मेवाड़ के महाराणा कुम्भा (भाग – 5)

1437 ई. – सारंगपुर का युद्ध :- ग्रंथ वीरविनोद में सारंगपुर का युद्ध 1439 ई. में होना लिखा है, जो कि गलत है। वास्तव में यह युद्ध 1437 ई. में हुआ था। सारंगपुर वर्तमान में मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले में स्थित है।

मालवा में उत्तराधिकार संघर्ष हुआ, जिसमें सुल्तान महमूद खिलजी तो मालवा की गद्दी पर बैठ गया और मसूद खां भागकर गुजरात के सुल्तान अहमदशाह की शरण में गया। कुछ समय बाद होशंगशाह का बेटा उमर खां भी भागकर गुजरात गया।

लेकिन गुजरात के सुल्तान अहमदशाह ने उमर खां की मदद नहीं की, क्योंकि वह पहले ही मसूद खां को मालवा के तख्त पर बिठाने की ठान चुका था। उमर खां गुजरात से रवाना हुआ और मेवाड़ के महाराणा कुम्भा की शरण में आया।

महाराणा कुम्भा ने उमर खां की सहायता करने का वादा किया। इस समय दिल्ली का तत्कालीन शासक मुहम्मद शाह सैयद था, जो कि खिलजियों की शक्ति को कम करना चाहता था। हालांकि दिल्ली के शासक की सारंगपुर युद्ध में कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं रही।

युद्धरत महाराणा कुम्भा

कुल मिलाकर स्थिति ऐसी थी कि दिल्ली, गुजरात व मेवाड़, तीनों ही शासक मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को परास्त करना चाहते थे। रणकपुर के शिलालेख (1439 ई.) के अनुसार दिल्ली व गुजरात के सुल्तानों ने महाराणा कुम्भा को ‘हिन्दू सुरत्राण’ की उपाधि दी।

इसी दौरान एक और घटना घटी, जिसके कारण महाराणा कुम्भा का मालवा पर आक्रमण करने का विचार और दृढ़ हो गया। एक दिन महाराणा कुम्भा ने राव रणमल राठौड़ से कहा कि “हमारे पिता के हत्यारे चाचा और मेरा को तो उचित दंड मिल गया, पर महपा पंवार को अब तक दंड नहीं मिला”

महपा पंवार ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम के यहां शरण ले रखी थी। महपा का नाम कहीं-कहीं महिपाल भी लिखा है। ये अजमेर में स्थित श्रीनगर का निवासी था।

राव रणमल राठौड़ की सलाह पर महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूद को खत लिखा कि “हमारे पिता के हत्यारे महपा पंवार को हमारे सुपुर्द कर दिया जावे तो ठीक, वरना मुकाबले को तैयार रहना”

महमूद ने महाराणा के ख़त का सख़्त जवाब देते हुए लिखा कि “क्या कभी ऐसा हुआ है कि पनाह में आए हुए शख़्स को कोई बहादुर गिरफ्तार करवा दे ? महपा मेरी पनाह में आया है, उसकी हिफाज़त के लिए मैं लड़ने को भी तैयार हूँ”

इस समय मेवाड़ के रावत चुंडा व उनके भाई अज्जा जी, दोनों महमूद खिलजी के यहीं रहते थे। इस मौके पर जब सुल्तान ने उन दोनों से कहा कि “हम राणा के ख़िलाफ़ जंग पर जा रहे हैं, तुम भी चलो हमारे साथ। रणमल से भी अपने भाई राघवदेव की मौत का बैर निकाल लेना”

महाराणा कुम्भा

तब रावत चुंडा ने कहा कि “हमें राणाजी से कोई बैर नहीं है, इसलिए हम इस लड़ाई में आपका साथ नहीं दे सकते”। ये कहकर दोनों ही अपनी-अपनी जागीरों में चले गए।

मालवा का सुल्तान मेवाड़ पर आक्रमण के लिए रवाना होता, उससे पहले ही गुजरात का सुल्तान अहमदशाह फरवरी-मार्च, 1437 ई. को फ़ौज समेत मालवा पर चढ़ाई करने हेतु रवाना हो गया।

गुजरात के सुल्तान ने सर्वप्रथम जयसिंहपुर पर आक्रमण किया। फिर जनकपुर में पड़ाव डालकर आक्रमण की तैयारी की। फिर उसने मालवा के किले को घेर लिया। इस समय किले के अंदर बैठे मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी की बड़ी दयनीय स्थिति हो गई।

क्योंकि एक तो गुजरात की फ़ौज किले पर घेरा डाले बैठी थी और दूसरी समस्या ये कि किले के अंदर ही कई विश्वासघाती भी जमा होने लगे। लेकिन महमूद इन परिस्थितियों से घबराया नहीं।

महमूद के लिए परिस्थितियां और गंभीर होती जा रही थीं, क्योंकि इसी समय मेवाड़ के महाराणा कुम्भा ने मालवा पर आक्रमण करने हेतु भारी भरकम फ़ौज सहित मेवाड़ से प्रस्थान किया। इस समय उमर खां की फ़ौज भी महाराणा के साथ थी।

महाराणा कुम्भा ने अपनी सेना से कहा कि “मेवाड़ से मालवा के मार्ग में आने वाले हर एक किले को अपनी तलवारों की धार दिखाओ। फिर कोई मेवाड़ के शत्रु को शरण देने का विचार न करे, ऐसी बहादुरी दिखाओ।”

महाराणा कुम्भा मालवा जाने के मार्ग में आने वाले किले एक-एक करके जीतते गए। महाराणा कुम्भा व ग्वालियर के डूंगरसिंह ने मिलकर नरवर पर आक्रमण किया और वहां के हाकिम बुहार खां मुकेती को परास्त किया।

नरवर पर महाराणा के इस आक्रमण का उल्लेख मासिर-इ-मोहम्मदशाही में मिलता है। फिर महाराणा कुम्भा चंदेरी पहुंचे। मलिक उल उमरा हाजी को मरवाकर चंदेरी का किला उमर खां को दिलवाया गया।

चंदेरी दुर्ग

महाराणा कुम्भा की चंदेरी विजय का समाचार सुल्तान महमूद खिलजी को मिला, तो उसे बहुत दुःख हुआ। चंदेरी से महाराणा कुम्भा ने भेलसा पर चढ़ाई की। भेलसा को जीतने में महाराणा कुम्भा को अधिक कठिनाई नहीं हुई।

क्योंकि भेलसा का हाकिम आज़म हुमायूं मालवा के सुल्तान की मदद के लिए पहले ही रवाना हो चुका था। भेलसा पर छुटपुट लड़ाई के बाद महाराणा का अधिकार हुआ। भेलसा से महाराणा कुम्भा ने सिहोर पर चढ़ाई कर विजय प्राप्त की।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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