मेवाड़ के महाराणा लाखा (भाग – 2)

राव रणमल राठौड़ :- ये मंडोवर के राव चूंडा के बड़े पुत्र थे। राव चूंडा ने किसी कारण से नाराज़ होकर रणमल को मंडोवर से निकाल दिया। रणमल 500 सवारों सहित चित्तौड़ आए और यहीं रहने लगे। महाराणा लाखा ने राव रणमल को धणला गांव जागीर में दिया।

महाराणा लाखा के बड़े पुत्र कुंवर चूंडा ने जिद करके महाराणा को रणमल की बहिन हंसाबाई से विवाह करने के लिए राजी किया। कुंवर चूंडा के ऐसा करने के पीछे बहुत से किस्से हैं, जिनमें से एक ये है कि

महाराणा लाखा ने एक दिन किसी की बारात को देखकर राव रणमल से कुछ मजाक किया कि अब हम बूढों से विवाह कौन करे। ये बात कुंवर चूंडा ने सुन ली और अपने पिता की इच्छा पूरी करने की ठानी।

दूसरा किस्सा ये है कि राव रणमल ने कुंवर चूंडा के लिए अपनी बहिन के विवाह का प्रस्ताव महाराणा के सामने रखा और नारियल पेश किया। महाराणा लाखा ने मजाक में कहा कि ये नारियल मेरे लिए है क्या ! कुंवर चूंडा ने तभी इस विवाह से इनकार किया और हंसाबाई का विवाह अपने पिता से करवाने की ठान ली।

राव रणमल राठौड़

कुँवर चूंडा राव रणमल के यहां भोजन करने गए। कुंवर चूंडा ने अपने पिता के लिए राव रणमल से कहा कि वह अपनी बहिन का विवाह महाराणा से कर देवे, पर राव रणमल ने कहा कि “महाराणा की उम्र ज्यादा है और उनके बाद राजगद्दी तो आपको ही मिलनी है, क्योंकि आप ही ज्येष्ठ पुत्र हैं”

कुंवर चूंडा ने राव रणमल के साथ आए चाँदण नामक चारण के ज़रिए राव रणमल को समझाने का प्रयास किया। कुंवर चूंडा ने प्रतिज्ञा की कि “हंसाबाई जी और महाराणा का जो भी पहला पुत्र होगा, वही मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठेगा और मैं उसकी सेवा में रहूंगा”। कुंवर चूंडा ने यह बात एक प्रतिज्ञा पत्र पर लिखकर राव रणमल को दे दिया।

इस प्रतिज्ञा के कारण कुंवर चूंडा को ‘मेवाड़ का भीष्म पितामह’ भी कहा जाता है। इस त्याग को समझने के लिए यदि कल्पना की जाए तो उस वक़्त एक छोटी सी जागीर के लिए भाई भाई का लहू बहाने से भी नहीं हिचकिचाता,

ऐसे समय में चूंडा जी ने समस्त मेवाड़ राज्य का स्वामी बनने से इनकार कर दिया, वह भी मात्र अपने पिता द्वारा किये गए एक मजाक को सच में बदलने के लिए।

चूंडा जी की पितृभक्ति की स्मृति के लिए ये नियम बना दिया गया कि अब से मेवाड़ महाराणाओं द्वारा जो भी पट्टे लिखे जावें, उन पर भाले का राजचिन्ह चूंडा जी और उनके मुख्य वंशधर अर्थात सलूम्बर के रावत ही करेंगे।

इसका पालन महाराणा भूपालसिंह जी के समय तक होता रहा। विवाह के 13 माह बाद महाराणा लाखा व हंसाबाई जी के पुत्र मोकल का जन्म हुआ।

मैंने कुछ लोगों से अक्सर एक प्रश्न सुना है कि रावत चूंडा को तो मेवाड़ का भीष्म पितामह कहा जाता है, तो फिर उनके वंशज चुंडावत कैसे कहलाए, क्योंकि भीष्म ने तो कभी विवाह नहीं किया।

इस प्रश्न का उत्तर ये है कि रावत चूंडा को मेवाड़ का भीष्म इसलिए कहा गया क्योंकि उन्होंने राजगद्दी का त्याग किया था। रावत चूंडा ने विवाह भी किए और उनके पुत्र भी हुए।

उदयपुर के प्रताप गौरव केंद्र में स्थित रावत चूंडा की प्रतिमा

1411 ई. – मेवाड़ में अकाल :- मेवाड़ में भीषण अकाल पड़ा, तब गुणराज व उनके परिवार ने आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाकर मेवाड़ की बहुत मदद की। महाराणा लाखा ने अनेक स्थानों पर खैरातखाने खोल दिए, जहां प्रजा को मुफ्त अनाज व पानी उपलब्ध करवाया गया।

महाराणा लाखा के दरबारी विद्वान :- झोटिंग भट्ट :- भृगु के वंश में वसन्तयाजी सोमनाथ नाम के विद्वान हुए। सोमनाथ के पुत्र नरहरि हुए और नरहरि के पुत्र झोटिंग हुए। ये संस्कृत के विद्वान थे। ये दशपुर (दशोरा) जाति के ब्राह्मण थे।

झोटिंग भट्ट का मूलनाम केशव था। सूर्यग्रहण पर महाराणा लाखा ने इनको पीपली गांव भेंट किया। झोटिंग भट्ट के वंशज चित्तौड़ के पास घाघसा और सामता गांवों में हैं।

धनेश्वर भट्ट :- ये भी संस्कृत के विद्वान थे। इनको महाराणा लाखा ने पंचदेवला गांव भेंट किया। तिल्ह भट्ट :- महाराणा लाखा ने आय-व्यय अधिकारी के पद पर तिल्ह भट्ट की नियुक्ति की। तिल्ह भट्ट इस पद पर महाराणा कुम्भा के समय तक रहे।

महाराणा लाखा का देहान्त :- कर्नल जेम्स टॉड व कविराजा श्यामलदास ने महाराणा लाखा का देहांत 1397 ई. में होना लिखा है, जो कि अनुचित है। आबू के अचलेश्वर मंदिर में लोहे के त्रिशूल पर एक लेख खुदा हुआ है।

इस लेख में लिखा है कि यह त्रिशूल महाराणा लाखा के शासनकाल में विक्रम संवत 1468 (1411 ई.) में घाणेरा गांव में बनाया गया व इस त्रिशूल को नाणा के ठाकुर मांडण और कुँवर भादा ने इसे अचलेश्वर मंदिर में चढ़ाया।

महाराणा लाखा

गोड़वाड़ के कोट सोलंकियान नामक स्थान से एक शिलालेख मिला है, जिसके अनुसार 1418 ई. में महाराणा लाखा के शासनकाल में आसनपुर दुर्ग में श्री पार्श्वनाथ चैत्य का जीर्णोद्धार करवाया गया।

महाराणा लाखा के पुत्र महाराणा मोकल का पहला शिकलेख 1421 ई. का मिला है। इससे यह प्रमाणित हो जाता है कि महाराणा लाखा का देहांत 1418 ई. से 1421 ई. के बीच हुआ।

अगले भाग में महाराणा लाखा द्वारा करवाए गए निर्माण कार्यों व नकली बूंदी की घटना की वास्तविकता का वर्णन किया जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

1 Comment

  1. Kailash Singh Chundawat
    March 28, 2022 / 11:01 am

    This is an authentic article written by you with inscriptions and other facts. Thank you for this.

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