महाराणा क्षेत्रसिंह द्वारा साम्राज्य विस्तार :- महाराणा हम्मीर के पुत्र महाराणा क्षेत्रसिंह ने 1364 ई. में मेवाड़ की गद्दी पर बैठने के बाद राज्य विस्तार के कई प्रयास किए, जिसमें उन्हें सफलता भी मिली।
महाराणा क्षेत्रसिंह की टोडा विजय :- कुम्भलगढ़ की प्रशस्ति में लिखा है कि “जिस क्षेत्रसिंह की सेना की रज से सूर्य भी मंद हो जाता था, उसके सामने सादल आदि राजा अपने नगर छोड़कर भयभीत हुए, तो क्या आश्चर्य है ?”
प्रशस्ति में लिखित ‘सादल’ को इतिहासकारों ने टोडा के राजा सातल की ओर संकेत करके कहा है कि महाराणा क्षेत्रसिंह ने टोडा के राजा सातल को पराजित कर टोडा पर अधिकार किया।
महाराणा क्षेत्रसिंह की वागड़ विजय :- ग्रंथ वीरविनोद के अनुसार महाराणा क्षेत्रसिंह ने वागड़ पर भी अधिकार कर लिया। हालांकि मुझे सिवाय वीरविनोद के किसी अन्य स्रोत से इसकी जानकारी नहीं मिली है।
दिल्ली सल्तनत के अधीनस्थ नगरों पर धावा :- मुहणौत नैणसी के अनुसार महाराणा क्षेत्रसिंह ने दिल्ली सल्तनत के अधीनस्थ नगरों को लूटा। पुराने दोहों में भी इस घटना का ज़िक्र है।
महाराणा क्षेत्रसिंह का देहांत :- 1382 ई. में 18 वर्ष राज करने के बाद महाराणा क्षेत्रसिंह का देहांत हुआ। बून्दी के कवि सूर्यमल्ल मिश्रण के अनुसार एक घटना लिखी गई, इसका अनुसरण करते हुए वीर विनोद में भी यही कहानी दर्ज कर ली गई, जिसका ऐतिहासिक रूप से कोई महत्व नहीं।
वंश भास्कर में लिखित इस कहानी का सार ये है कि कुंवर क्षेत्रसिंह के ससुर बूंदी के लालसिंह हाड़ा ने बरबड़ी देवी चारण के बेटे बारू को तंग किया, जिसके बाद बारू ने अपना सिर काट दिया। इस बात से नाराज़ होकर क्षेत्रसिंह ने बूंदी पर चढ़ाई कर दी, जहां बूंदी के लालसिंह हाड़ा ने क्षेत्रसिंह को मार दिया।
मुहणौत नैणसी के अनुसार बारू के मरने के बाद सिसोदियों और हाड़ाओं में बैर पड़ गया, जिसको मिटाने के लिए हाड़ाओं ने 12 सिसोदिया सरदारों को अपनी बेटियां ब्याही और 24 गांव (जीलगरी, धनवाड़ा, भीलड़िया आदि) दहेज में दिए।
हालांकि नैणसी ने महाराणा क्षेत्रसिंह द्वारा बूंदी पर चढ़ाई करने का वर्णन नहीं किया है। ओझाजी जैसे मान्य इतिहासकार ने इस घटना को पक्षपातपूर्ण बताकर असत्य सिद्ध किया है।
वंश भास्कर के अनुसार क्षेत्रसिंह की हत्या उनके पिता महाराणा हम्मीर के जीवित रहते हुई थी। वास्तव में ये असम्भव है, क्योंकि यदि ऐसा हुआ होता तो मेवाड़ की वंशावली में महाराणा क्षेत्रसिंह का नाम ही नहीं होता।
महाराणा क्षेत्रसिंह के शासन को सिद्ध करने के लिए उनके द्वारा 1366 ई. में खुदवाया गया शिलालेख ही पर्याप्त है। इसके अलावा एक तर्क ये भी है कि महाराणा हम्मीर के समकालीन बूंदी के शासक राव देवा हाड़ा थे।
राव देवा हाड़ा की पांचवी पीढ़ी में हुए लालसिंह हाड़ा द्वारा महाराणा हम्मीर के पुत्र की हत्या करना निश्चित ही असम्भव है।
मेवाड़ के मुख्य मंत्री :- महाराणा खेता के समय मुख्य मंत्री रामदेव नवलखा थे। रामदेव की पत्नी का नाम मेला देवी था। रामदेव के 2 पुत्र हुए :- सारग व सहणपाल। रामदेव ने करेड़ा जैन मंदिर में ‘दीक्षा महोत्सव’ का आयोजन करवाया था।
महाराणा क्षेत्रसिंह द्वारा किए गए दान-पुण्य के कार्य :- जयपुर में स्थित पनवाड़ गाँव महाराणा क्षेत्रसिंह ने एकलिंग जी मंदिर के खर्च हेतु भेंट किया।
महाराणा मोकल द्वारा 1428 ई. में खुदवाए गए श्रृंगी ऋषि के शिलालेख से प्राप्त जानकारी के अनुसार महाराणा क्षेत्रसिंह किसी यात्रा पर गए थे, जहां उन्होंने दान-पुण्य के कार्य किए।
महाराणा क्षेत्रसिंह के शासनकाल में मेवाड़ में हुए निर्माण कार्य :- महाराणा क्षेत्रसिंह ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में अपनी पासवान खातण रानी के नाम से महल बनवाए।
महाराणा क्षेत्रसिंह के शासनकाल में 1374 ई. में दिगम्बर सम्प्रदाय के काष्टासंघ के भट्टारक श्रीधर्मकीर्ति के उपदेश से सेठ वीजा के बेटे हरदान ने उदयपुर के धूलेव गांव में स्थित ऋषभदेव मंदिर में एक गर्भगृह (निजमन्दिर) व खेला मंडप का निर्माण करवाया।
महाराणा क्षेत्रसिंह का विवाह :- महाराणा क्षेत्रसिंह का विवाह बूूंदी के राव देवा हाड़ा के पुत्र कुँवर हरराज की पुत्री बाल कंवर से हुआ। जायल के मालिक धारू आंदलोत खींची चौहान की पुत्री से भी महाराणा क्षेत्रसिंह का विवाह हुआ।
महाराणा क्षेत्रसिंह के 7 पुत्र हुए :- (1) महाराणा लाखा, जो मेवाड़ की गद्दी पर विराजमान हुए। (2) कुंवर भाखर, जिनके वंशज भाखरोत सिसोदिया कहलाते हैं। (3) कुंवर माहप/महिपाल
(4) कुंवर भुवनसिंह (5) कुंवर भूचर, जिनके वंशज भूचरोत कहलाते हैं। (6) कुंवर सलखा, जिनके वंशज सलखावत/सलखणोत कहलाते हैं। (7) कुंवर सखरा, जिनके वंशज सखरावत कहलाते हैं।
चाचा व मेरा :- इन दोनों भाइयों की माँ खातण करमा पासवान थी, जो कि मेदिनीमल खाती की पुत्री थी। चाचा व मेरा दोनों ही महाराणा क्षेत्रसिंह की अवैध सन्तानें थीं।
चाचा व मेरा ने महाराणा क्षेत्रसिंह के पोते महाराणा मोकल की हत्या की थी, जिसका वर्णन महाराणा मोकल के इतिहास में विस्तार से लिखा जाएगा। करमा खातण का एक और पुत्र था अखैराज, लेकिन ये महाराणा क्षेत्रसिंह का पुत्र नहीं था।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)