री कुम्भकणस्य’ व पीछे ‘श्री एकलिंगस्य प्रदासात’ अंकित है। सामने के भाग पर भाले का चिह्न है। इसका वजन 196 ग्रेन है।

(2) शब्दों का अंकन नंबर 1 पर बताए सिक्कों की तरह ही है, बस भाले का चिह्न नहीं है व वजन 55 ग्रेन है। (3) सामने की तरफ ‘राणा श्री कुम्भकणस्य’ व पीछे की तरफ ‘श्री कुम्भलमेरू’ अंकित है। भाले का चिह्न नीचे की ओर बना है।

महाराणा कुम्भा के सिक्के

(4) नंबर 3 पर बताए सिक्कों से कुछ छोटा है व भाले का चिह्न बीच में बना है। (5) सामने की ओर ‘राणा श्री कुम्भकर्ण’ व पीछे की ओर ‘श्री कुम्भलमेरू’ अंकित है। बीच में भाले का चिह्न है और वजन 46 ग्रेन है।

(6) नंबर 5 पर बताए सिक्कों की तरह ही है, बस वजन 52 ग्रेन है। (7) नंबर 6 पर बताए सिक्कों की तरह ही है, बस इसमें भाले का चिह्न नहीं है।

(8) सामने की ओर ‘कुम्भकर्ण’ व पीछे ‘एकलिंग’ अंकित है। ये सिक्के सबसे छोटे सिक्के हैं और वजन में भी सबसे कम हैं। इनका वजन 32 ग्रेन है।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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