1438 ई. – राव रणमल्ल की हत्या :- मारवाड़ की ख्यात में राव रणमल की हत्या विक्रम संवत 1500 अर्थात 1443 ई. में होना लिखा गया, जिसका अनुसरण करते हुए वीरविनोद में भी यही तिथि दर्ज कर ली गई।
परंतु महाराणा कुम्भा के शासनकाल में 1439 ई. में खुदवाए गए रणकपुर के शिलालेख में महाराणा कुम्भा की मंडोवर विजय का वर्णन लिखा है। इसलिए इतिहासकारों ने राव रणमल की हत्या 1438 ई. में होना स्वीकार किया है।
राव रणमल ने चाचा और मेरा को मारकर महाराणा मोकल की हत्या का प्रतिशोध लिया, लेकिन इसके बाद उन्होंने महाराणा लाखा के पुत्र राघवदेव की हत्या कर दी। राघवदेव की हत्या से सिसोदिया राजपूत राव रणमल से नाराज़ रहने लगे।
परन्तु चित्तौड़ में राव रणमल का प्रभाव काफी बढ़ गया था। राव रणमल ने राठौड़ों को उच्च पदों पर आसीन किया। राव रणमल के खास व्यक्ति भाटी शत्रुशाल को चित्तौड़ का किलेदार बना दिया गया।
एक दिन महाराणा मोकल के हत्यारे महपा पंवार और चाचा का पुत्र एका (इक्का) महाराणा कुम्भा के पास आए और अपने अपराधों के लिए क्षमा मांगी, तो महाराणा ने उनको क्षमा कर दिया।
यह बात राव रणमल को रास न आई और उन्होंने महाराणा से उन्हें दंड देने को कहा, तो महाराणा ने कहा कि “हम शरणागत रक्षक यूँ ही नहीं कहलाते”। इस बात से राव रणमल के मन में संदेह उत्पन्न हुआ।
एक दिन एका महाराणा कुम्भा के पैर दबा रहा था कि तभी उसकी आंख से निकले आंसू महाराणा के पैर पर गिरे। महाराणा ने पूछा कि क्या हुआ, तो एका ने कहा कि “सिसोदियों के हाथों से मेवाड़ जा रहा है हुकम”
तब महाराणा कुंभा ने उससे कहा “क्या तू मारेगा रणमल को ?” तो एका ने कहा “आपका हाथ मेरी पीठ पर रहे, तो मैं ही मारूंगा उसे”। महाराणा ने कहा “अच्छा, मार देना, पर समय आने पर”।
महाराणा कुम्भा की माता सौभाग्यदेवी की भारमली नाम की एक दासी थी, जो राव रणमल की ख़ास थी। एक दिन राव रणमल नशे में चूर थे और भारमली देर से आई, जब राव रणमल ने कारण पूछा तो भारमली ने कहा “मैं दासी हूँ, राजमाता की सेवा में व्यस्त थी”
तब राव रणमल ने नशे में उससे कह दिया कि “तूझे किसी की सेवा करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जिनको चित्तौड़ में रहना होगा, वे तेरी नौकरी करेंगे”
भारमली ने यह बात राजमाता सौभाग्यदेवी को बताई और राजमाता ने अपने पुत्र महाराणा कुम्भा को बताया, तो महाराणा का शक़ यकीन में बदल गया। मेवाड़ में इस समय राठौड़ों का दबदबा था और सीधे तौर पर राव रणमल को मारना आसान कार्य न था।
राव रणमल ख़ुद भी बहादुरी में बड़े-बड़े योद्धाओं को धूल चटाने की क्षमता रखते थे। एक दिन महाराणा कुम्भा ने अपनी माता सौभाग्यदेवी जी से सलाह की। राजमाता ने कहा कि “हर तरफ राठौड़ ही दिखाई देते हैं, अब चूंडा को बुलाने का समय आ गया है।”
