मेवाड़ के महाराणा मोकल (भाग -1)

महाराणा मोकल का जन्म परिचय व व्यक्तित्व :- महाराणा मोकल के पिता महाराणा लाखा व माता हंसाबाई जी राठौड़ थीं। इतिहासकार रामवल्लभ सोमानी ने महाराणा मोकल की जन्मतिथि 1395 ई. या इससे पूर्व मानी है।

जबकि ओझाजी ने महाराणा मोकल के राज्याभिषेक के समय उनकी आयु 12 वर्ष मानी है। ख्यातों में महाराणा मोकल की आयु राज्याभिषेक के समय 5 वर्ष लिखी है। रामवल्लभ सोमानी जी का मत अधिक उचित प्रतीत होता है।

महाराणा मोकल महाराणा लाखा के 8वें पुत्र थे, जो अपने ज्येष्ठ भाई कुंवर चूंडा के राजगद्दी त्यागने के बाद उत्तराधिकारी बने। महाराणा मोकल बहुत वीर प्रकृति के थे।

इन महाराणा ने दान पुण्य के कार्यों व निर्माण कार्यों में अच्छी रुचि दिखाई। महाराणा मोकल एक सुयोग्य शासक थे। इन महाराणा ने एकलिंग जी मंदिर व उसके आसपास निर्माण कार्य करवाकर बहुत बढ़िया कार्य किया, जिसका वर्णन अगले भागों में विस्तार से किया जाएगा।

महाराणा मोकल

महाराणा मोकल का राज्याभिषेक व रावत चूंडा द्वारा राज्य त्याग :- महाराणा लाखा का देहांत हो गया, तब उनकी रानी हंसाबाई ने कुँवर चूंडा से कहा कि “मैं तो सती होने जा रही हूं, पर जाते-जाते जानना चाहती हूं कि मेरे बेटे मोकल के लिए तुमने कौनसा परगना देने का विचार किया है ?”

तब कुंवर चूंडा ने राजमाता से कहा कि “आपके बेटे को मेवाड़ की राजगद्दी दिलाने का वचन मैं भूला नहीं हूँ। वो मेवाड़ के मालिक हैं और मैं उनका नौकर।”

महाराणा लाखा के देहांत के बाद 1418 ई. से 1421 ई. के मध्य उनके ज्येष्ठ पुत्र रावत चूंडा ने अपने छोटे भाई मोकल का हाथ पकड़कर उन्हें मेवाड़ की राजगद्दी पर बिठाकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।

राजमाता हंसाबाई जब सती होने जा रही थीं, तब कुंवर चूंडा ने उनको रोक लिया और कहा कि “आपको बाईजीराज बनकर रहना चाहिए, आपकी उपस्थिति से महाराणा मोकल को भी सहारा मिलेगा।” (राज करने वाले शासक की माता को ‘बाईजीराज’ कहते हैं।)

राजमाता रावत चूंडा की स्वामिभक्ति देख बड़ी खुश हुईं और उन्होंने कहा कि “आज से आप महाराणा मोकल के संरक्षक नियुक्त किए जाते हैं। राज्य का सारा प्रबंध आपके हाथों में रहेगा।”

कुछ सर्दारों को रावत चूंडा की बढ़ती प्रसिद्धि से जलन हुई, तो उन्होंने राजमाता हंसाबाई के कान भरने शुरु किए। राजमाता से यहां तक कहा गया कि रावत चूंडा अवसर पाकर आपके पुत्र मोकल को मारकर गद्दी पर बैठने का इरादा कर रहे हैं।

कुँवर चूंडा

राजमाता ने अपने पुत्र प्रेम और स्त्री स्वभाव के कारण इन सर्दारों की बातों पर भरोसा कर लिया। राजमाता हंसाबाई ने रावत चूंडा से कहा कि “अगर तुम मोकल के नौकर हो, तो मेवाड़ के बाहर जहां चाहो वहां चले जाओ और यदि राज्य चाहते हो तो मैं अपने पुत्र समेत कहीं चली जाऊं।”

इस पर रावत चूंडा ने कहा कि आप राजमाता हैं, आपकी आज्ञा अनुसार मैं तो मेवाड़ छोड़ता हूं, आप महाराणा का ध्यान रखें व राज्य का प्रबंध संभालें।

रावत चूंडा अपने छोटे भाई अज्जा आदि समेत मेवाड़ से चले गए, पर जाने से पहले अपने छोटे भाई राघवदेव को महाराणा मोकल का संरक्षक नियुक्त कर गए। रावत चूंडा मांडू के सुल्तान के पास गए और वहीं रहने लगे। सुल्तान ने रावत चूंडा को कई परगने जागीर में दिए।

राघवदेव रावत चूंडा के छोटे भाई व महाराणा लाखा के दूसरे बड़े पुत्र थे। राघवदेव के छोटे भाई महाराणा मोकल के दिमाग पर केवल उनके मामा रणमल राठौड़ की बात ही असर करती थी। राज्य का सारा काम रणमल ही करते थे।

राव रणमल ने राठौड़ राजपूतों को मेवाड़ की कई जागीरें देना प्रारंभ कर दिया, महाराणा मोकल भी इन मामलों में हस्तक्षेप न कर पाए।

मारवाड़ के उत्तराधिकार संघर्ष में महाराणा मोकल की भूमिका :- मंडोवर के राव चूंडा का देहान्त हुआ और उत्तराधिकार संघर्ष शुरु हुआ। राव चूंडा के बड़े बेटे राव रणमल्ल ने कई राठौड़ साथियों और महाराणा मोकल की मेवाड़ी फौज लेकर मंडोवर पर अधिकार किया।

इस लड़ाई में राव रणमल्ल के भतीजे नरबद की एक आँख फूट गई। महाराणा मोकल नरबद और सत्ता को चित्तौड़ ले आए। महाराणा ने नरबद को एक लाख आय वाली कायलाणा की जागीर दे दी व उनको अपना सरदार बनाया।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग

जालौर व सांभर पर आक्रमण :- कुम्भलगढ़ प्रशस्ति के अनुसार “महाराणा मोकल ने सपादलक्ष (सांभर) को बर्बाद किया और जालंधर (जालौर) वालों को कम्पायमान किया”

जहाजपुर विजय :- एकलिंगजी मंदिर के दक्षिण द्वार की प्रशस्ति (1488 ई.) में लिखा है कि “बलवान पक्ष वाले, शत्रु की सेना को नष्ट करने वाले, बड़े संग्रामों में विजय पाने वाले और दूतों के द्वारा दूर-दूर की खबरें जानने वाले महाराणा मोकल ने जहाजपुर के युद्ध में विजय प्राप्त की।”

इस समय जहाजपुर पर बम्बावदा के हाड़ा राजपूतों का अधिकार था, इसलिए सम्भवतः महाराणा मोकल ने हाड़ा राजपूतों को पराजित करके ही जहाजपुर पर अधिकार किया। जहाजपुर वर्तमान में भीलवाड़ा जिले में स्थित है।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. Mukesh
    March 24, 2022 / 4:08 pm

    God

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