महाराणा मोकल द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य :- महाराणा मोकल ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में द्वारिकानाथ (विष्णु) मंदिर बनवाया। यहीं एक जलाशय भी बनवाया। महाराणा ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में राजा भोज परमार द्वारा निर्मित समिद्धेश्वर मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया।
महाराणा मोकल ने एकलिंगजी मंदिर की तरफ विशेष ध्यान दिया। महाराणा ने एकलिंग जी के मन्दिर के चौतरफ का तीन द्वार वाला कोट बनवाया।
महाराणा मोकल ने एकलिंगनाथ जी के मंदिर के पीछे की तरफ स्थित इंद्रसरोवर तालाब, जिसे भोडेला भी कहा जाता है, उसकी मरम्मत करवाई थी।
एकलिंग जी मंदिर के निकट ही महाराणा ने अपने छोटे भाई बाघसिंह के नाम पर बाघेला तालाब बनवाया। एकलिंगजी के निकट स्थित तालाबों में से यह तालाब सबसे बड़ा है। सहस्रबाहु मंदिर भी इसी तालाब किनारे स्थित है।
महाराणा मोकल ने अपनी बाघेला वंश की रानी गौराम्बिका की स्वर्गप्राप्ति के निमित्त श्रृंगीऋषि के स्थान पर बापी कुंड बनवाया।
महावीर जैन मंदिर का जीर्णोद्धार :- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में जैन कीर्ति स्तम्भ के निकट स्थित महावीर जैन मंदिर को अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण के दौरान खंडित करवा दिया था।
महाराणा मोकल के शासनकाल में 1428 ई. में गुणराज श्रेष्ठि के पुत्रों ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार प्रारम्भ किया। यह जीर्णोद्धार कार्य महाराणा कुम्भा के शासनकाल में 1438 ई. में खत्म हुआ।
महाराणा मोकल द्वारा किए गए दान, पुण्य व भेंट के कार्य :- महाराणा मोकल ने अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में सोने और चांदी के कुल 25 तुलादान किए, जिनमें से एक स्वर्ण तुलादान पुष्कर तीर्थ पर स्थित आदिवराह मंदिर में किया।
बाद में मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह के पुत्र सगरसिंह ने इस मंदिर का नवीनीकरण करवाया। मुगल बादशाह जहांगीर ने इस मंदिर में स्थित वराह की मूर्ति को तुड़वाकर तालाब में फिंकवा दिया।
महाराणा मोकल ने विष्णु मंदिर को स्वर्ण का गरुड़ व देवी के मंदिर को सर्वधातु से निर्मित सिंह भेंट किया। महाराणा मोकल ने बांधनवाड़ा व रामा गाँव एकलिंगजी मन्दिर के खर्च हेतु भेंट किए।
महाराणा मोकल ने धनपुर गांव समिद्धेश्वर मंदिर के खर्च हेतु भेंट किया। जो ब्राह्मण कृषक हो गए थे, उनके लिए महाराणा मोकल ने सांग (6 अंगों सहित) वेद पढ़ाने की व्यवस्था की।
महाराणा मोकल के समय के शिलालेख :- जावर का शिलालेख :- यह शिलालेख जावर के एक जैन मंदिर के छबने पर खुदवाया गया, जो कि 1421 ई. का है। यह महाराणा मोकल का पहला शिलालेख है।
श्रृंगी ऋषि का शिलालेख :- यह शिलालेख 26 जुलाई, 1428 ई. में एकलिंग जी से 6 मील दक्षिण-पूर्व में श्रृंगी ऋषि नामक स्थान पर स्थित एक बावड़ी पर खुदवाया गया। इस शिलालेख का एक टुकड़ा खो गया। इस शिलालेख की रचना कविराज वाणीविलास योगीश्वर ने की। सूत्रधार हादा के पुत्र फना ने इसे खोदा।
समिद्धेश्वर का शिलालेख :- यह शिलालेख महाराणा मोकल ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में समिद्धेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाने के बाद वहीं खुदवाया। यह शिलालेख 16 जनवरी, 1429 ई. का है।
यह शिलालेख महाराणा मोकल का अंतिम शिलालेख है। इसकी रचना दशपुर (दशोरा) भट्ट विष्णु के पुत्र एकनाथ ने की। शिल्पकार वीसल ने इसे लिखा। सूत्रधार मन्ना के पुत्र वीसा ने इसे खोदा।
महाराणा मोकल की रानियां :- इन महाराणा की 2 रानियों के नाम ही मिले हैं। (1) रानी सौभाग्य देवी :- महाराणा मोकल का पहला विवाह रानी सौभाग्य देवी से हुआ। मेवाड़ी टीका में इनका नाम सुहागदे लिखा है। ये जैतमल सांखला की पुत्री थीं।
(2) रानी गौराम्बिका :- महाराणा मोकल की दूूसरी रानी का नाम गौराम्बिका था। रानी गौराम्बिका का देहांत 1428 ई. से पहले हुआ। महाराणा ने इनकी याद में एक बावड़ी बनवाई।
ख्यातों में महाराणा मोकल की रानियों के नाम माया कंवर, केसर कंवर, अतिरूप कंवर, हेम कंवर, मदालसा आदि दे रखे हैं। लेकिन ये नाम काल्पनिक हैं, क्योंकि इनमें रानी सौभाग्य देवी व रानी गौराम्बिका के नाम नहीं हैं, जो कि शिलालेखों व ग्रंथों से प्रमाणित होते हैं।
महाराणा मोकल की पुत्री :- महाराणा मोकल की एक पुत्री का नाम लालादे था, जिनका विवाह गागरोन के अचलदास खींची के साथ हुआ था। लालादे का नाम कहीं-कहीं लालबाई व पुष्पा देवी भी मिलता है। ये महाराणा मोकल की पहली संतान थीं अर्थात ये महाराणा कुम्भा से भी उम्र में बड़ी थीं।
महाराणा मोकल के 7 पुत्र हुए :- (1) महाराणा कुम्भा, जो कि मेवाड़ के अगले महाराणा बने। (2) कुंवर क्षेमकर्ण :- प्रतापगढ़ के सिसोदिया राजपूत इन्हीं कुंवर क्षेमकर्ण के वंशज हैं। कुंवर क्षेमकर्ण को खींवा के नाम से भी जाना गया। महाराणा कुम्भा व कुँवर क्षेमकर्ण जीवनभर आपस में विरोधी रहे।
(3) कुंवर शिवा :- इनका नाम कहीं-कहीं सुआ भी लिखा गया है। इनके वंशज सुआवत कहलाए। (4) कुंवर सत्ता :- इनके वंशज कीतावत कहलाए। सम्भवतः सत्ता का अन्य नाम कीता भी था।
(5) कुंवर नाथसिंह (6) कुंवर वीरमदेव (7) कुंवर राजधर। इन तीनों कुँवर के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिली है।
मुहणौत नैणसी ने महाराणा मोकल के ऐसे 2 पुत्रों के नाम बताए हैं, जो अन्यत्र कहीं पढ़ने को नहीं मिलते। नैणसी के अनुसार महाराणा मोकल के पुत्र अढू के वंशज अढूओत व गढू के वंशज अढूओत कहलाए। नैणसी ने कुँवर नाथसिंह व कुँवर राजधर का नाम नहीं लिखा है।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)
महाराणा मोकल के भाई बाघ सिंह के बारे में जानकारी हो तो प्रदान करे
ओर रानी गोरांबिका कहा की थी