मेवाड़ के उद्धारक – महाराणा हम्मीर (भाग – 5)

पालनपुर पर हमला :- महाराणा हम्मीर ने किसी कारणवश क्रोध में आकर प्रह्लादनपुर (वर्तमान में गुजरात का पालनपुर) पर हमला कर नगर को जला दिया।

ईडर पर अधिकार :- महाराणा हम्मीर ने ईलदुर्ग नगर (वर्तमान गुजरात में स्थित ईडर का राज्य) पर हमला किया और वहाँ के राजा जैत्रेश्वर राठौड़ को मारकर ईडर पर अधिकार जमाया।

राजा जैत्रेश्वर के अन्य नाम जीतकर्ण, जैतकरण, जैत्र थे। राजा जैत्रेश्वर ईडर के राठौड़ राव रणमल के पिता व लूणकरण के पुत्र थे।

एकलिंगजी मन्दिर के दक्षिणद्वार की प्रशस्ति में लिखा है कि “पृथ्वीपति हम्मीर ने चलती हुई सेनारूपी चंचल जल वाले, अश्वरूपी नक्रों (घड़ियालों) से भरे हुए, विशाल हाथीरूप पर्वतों वाले, अनेक वीर रत्नों की खान, इला (ईडर) रूपी पर्वत से उत्पन्न हुए जैत्रकर्ण रूपी समुद्र को युद्ध में सुखा दिया।”

महाराणा हम्मीर द्वारा बनवाई गई हमेरपाल झील

बूंदी के ग्रंथ वंश भास्कर में लिखित घटना :- “बंबावदे के राजा हालू ने जीरण और भाणपुर के कई गांवों पर कब्ज़ा कर लिया। जब राजा हालू विवाह करने के लिए शिवपुर गए, तब जीरण के अधिकारी जैतसिंह पंवार और भाणपुर के राजा भरत खींची ने राजा हालू पर चढ़ाई कर दी।

महाराणा हम्मीर ने राजा भरत की मदद के लिए जैत्रसिंह के पुत्र सुंदरदास व अपने ज्येष्ठ पुत्र महाराजकुमार क्षेत्रसिंह के नेतृत्व में फौज भेजी। राजा हालू की मदद खातिर हामाजी हाड़ा बूंदी से फ़ौज लेकर आ गए।

इस लड़ाई में राजा हालू विजयी रहे, महाराजकुमार क्षेत्रसिंह घायल हुए और महाराणा हम्मीर के काका विजयराज वीरगति को प्राप्त हुए। इससे क्रोधित होकर महाराणा हम्मीर ने स्वयं राजा हालू पर चढाई की।

बूंदी के हामाजी ने महाराणा के सामने हाजिर होकर कहा कि आपने पंवारों और खींची चौहानों का साथ देकर राजा हालू के विरुद्ध चढ़ाई करके उचित नहीं किया।

महाराणा हम्मीर ने कहा कि मेरे काका विजयराज इस लड़ाई में मारे गए और मेरा बेटा क्षेत्रसिंह घायल हुआ है। इसलिए राजा हालू को दंड देना ही पड़ेगा।

हामाजी ने कहा कि विजयराज को मैंने अपने हाथों से मारा है। आप दंड देना ही चाहें, तो मुझे दीजिए। यदि आपको उचित लगे, तो दंड के एवज में मैं अपने बेटे लालसिंह की बेटी का विवाह महाराजकुमार क्षेत्रसिंह से करवा दूंगा।

महाराणा हम्मीर इस बात से राज़ी हो गए और महाराजकुमार क्षेत्रसिंह की सगाई हामाजी की पौत्री से करवा दी गई।”

वंश भास्कर में लिखित उपर्युक्त वर्णन पूरा ही काल्पनिक है। इस घटना को यहां केवल इसीलिए लिखा गया है ताकि वंश भास्कर में उक्त घटना को पढ़कर लोग भ्रमित न हो जाएं।

महाराणा हम्मीर और हाड़ा राजपूतों के बीच अच्छे सम्बन्ध थे। महाराणा हम्मीर ने कभी उन पर चढ़ाई नहीं की। महाराणा हम्मीर के विजयराज नाम के कोई काका थे ही नहीं। महाराणा हम्मीर के समय बम्बावदा पर राजा हालू का नहीं, बल्कि कुंतल का राज था।

