मेवाड़ के महाराणा कुम्भा (भाग – 3)

राव रणमल राठौड़ व राघवदेव में अनबन :- राव रणमल राठौड़ ने महाराणा कुम्भा के पिता महाराणा मोकल के हत्यारों को मारकर मेवाड़ में अपना रुतबा क़ायम कर लिया।

राव रणमल ने जब महाराणा मोकल के हत्यारों चाचा व मेरा के डेरों पर हमला किया था, तब वहां पुरुषों को तो मार डाला और लड़कियों को देलवाड़ा ले आए। ये लड़कियां चाचा व मेरा के पक्ष वालों की थी।

मारवाड़ के मुहणौत नैणसी ने लिखा है कि “राव रणमल ने सिसोदियों के सिरों को काटकर मंडप बनवाया और वहां उनकी लड़कियों को राठौड़ों से ब्याह दिया। राव रणमल ने भी चाचा की बेटी से विवाह किया।”

नैणसी का कथन ही कल्पित है। वास्तव में हुआ ये था कि महाराणा कुम्भा के काका राघवदेव (महाराणा लाखा के द्वितीय पुत्र व रावत चूंडा के छोटे भाई) को इस बात की भनक लगी कि राव रणमल चाचा व मेरा के पक्ष वालों की 500 लड़कियों को देलवाड़ा ले गए हैं

और वहां वे उन सबको राठौड़ों को सौंपना चाहते हैं, तो राघवदेव उन सब लड़कियों को अपने साथ ले गए। इस बात से रणमल और राघवदेव में अनबन हो गई।

वैसे भी उन लड़कियों से राठौड़ राजपूतों में विवाह नहीं हो सकता था और राव रणमल का विवाह तो चाचा की बेटी से हर्गिज़ नहीं हो सकता था, क्योंकि चाचा स्वयं ही महाराणा क्षेत्रसिंह की अवैध सन्तान था।

राव रणमल

1437 ई. – राव रणमल राठौड़ द्वारा राघवदेव की हत्या :- राव रणमल ने धोखे से राघवदेव की हत्या कर दी, जिसका हाल कुछ इस तरह है कि रणमल ने राघवदेव को सिरोपाव दिलवाने के बहाने महाराणा कुम्भा के सामने बुलवाया।

सिरोपाव के अंगरखे की दोनों बाहों के मुंह सीये हुए थे। जब राघवदेव ने अंगरखा पहना तो उनके दोनों हाथ फँस गए, इतने में रणमल ने अपने 2 सैनिकों को इशारा किया और दोनों ने तलवारों से वार कर राघवदेव की हत्या कर दी।

हत्या हेतु ऐसा षड्यंत्र इसलिए किया गया, क्योंकि राघवदेव काफी बलशाली थे। दोनों हाथ खुले व हाथों में तलवार होती, तो वे किसी के बस में नहीं आते।

महाराणा कुम्भा को तनिक भी आभास न था कि रणमल ऐसा कर देंगे, परंतु उस समय रणमल का प्रभाव इतना अधिक बढ़ चुका था कि महाराणा कुम्भा स्वयं भी कुछ न कर सके, परंतु अब उन्हें यह विश्वास हो चुका था कि रणमल का मेवाड़ में रहना उचित नहीं।

मारवाड़ के लेखक मुहणौत नैणसी ने राव रणमल के बचाव में व राघवदेव के विरोध में कुछ बातें लिखी हैं। उन्होंने लिखा कि “राघवदेव राणा कुम्भा की धरती पर बिगाड़ करता था, इसलिए राणा ने उसे मारने का विचार किया। एक दिन राघवदेव की एक बांह रणमल ने पकड़ी

महाराणा कुम्भा

व दूसरी बांह राणा कुम्भा ने पकड़ी और दोनों ने राघवदेव के शरीर में कटार धोंस दी। दोनों ने राघवदेव के हाथ छोड़ दिए, तो वह भाग निकला। राघवदेव जलेबखाने से निकलकर पोली के बाहर पहुंचा था कि तभी एक राजपूत

ने उसका सिर धड़ से जुदा कर दिया। उसका धड़ भागने लगा। फिर उसके धड़ ने शीश को उठाया और कमरबंद में बांध दिया। वह घोड़े पर सवार होकर अपने घर की तरफ गया। प्रभात होते ही वह चित्तौड़ से 17 कोस दूर पड़ावली

गांव में पहुंचा। वहां किसी पनिहारी ने देखा कि एक योद्धा बिना सिर के घोड़े पर सवार होकर आ रहा है। वह स्त्री रजस्वला थी, उसकी छाया पड़ते ही राघवदेव घोड़े से गिर गया और उसकी 5-7 पत्नियां सती हुईं।”

मुहणौत नैणसी का यह सारा कथन ही पक्षपात से भरा हुआ है, जिसमें कोई सच्चाई नहीं। नैणसी ने यह तो लिख दिया कि राघवदेव राणा कुम्भा की धरती पर बिगाड़ करता था, परन्तु यह नहीं लिखा कि क्या बिगाड़ करता था।

वास्तव में राघवदेव को तो उनके बड़े भाई रावत चूंडा ने योग्य समझकर महाराणा मोकल के समय संरक्षक नियुक्त किया था। इतिहास में राघवदेव द्वारा किया गया कोई भी गलत काम पढ़ने में नहीं आता है।

दूसरी बात राघवदेव के धड़ का पड़ावली जाना और वहीं मरना लिखा है, जबकि इस बात को गलत सिद्ध करने का एक ही प्रमाण पर्याप्त है। राघवदेव की हत्या व उनका दाह संस्कार चित्तौड़ दुर्ग में ही किया गया।

दुर्ग में स्थित सिसोदिया वंश की कुलदेवी बायण माताजी के मंदिर के परिसर में राघवदेव की छतरी स्थित है, जहां राघवदेव को पितृ मानकर पूजा की जाती है।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित राघवदेव की छतरी

‘राठौड़ वंश री विगत’ में इतना ही लिखा है कि “राव रणमल चाचा और मेरा का विद्रोह शांत करके चित्तौड़ की तरफ गए।”

वास्तव में राव रणमल द्वारा राघवदेव की हत्या का कारण मात्र एक अनबन नहीं थी। राव रणमल के वास्तविक उद्देश्य के बीच में राघवदेव दीवार बनकर खड़े थे, इसलिए रणमल के लिए राघवदेव को रास्ते से हटाना आवश्यक हो गया था।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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