मेवाड़ के महाराणा लाखा (भाग – 3)

महाराणा लाखा द्वारा किए गए दान-पुण्य :- महाराणा लाखा के पास धन संचय बहुत अधिक हो गया था, इस खातिर उन्होंने बहुत सी स्वर्ण तुलाएँ की। महाराणा लाखा ने चीरवा गांव एकलिंग जी मंदिर के खर्च हेतु भेंट किया।

महाराणा लाखा के शासनकाल में करवाए गए निर्माण कार्य :- पीछोला झील :- महाराणा लाखा के शासनकाल में 1387 ई. में छीतर (पिच्छू) नामक बनजारे ने पीछोला झील का निर्माण करवाया। यह झील मेवाड़ की सबसे पुरानी झीलों में से एक है। इस झील का बांध 334 गज लंबा है।

बाद में 1525 ई. में महाराणा सांगा ने इस झील का जीर्णोद्धार किया। वर्तमान में इस झील में जगमंदिर व जगनिवास नाम के महल स्थित हैं व झील में ही बीजरी नामक स्थान पर नटनी का चबूतरा स्थित है। पीछोला की सहायक झीलें दूध तलाई, रंगसागर व स्वरूप सागर हैं।

तालाबों का निर्माण :- महाराणा लाखा के पुत्र महाराणा मोकल के समय के एक शिलालेख में महाराणा लाखा के समयकाल में बनवाए गए तालाबों का वर्णन है। महाराणा लाखा द्वारा बनवाए गए तालाबों को ‘लाखोला तालाब’ कहा जाता है।

ऐसे ही एक तालाब के नाम पर भीलवाड़ा में एक गांव का नाम लाखोला पड़ गया। उदयपुर के पास लखावली में पहाड़ियों के पानी का संग्रह करने के लिए ‘लाखावाला तालाब’ बनवाया गया।

महाराणा लाखा के शासनकाल में बनवाए गए तालाबों में कमलों की खेती होती थी। इन तालाबों की मजबूती के लिए महाराणा लाखा ने बड़े आकार के पत्थरों का प्रयोग करवाया।

महाराणा लाखा

चित्तौड़गढ़ में निर्माण कार्य :- महाराणा लाखा ने अलाउद्दीन खिलजी व उसके बेटे खिज्र खां द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग में तोड़े गए कई मंदिर व महलों का जीर्णोद्धार करवाया व बहुत से नए बनवाये। इनके अतिरिक्त दुर्ग में तालाब, कुंड आदि का भी निर्माण करवाया।

पार्श्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार :- महाराणा लाखा के समय में आसलपुर दुर्ग में स्थित पार्श्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। त्रिशूल :- आबू के अचलेश्वर मंदिर में एक विशाल त्रिशूल की स्थापना की गई।

नकली बूंदी की कथा :- बूंदी के कवि सूर्यमल्ल मिश्रण ने ग्रंथ वंश भास्कर में एक कथा लिखी है। इस कथा का सार यह है कि “महाराणा हम्मीर के जीते-जी उनके बेटे कुँवर क्षेत्रसिंह मारे गए, तो हम्मीर के पौत्र महाराणा लाखा मेवाड़ की गद्दी पर बैठे।

महाराणा लाखा ने गद्दी पर बैठने के तुरंत बाद यह प्रण लिया कि जब तक बूंदी पर अधिकार न कर लूं, तब तक भोजन न करूंगा। मेवाड़ वालों ने सलाह दी कि इतनी जल्दी बूंदी जीतना सम्भव नहीं है, इसलिए आप मिट्टी की नकली बूंदी बनवाइये और उसमें कुछ सिपाही रखकर उस पर आक्रमण करके जीत लीजिए।

महाराणा ने कहा कि उस नकली बूंदी के गढ़ में कोई हाड़ा राजपूत होना चाहिए। बम्बावदा के राजा हालू के दूसरे पुत्र कुम्भकर्ण हाड़ा, जो कि महाराणा हम्मीर के समय से ही मेवाड़ में रहते थे, उनको नकली बूंदी की रक्षार्थ 300 सिपाहियों समेत गढ़ में तैनात किया गया।

फिर महाराणा लाखा ने नकली बूंदी पर आक्रमण किया, जिसमें कुम्भकर्ण हाड़ा अपने सभी साथियों सहित काम आए। राजा हालू के बाद उनके बड़े बेटे चंद्रराज का बम्बावदा पर राज हुआ। फिर बम्बावदा पर चंद्रराज के बेटे धीरदेव ने राज किया। महाराणा लाखा ने धीरदेव को मारकर बम्बावदा छीन लिया।”