वंश भास्कर में बूंदी के शासक राव हामा हाड़ा की पौत्री से महाराणा हम्मीर के पुत्र कुंवर क्षेत्रसिंह का विवाह होना लिखा है, यह भी काल्पनिक है। क्योंकि महाराणा हम्मीर के समकालीन बूंदी के शासक राव देवा हाड़ा थे और राव देवा हाड़ा की छठी पीढ़ी में उक्त राजकुमारी हुई।

महाराणा हम्मीर का देहान्त :- 1364 ई. में महाराणा हम्मीर का देहान्त हुआ। महाराणा हम्मीर के देहांत का कारण या तो कोई बीमारी रही होगी या फिर उम्र। इस समय इनकी उम्र 62 वर्ष के आसपास थी। मुहणौत नैणसी ने अपनी ख्यात में महाराणा हम्मीर का शासनकाल 64 वर्षों का बताया है, जो कि गलत है।

महाराणा हम्मीर द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य :- हमीरसर झील :- 1330 ई. में महाराणा हम्मीर ने केलवाड़ा के निकट एक झील बनवाई, जो वर्तमान में हमेरपाल, हमीरपाल, हमीरसर आदि नामों से जानी जाती है।

इस जलाशय के पास महाराणा हम्मीर ने मंदिर का निर्माण भी करवाया। एक मंदिर तो काफी पुराना मालूम पड़ता है व एक मंदिर दिखने में कुछ नया दिखता है, सम्भव है नवीनीकरण कराया गया हो।

इस मंदिर में महाराणा हम्मीर की एक तस्वीर रखी हुई है। मंदिर के ऊपर बने झरोखे से हमेरपाल झील का बहुत अच्छा नज़ारा दिखता है। यह झील वर्तमान में अफ्रीकन कैटफिश के लिए प्रसिद्ध है।

हमेरपाल झील के निकट स्थित मंदिर

आम्र वाटिकाओं का निर्माण :- महाराणा मोकल के शासनकाल में चित्तौड़गढ़ दुर्ग के समिद्धेश्वर मंदिर में खुदवाए गए शिलालेख से यह जानकारी मिलती है कि महाराणा हम्मीर ने सिंचाई के उद्देश्य से एक झील का निर्माण करवाया व उसके चारों ओर आम्र वाटिकाओं का निर्माण करवाया।

भगवान विष्णु के मंदिर का निर्माण :- महाराणा हम्मीर के शासनकाल में देसूरी की नाल के निकट भगवान विष्णु का एक मंदिर बनवाया गया।

अन्नपूर्णा माता का मंदिर व जलाशय :- महाराणा हम्मीर ने गुजरात के खोड़ गाँव की बरबड़ी देवी को बड़े आदर के साथ चित्तौड़ बुलाया। इनके देहान्त के बाद चित्तौड़गढ़ दुर्ग में महाराणा हम्मीर ने अन्नपूर्णा माता के नाम से एक मंदिर बनवाया।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित समिद्धेश्वर मंदिर के शिलालेख (1429 ई.) के अनुसार महाराणा हम्मीर ने सुवर्ण कलश सहित एक मंदिर बनवाया व मंदिर के निकट एक जलाशय का निर्माण करवाया, परन्तु शिलालेख में स्थान का नाम नहीं लिखा है।

डॉ. ओझा ने अनुमान लगाया है कि यह मंदिर चित्तौड़ का अन्नपूर्णा माता मंदिर है व जलाशय से आशय उसके निकट स्थित कुंड है। परंतु मेरे अनुमान से यह मंदिर केलवाड़ा के निकट स्थित मंदिर है और जलाशय से आशय हमेरपाल झील से है।

बरबड़ी देवी जी को प्रणाम करते हुए महाराणा हम्मीर

महाराणा हम्मीर के 4 पुत्र हुए :- (1) महाराणा क्षेत्रसिंह (महाराणा खेता), जिनका इतिहास अगले भाग से लिखा जाएगा। (2) कुंवर लूणा :- इनके वंशज लूणावत सिसोदिया कहलाए।

(3) कुंवर खंगार (4) कुंवर वैरीसाल :- वैरीसाल को झाड़ौल की तरफ कोई जागीर मिली। इनके पुत्र तेजसिंह हुए। तेजसिंह के पुत्र सिंहराज हुए, जिन्होंने झाड़ौल के लाखा के गुड़े नामक गाँव में एक मंदिर बनवाया।

मंदिर में 1438 ई. का एक शिलालेख मिला है, जिससे मालूम पड़ता है कि यह मंदिर महाराणा कुम्भा के शासनकाल में बनवाया गया।

पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)

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