मेवाड़ के महाराणा कुम्भा (भाग – 1)

महाराणा कुम्भा का जीवन परिचय :- महाराणा कुम्भा का जन्म 1417 ई. में हुआ। कई जगह 1427 ई. लिखा है, जिसको कई मान्य इतिहासकारों ने गलत सिद्ध कर दिया है। महाराणा कुम्भा का मुख्य नाम महाराणा कुम्भकर्ण था।

महाराणा कुम्भा का जन्म स्थान माल्यावास गांव बताया जाता है, लेकिन मुझे इस संबंध में अब तक कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं हुई है। वर्तमान में इस गांव में महाराणा कुम्भा के जीवन पर आधारित पैनोरमा भी बनवाया गया है।

महाराणा मोकल :- ये महाराणा कुम्भा के पिता थे। चाचा, मेरा, इक्का, महपा पंवार वगैरह गद्दारों ने महाराणा मोकल की हत्या कर दी।

सौभाग्य देवी :- ये महाराणा कुम्भा की माता थीं। ये परमार राजा जैतमल सांखला की पुत्री थीं। कहीं-कहीं इनका नाम माया कंवर व सुहागदे भी लिखा गया है।

महाराणा कुम्भा पैनोरमा (माल्यावास)

महाराणा कुम्भा का व्यक्तित्व व महाराणा के नेतृत्व में मेवाड़ की स्थिति :- महाराणा कुंभा एक योद्धा के रूप में अजेय थे, चाहे छापामार लड़ाइयां हो या आमने-सामने के युद्ध।

इन महाराणा ने अपने जीवनकाल में 100 से ज्यादा लड़ाइयां लड़ी और एक में भी पराजय का सामना नहीं किया। बड़े-बड़े सुल्तानों को इन महाराणा ने अपने बाहुबल से झुकाया।

कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में महाराणा कुम्भा को निर्भय व निशंक कहा गया है। महाराणा कुम्भा ने अपने से अधिक शक्तिशाली मालवा और गुजरात के सुल्तानों को एक साथ परास्त किया था।

महाराणा कुम्भा कुशल राजनीतिज्ञ थे। वे साम, दाम, दंड, भेद सभी नीतियों के ज्ञाता थे। कुछ पुस्तकों में महाराणा उदयसिंह को छापामार युद्ध कला को सर्वप्रथम लागू करने वाला शासक कहा गया है, परन्तु उनसे पहले महाराणा कुम्भा ने इस कला में महारत हासिल कर ली थी।

महाराणा कुंभा विद्यानुरागी, विद्वानों के सम्मानकर्ता, साहित्य प्रेमी, संगीत के आचार्य, नाट्यकला में कुशल, कवियों के शिरोमणि, मेवाड़ी-महाराष्ट्री-कर्णाटी-संस्कृत आदि भाषाओं के ज्ञाता, अनेक ग्रंथों के रचयिता, शिल्प के अनुरागी थे।

कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति के अनुसार महाराणा कुम्भा वीणा वादन में निपुण थे। महाराणा कुम्भा भगवान विष्णु के परम भक्त थे। भगवान विष्णु के निमित्त महाराणा ने अनेक मंदिरों व जलाशयों का निर्माण करवाया।

इन महाराणा के चेहरे पर कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी मुस्कान कम न होती थी, परंतु क्रोध आने पर इनकी आंखों में प्रलय साक्षात दिखाई पड़ता था, ऐसा ही कोप इन महाराणा ने नागौर विजय के दौरान दिखाया था।

महाराणा कुम्भा ने वर्णाश्रम धर्म का पालन करने व करवाने का प्रयास किया था। उन्होंने तीर्थ स्थानों को धार्मिक करों से मुक्ति दिलाई।

जैन यात्रियों से लिए जाने वाले करों को भी माफ करवाया। संगीत राज ग्रंथ में महाराणा कुम्भा ने यह कामना की है कि ब्राह्मणों के शत्रुओं का नाश हो जाए।

महाराणा कुंभा ग्रीष्म ऋतु में कूंड्या तालाब में जलक्रीड़ा किया करते थे। महाराणा कुम्भा का कद लंबा व शरीर बलिष्ठ था। महाराणा कुम्भा के शासनकाल में मेवाड़ अपनी प्रगति की चरम सीमा पर था।