कुम्भकर्ण हाड़ा को नकली बूंदी की रक्षा करते हुए दिखाने वाला चित्र

इस घटना के विरुद्ध मैंने पहले भी एक लेख लिखा था, जिसका कुछ लोगों ने विरोध भी किया, क्योंकि जो प्रचलित कथाएं हम सुनते आ रहे हों, उन्हें कोई झुठलाए तो क्रोध आना स्वाभाविक है। परन्तु इतिहास में यदि प्रमाणों से सत्य सामने आ सकता हो, तो फिर कथाओं का सहारा क्यों लिया जावे।

अब यहां इस घटना के विरोध में तर्क रखे जा रहे हैं। सबसे पहले तो वंश भास्कर में लिखा है कि महाराणा हम्मीर के जीवित रहते हुए ही उनके पुत्र कुँवर क्षेत्रसिंह मारे गए, जबकि महाराणा क्षेत्रसिंह ने स्वयं 1366 ई. में एक शिलालेख खुदवाया, जिससे उनका शासनकाल सिद्ध होता है।

दूसरी बात वंश भास्कर में महाराणा लाखा की गद्दीनशीनी के समय बम्बावदा का स्वामी राजा हालू को बताया गया है। जबकि बम्बावदा के स्वामी हाड़ा महादेव ने 1389 ई. में एक शिलालेख खुदवाया, जिसमें उन्होंने महाराणा क्षेत्रसिंह के साथ रहते हुए मालवा वालों के विरुद्ध युद्ध लड़ने का वर्णन किया है।

इसका अर्थ ये है कि महाराणा क्षेत्रसिंह के समय बम्बावदा के स्वामी हाड़ा महादेव थे और महाराणा लाखा की गद्दीनशीनी (1382 ई.) के 7 वर्ष बाद तक भी वहां के स्वामी हाड़ा महादेव ही थे और सम्भव है कि 1389 ई. के बाद भी कुछ समय तक उनका राज रहा हो।

बूंदी राज्य का इतिहास लिखने वाले लेखक जगदीशचन्द्र गहलोत ने नकली बूंदी की इस घटना को काल्पनिक बताया है। डॉ. ओझा लिखते हैं कि “राजा हालू तो कभी बम्बावदा का स्वामी हुआ ही नहीं और कुम्भकर्ण नाम का उसका कोई पुत्र था ही नहीं।”

कवि सूर्यमल्ल मिश्रण उन चंद कवियों में से थे, जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध लोगों में क्रांति की भावना का संचार किया। इसके लिए वे सदैव याद रखे जाएंगे।

परन्तु यहां चर्चा इतिहास के विषय की है और उसमें यदि हाड़ा राजपूतों द्वारा खुदवाए गए 14वीं सदी के शिलालेख मौजूद हों, तो 19वीं सदी के ग्रंथ में लिखित विपरीत बात स्वतः ही रद्द हो जाती है। अब सत्य-असत्य का निर्णय पाठक स्वयं करे।

महाराणा लाखा के 9 पुत्र हुए :- (1) कुंवर चुण्डा :- इनके वंशज चुण्डावत कहलाए, जिनको मेवाड़ की फ़ौज में हरावल (सबसे आगे वाली पंक्ति) में रहकर लड़ने का गौरव प्राप्त था।

चुंडावतों के मूलपुरुष – रावत चूंडा

(2) कुंवर राघवदेव :- महाराणा कुम्भा के शासनकाल में मारवाड़ के राव रणमल ने राघवदेव की हत्या कर दी। (3) कुंवर अज्जा :- इनके पुत्र सारंगदेव हुए और सारंगदेव के वंशज सारंगदेवोत कहलाए, जिनके ठिकाने कानोड़ व बाठरड़ा हैं।

(4) कुंवर दूल्हा :- इनके वंशज दुल्हावत कहलाए, जिनके ठिकाने भाणपुर, सैंमरड़ा आदि हैं। (5) कुंवर डूंगरसिंह :- इनके वंशज भांडावत कहलाए। (6) कुंवर गजसिंह :- इनके वंशज गजसिंहोत हुए। (7) कुंवर लूणा :- इनके वंशज लूणावत कहलाए, जिनके ठिकाने मालपुरा, कथारा, खेड़ा आदि हैं।

(8) महाराणा मोकल :- ये मेवाड़ के अगले महाराणा बने। (9) कुंवर बाघसिंह :- इनके नाम पर महाराणा मोकल ने एकलिंगजी मंदिर के निकट बाघेला तालाब बनवाया। कुंवर बाघसिंह के कोई संतान नहीं हुई।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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