महाराणा कुम्भा ने एक सवार भेजकर रावत चूंडा को बुलावा भिजवाया, जो कि इस समय मालवा में थे। चुंडाजी अपने भाई अज्जाजी के साथ चित्तौड़ आ गए।
राव रणमल ने ये देखकर राजमाता से कहा कि “चुंडा का यहां आना ठीक नहीं है, वह राज्य पाने की लालसा में दगा कर सकता है”। राजमाता सौभाग्यदेवी ने कहा कि
“जिसने राज्य का उत्तराधिकारी होने पर भी अपने छोटे भाई के लिए राज्य त्याग दिया, ऐसे सत्यव्रती को किले में न आने देने से तो बड़ी निंदा होगी। वैसे भी वह तो थोड़े से आदमियों सहित ही यहां आया है।”
एक दिन एक व्यक्ति ने राव रणमल से कहा कि “मुझे संदेह है कि महाराणा आपको मरवा देंगे”। ये सुनकर राव रणमल ने अपने पुत्रों जोधा, कांधल आदि को सचेत किया और ये कहते हुए किले की तलहटी में भेज दिया कि “मैं बुलाऊँ तब भी तुम किले पर मत आना”
महाराणा कुम्भा और रावत चूंडा ने सलाह की। रावत चूंडा ने कहा कि राठौड़ों को तलहटी से किले में लाकर मार देना चाहिए। एक दिन महाराणा कुम्भा ने राव रणमल से पूछा “आजकल जोधा कहाँ है ? वह यहां क्यों नहीं आता ?”
राव रणमल ने कहा “वह तो तलहटी में ही रहकर घोड़ों को चराता है”। महाराणा ने कहा “उसे बुलाओ”। पर राव रणमल महाराणा की इस बात को टालते ही रहे।
एक रात महाराणा ने दासी भारमली के ज़रिए राव रणमल को खूब शराब पिलवाई और जब रणमल बेहोश हो गए, तो उनकी पगड़ी से उनको खाट से कसकर बांध दिया गया। मुहणौत नैणसी ने 25 गज लंबी पछेवड़ी से राव को बांधना लिखा है।
फिर महपा पंवार अपने साथियों सहित भीतर गया और राव रणमल पर प्रहार किए, तो वृद्ध राव रणमल ने बड़ी बहादुरी दिखाई और खाट समेत खड़े हो गए।
राव रणमल ने उस अवस्था में भी महाराणा के एक सैनिक को कटार से मारा, दूसरे को पानी के लोटे से मारा और तीसरे को लातों से मार गिराया। इस तरह 3 सैनिकों को मार दिया और ख़ुद भी काम आए।
मेवाड़ के इतिहास में इस समय राव रणमल द्वारा 3 आदमियों को ही मारना लिखा है, परन्तु मारवाड़ के इतिहास में मुहणौत नैणसी ने 2 अलग-अलग बयान दिए।
नैणसी ने मेवाड़ का इतिहास लिखते समय महाराणा कुम्भा के अध्याय में राव रणमल द्वारा 3 आदमियों को मारना लिखा है, लेकिन नैणसी ने जब मारवाड़ का इतिहास लिखा, तब राव रणमल के अध्याय में 16 आदमियों को मारना लिखा। निश्चित ही 16 आदमियों को मारने की बात अतिश्योक्ति है।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
मेरे पास इतिहास की अनेक पुस्तकें पीडीऍफ़ में हैं मुहनौत नेणसी, वीर विनोद (श्यामल दास) इलियट एंड डाउसन का भारत का इतिहास, तुजुक ए जहागीरी – मथुलाल शर्मा, द मुग़ल एम्पायर – आर सी मजूमदार, कल्हण – राज तरंगिणी, बाबरनामा, आशारवादी लाल श्रीवास्तव, प्रो सतीश चन्द्र, प्रबंध चिंतामणि – मेरुतुन्गाचार्य आदि