महाराणा कुम्भा

इतिहासकार राधावल्लभ सोमानी जी के अनुसार सिरोही के देवड़ा, ढूंढाड़ के कछवाहा, द्रोणपुर छापर के मोहिल रुण, जांगूल के सांखला, जैतारण के सिंघल, सोजत व कायलाणे के राठौड़ महाराणा कुम्भा के सामंत हुआ करते थे।

(जांगलू के नापा सांखला कई वर्षों तक महाराणा के दरबार में रहे थे) मेवाड़ की सीमाएं मेवाड़ को पार करते हुए आबू से सांभर तक, पाली और मंडोर से लेकर गागरोन तक, रणथंभौर और मंदसौर तक फैल गईं।

इनके अतिरिक्त महाराणा कुम्भा ने जो भी क्षेत्र जीते, उनको मेवाड़ में शामिल न करके केवल करदाता बनाया। बूंदी के हाड़ाओं को महाराणा ने करदाता बनाया था, जिसका उल्लेख कुंभलगढ़ प्रशस्ति में मिलता है।

हरविलास शारदा लिखते हैं “महाराणा कुम्भा एक महान शासक, महान सेनाध्यक्ष, महान निर्माता, वरिष्ठ विद्वान थे”

महाराणा कुम्भा मेवाड़ के सभी शासकों में से सर्वाधिक युद्ध जीतने वाले, सर्वाधिक ग्रंथ लिखने वाले, सर्वाधिक निर्माण कार्य करवाने वाले शासक हुए। कला और शिल्प के मामले में महाराणा कुम्भा का शासनकाल मेवाड़ के लिए स्वर्णकाल था।

महाराणा कुम्भा की उपाधियां-उपनाम :- (1) राजगुरु (राजाओं को शिक्षा देने वाला) (2) तातगुरु (3) दानगुरु (4) चापगुरु (धनुर्विद्या का शिक्षक) (5) छापगुरु (छापामार युद्ध पद्दति का गुरु) (6) हालगुरु (पहाड़ी दुर्गों का स्वामी)

(7) शैलगुरु (भाला सिखाने वाला) (8) परमगुरु (राजाओं का सबसे बड़ा गुरु) (9) तोडरमल्ल (महीमहेन्द्र अर्थात पृथ्वी का इंद्र। ये उपाधि महाराणा को उनकी विशाल सेना के कारण मिली) (10) नाटकराज का कर्ता

(11) धीमान (बुद्धिमत्तापूर्ण निर्माण कार्य करवाने वाला) (12) राणो रासो (विद्वानों का आश्रयदाता) (13) राणेराय (14) गणपति (15) नरपति (विशाल पैदल फौज वाला) (16) अश्वपति (विशाल घुड़सवारों की फौज वाला)

(17) हिन्दु सुरत्राण (हिन्दुओं का सुल्तान या बादशाह) (18) अभिनव भरताचार्य (19) नंदिकेश्वरावतार (20) राजस्थान में स्थापत्य कला का जनक (21) राय रायन (22) रावराय (23) वीणावादन प्रवीणेन (वीणा बजाने में निपुण)

(24) परमभागवत (25) नव्य भरत (26) आदिवराह (वसुंधरोद्धरणादिवराहेण – भगवान विष्णु के प्राथमिक अवतार वराह के समान वैदिक व्यवस्था का पुनर्संस्थापक)

इतनी उपाधियां मेवाड़ तो क्या, राजपूताने के किसी भी अन्य शासक ने धारण नहीं की। महाराणा कुम्भा इन सब उपाधियों के योग्य थे।

महाराणा कुम्भा की जन्मस्थली में स्थित मंदिर

महाराणा कुम्भा से संबंधित एक दोहा :- सापा वियो मयंक पह सुभ्रस, मन अणबंछत तूझ मण। कलम कुराण पाण तज कुम्भा, बांचण लागा हर बयण।। अर्थात

हे महाराणा कुम्भा, आपके बड़प्पन को अन्य राजा नहीं चाहते, लेकिन फिर भी आपका बड़प्पन सब पर है। आपके इसी बड़प्पन के कारण यवन लोग कुरान छोड़कर वेद पढ़ने लग गए हैं।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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