मेवाड़ के महाराणा कुम्भा (भाग – 9)

1437-38 ई. – महाराणा कुम्भा की हाड़ौती विजय :- महाराणा मोकल के अंतिम समय में हाड़ौती के हाड़ा राजपूतों ने मांडलगढ़ व जहाजपुर के आसपास का क्षेत्र मेवाड़ वालों से छीन लिया था।

मेवाड़ के पूर्वी भाग में स्थित इन मांडलगढ़ व जहाजपुर के दुर्गों का महत्व अधिक था, क्योंकि इनसे मेवाड़ की पूर्वी सीमाओं की रक्षा की जा सकती थी। इसके अलावा मालवा के सुल्तान की दृष्टि भी हाड़ौती पर थी, इसलिए महाराणा कुम्भा ने हाड़ौती पर आक्रमण करना तय किया।

महाराणा कुम्भा ने सबसे पहले मांडलगढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया। कुम्भलगढ़ प्रशस्ति के अनुसार महाराणा कुम्भा ने यह दुर्ग कम शक्ति लगाकर ही जीत लिया।

बूंदी के हाड़ा राजपूतों ने अमरगढ़ के किले पर कब्जा कर रखा था। महाराणा कुम्भा ने मांडलगढ़ से अमरगढ़ की तरफ प्रस्थान किया। महाराणा ने अमरगढ़ किले को घेरकर विजय प्राप्त की। इस लड़ाई में बूंदी वालों की तरफ से तोगजी हाड़ा ने वीरगति पाई।

कई जगह अमरगढ़ का किला मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह प्रथम द्वारा बनवाया जाना लिखा है। सम्भवतः महाराणा अमरसिंह ने इसका नवीनीकरण करवाया होगा।

महाराणा कुम्भा ने अगला आक्रमण जहाजपुर पर किया। प्रशस्तियों के अनुसार महाराणा कुम्भा को यह दुर्ग विजय करने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ी। इसके बाद महाराणा कुम्भा बूंदी पहुंचे।

जहाजपुर दुर्ग

महाराणा ने बूंदी के हाड़ा राजपूतों को परास्त करके उनको अपना सामन्त व करदाता बनाया। यह महाराणा कुम्भा की रणनीति थी, उन्होंने बाद में भी ऐसे कई क्षेत्र जीते, जिन्हें केवल करदाता बनाया।

यहां करदाता से आशय ये है कि उक्त शासकों को अपने राज्य पर राज करने का अधिकार होगा, परन्तु उन्हें अपने राज्य की आय का एक हिस्सा महाराणा तक पहुंचाना होगा।

महाराणा कुम्भा चाहते थे कि स्थानीय राजपूत शासक मुसलमानों के प्रभाव से मुक्त रहें और महाराणा इस उद्देश्य में भी काफी हद तक सफल रहे। यहां मुसलमानों के प्रभाव से आशय ये है कि मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी की दृष्टि भी हाड़ौती पर पड़ी।

मालवा वालों के इतिहास में लिखा है कि हाड़ा भाइयों के बीच संघर्ष के बाद सुल्तान की मदद ली गई थी। कुछ समय के लिए हाड़ौती के कई क्षेत्रों पर सुल्तान का कब्ज़ा भी रहा। बूंदी के नैनवां गांव से सुल्तान के एक अलाउद्दीन नामक हाकिम के शिलालेख मिले हैं।

बूंदी के ग्रंथ वंशप्रकाश में लिखा है कि :- “राणा कुम्भा जब बूंदी पर आक्रमण करने के लिए रवाना होने वाला था, तब उसकी रानी ने कहा कि तीज पर अगर आप चित्तौड़ नहीं आए, तो मैं सती हो जाऊंगी। राणा ने तीज पर आने

का वचन दिया। लेकिन कई दिनों तक संघर्ष करने के बावजूद भी वह बूंदी नहीं जीत सका, तो उसने अपने सरदारों से विचार विमर्श करके चित्तौड़ लौट जाने की बात कही। सरदारों ने कहा कि आप चले गए, तो हम किसको

सलाम करेंगे, आप ऐसा करें कि अपनी पगड़ी यहीं रख जावें। ताकि हम पगड़ी को सलाम करके लड़ाई जारी रखेंगे। राणा ने ऐसा ही किया। फिर एक रात्रि को जब मेवाड़ के सैनिक सो रहे थे, तब बूंदी वालों ने हमला

महाराणा कुम्भा

किया। बूंदी के एक सरदार हरिसिंह ने राणा कुम्भा की पगड़ी लेने में कामयाबी हासिल कर ली। यह समाचार जब चित्तौड़ पहुंचा, तो राणा कुम्भा रनिवास में ही रहने लगा और 2 माह बाद शर्मिंदगी के कारण वहीं उसकी मृत्यु हो गई।”

वैसे तो उक्त कथन इतना अधिक पक्षपात से भरा हुआ है कि इसे गलत सिद्ध करना ही व्यर्थ है, परन्तु फिर भी इसके विरोध में कुछ ठोस तर्क इस तरह हैं :-

महाराणा कुम्भा के बूंदी पर आक्रमण का उल्लेख रणकपुर के शिलालेख में है, जो कि महाराणा कुम्भा के शासनकाल में 1439 ई. में खुदवाया गया। अर्थात यह घटना इस वर्ष से ठीक पहले की है।

इतिहासकारों ने महाराणा कुम्भा के बूंदी आक्रमण का वर्ष 1436 ई. से 1438 ई. के बीच माना है। महाराणा कुम्भा 1433 ई. में गद्दी पर बैठे थे अर्थात हाड़ौती पर आक्रमण उनके शासनकाल के प्रारंभिक आक्रमणों में से एक है।

परन्तु वंशप्रकाश के अनुसार तो इस आक्रमण के 2 माह बाद महाराणा कुम्भा चित्तौड़ के रनिवास में रहकर शर्म से मर गए। जबकि महाराणा कुम्भा का देहांत 1468 ई. में कुम्भलगढ़ दुर्ग में होना तो सभी इतिहासकार स्वीकार करते हैं।

डॉ. ओझा ने वंशप्रकाश के कथन को सिरे से ही नकार दिया और उन्होंने लिखा कि “जो महाराणा बड़े-बड़े सुल्तानों को परास्त कर देते थे, जिनके समय में उनके जैसा प्रबल हिन्दू राजा कोई दूसरा नहीं था, उनका अपने ही मातहत रह चुके बूंदी राज्य से पराजित होना और फिर शर्म से मर जाना लिखा है जो हास्यास्पद ही है”

तारागढ़ दुर्ग (बूंदी)

बहरहाल, इस विजय अभियान में महाराणा कुम्भा ने बूंदी को तो करदाता बनाया और मांडलगढ़, अमरगढ़, बिजोलिया व जहाजपुर को पूर्ण रूप से मेवाड़ में शामिल कर लिया।

महाराणा कुम्भा के शासनकाल में 1460 ई. में खुदवाए गए कुंभलगढ़ के शिलालेख के अनुसार महाराणा कुम्भा ने बबावदा (बम्बावदा), मण्डलकर (मांडलगढ़) को विजय किया। हाड़ावटी (हाड़ौती) को जीतकर वहाँ के राजाओं को करद (खिराजगुजार) बनाया और षटपुर (खटकड़) तथा वृन्दावती (बूंदी) को जीत लिया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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