1433 ई. – महाराणा मोकल की हत्या व कुँवर कुम्भा का संघर्ष :- चाचा, मेरा वगैरह षड्यंत्रकारियों ने महाराणा मोकल के शिविर में उनकी हत्या कर दी। इस समय 16 वर्षीय कुँवर कुम्भा भी शिविर के आसपास ही थे। (कुछ लेखकों ने इस समय कुँवर कुम्भा की आयु 5-7 वर्ष बताई है, जो कि गलत है।)
परन्तु कुम्भा अभी इस स्थिति में नहीं थे कि इतने षड्यंत्रकारियों का सामना कर सके, क्योंकि महाराणा मोकल की हत्या के बाद विरोधियों की संख्या भी बढ़ गई। इसी दौरान इन गद्दारों की नज़र कुम्भा पर पड़ी।
कुम्भा बच निकलने में सफल रहे, परन्तु उनका पीछा किया गया। कुम्भा एक पटेल के घर में जा घुसे। उस पटेल के घर पर 2 घोड़ियां थीं। कुम्भा को इस हालत में देखकर पटेल ने सारी बात पूछी।
पटेल को जब मालूम पड़ा कि ये मेवाड़ के उत्तराधिकारी हैं, तो उसने कहा कि “एक घोड़ी आप ले जाओ और दूसरी को यहीं मार दो, वरना पीछा करने वाले मुझे जरूर मार देंगे।” कुम्भा ने तलवार से एक घोड़ी को मार दिया और दूसरी पर सवार होकर रवाना हुए।
पीछे से जब गद्दारों ने पटेल से पूछा, तो पटेल ने जवाब दिया कि “एक लड़का आया था, उसने मुझसे घोड़ी मांगी, मैंने मना किया तो उसने एक घोड़ी मार दी और दूसरी छीनकर ले भागा।”
राज्याभिषेक :- मुहणौत नैणसी ने लिखा है कि मोकल की हत्या के बाद चाचा मेवाड़ का राणा बना। वास्तव में ऐसा कुछ नहीं हुआ था, क्योंकि चाचा कभी मेवाड़ की गद्दी पर बैठा ही नहीं।
कुम्भा षड्यंत्रकारियों से बच निकलने में सफल रहे। कुम्भा चित्तौड़गढ़ आ गए, जहां 1433 ई. में उनका राज्याभिषेक कर दिया गया। महाराणा कुम्भा गद्दी पर बैठ गए, परन्तु आंखों में धधक रही प्रतिशोध की ज्वाला को शांत करना ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य था।
पिता की हत्या का प्रतिशोध :- महाराणा कुम्भा ने गद्दी पर बैठते ही सर्वप्रथम अपने पिता महाराणा मोकल के हत्यारों (चाचा, मेरा, महपा पंवार, इक्का/एका) को मारने के लिए एक सेना तैयार की व सेना को हुक्म दिया कि “इन हत्यारों को ऐसी मौत दो कि भविष्य में कोई मेवाड़ के महाराणा के साथ ऐसा सुलूक करने का विचार तक अपने मन में न ला सके।”
महाराणा मोकल के मामा मारवाड़ के राव रणमल राठौड़ थे, जिन्होंने पगड़ी उतारकर फैंटा बांध लिया और प्रतिज्ञा की कि “जब तक अपने भाणजे मोकल की हत्या का प्रतिशोध न ले लूँ, तब तक सिर पर पगड़ी धारण न करूँगा।”
रणमल चित्तौड़ आए और महाराणा को नजराना दिया और वहाँ से 500 सवारों की फौज लेकर पई व कोटड़ा की पहाड़ियों की तरफ चले गए, जहां चाचा और मेरा अपने परिवार वालों के साथ छिपे थे।
रणमल वहां चाचा और मेरा तक पहुंच न सके, क्योंकि भील लोग इस वक़्त चाचा और मेरा की सहायता कर रहे थे। भीलों ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि एक बार रणमल ने भीलों के एक मुखिया को मार दिया था।
रणमल 6 महीनों तक वहीं पहाड़ियों में घेरा डालकर रहे पर कुछ हाथ न लगा। आखिरकार भीलों को अपने पक्ष में करने के लिए वे उस भील मुखिया की विधवा स्त्री के घर गए। रणमल ने अपनी करनी का पछतावा किया, जिससे उस वृद्ध भील स्त्री ने उनको क्षमा किया।
भील स्त्री ने कहा कि “राव तुमने मेरे पति को मारकर बड़ा अपराध किया है, पर अब तुम मेरे घर तक चले आए हो, इसलिए मैं कुछ न कहूंगी”। (दरअसल भीलों में यह कायदा रहा है कि यदि शत्रु भी बिना ख़राब नियत के घर तक चला आए, तो उस पर हमला नहीं करते थे, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर उसकी मदद करते थे।)
भील स्त्री ने राव रणमल से पूछा कि “हमारे लायक कोई चाकरी हो तो बताओ”। राव रणमल ने कहा कि “मैं महाराणा मोकल के हत्यारों चाचा और मेरा को मारने के लिए निकला हूँ, पर वे मिल नहीं रहे।”
भील स्त्री ने ये सुनकर अपने 5 बेटों को बुलाया और उनसे कहा कि “अब से तुम चाचा और मेरा की मदद करना बंद कर दो और राव रणमल जो कहें, वैसा ही करो”।
भीलनी के कहने पर उसके सभी पुत्रों ने चाचा व मेरा को मारने के लिए राव रणमल के प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया। भीलों की मदद से रणमल ने पहाड़ियों में धावे बोल दिए, जहां एक कोट में छिपे चाचा और मेरा बुरी तरह मार दिए गए। उनके परिवारों को भी मौत के घाट उतार दिया गया।
इन पहाड़ियों में कुछ मेर भी रहते थे, जिनमें से एक मेर राव रणमल के साथ मिल गया। वह मेर राव रणमल को उस झोंपड़ी तक ले गया, जहां महपा रह रहा था।
रणमल को महपा का पता चला, तो रणमल ने घर के बाहर आवाज़ लगाई, तो अंदर से एक वृद्धा बोली कि महपा तो मेरे कपड़े पहनकर भाग निकला है, ताकि कोई उसको पहचान न सके। इक्का (चाचा का बेटा) और महपा पंवार भागकर मांडू के सुल्तान महमूद की शरण में चले गए।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
राजस्थान की भूमि ने अनेक सपूतों को जन्म दिया है जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी. शत शत नमन है इस धरती को.