रानी पद्मिनी, राघव चेतन व उनसे सम्बन्धित घटनाओं की ऐतिहासिकता :- हाल ही में जब पद्मावत फ़िल्म आई थी, तब कई महानुभवों ने चर्चा में बने रहने के लिए रानी पद्मिनी की ऐतिहासिकता को ही खारिज कर दिया और इन्हें जायसी की कल्पना बता दिया।
इनका कहना था कि रानी पद्मिनी का ज़िक्र सवर्प्रथम जायसी ने ही 1540 ई. में किया था। यह भी कहा गया कि चित्तौड़ में मौजूद रानी पद्मिनी के महल ज्यादा पुराने नहीं हैं। अब यहां कुछ तथ्य रखे जा रहे हैं, जो इस बात का अकाट्य प्रमाण हैं कि ये जायसी की कल्पना मात्र नहीं है :-
पद्मावत :- मलिक मोहम्मद जायसी ने 1540 ई. में लिखित पद्मावत ग्रंथ में चित्तौड़ को ‘शरीर’, रावल रतनसिंह को ‘हृदय’, रानी पद्मिनी को ‘बुद्धि’, अलाउद्दीन खिलजी को ‘माया’ की उपमा दी है।
जो लोग ये मानते हैं कि रानी पद्मिनी का ज़िक्र पहली बार मलिक मोहम्मद जायसी ने पद्मावत ग्रंथ में किया है, उन्हें पद्मावत पढ़ने की आवश्यकता है। क्योंकि जायसी ने स्पष्ट लिखा है कि उसने रानी पद्मिनी की यह कथा ‘बेन’ नामक कवि से सुनी है। इसका अर्थ ये है कि जायसी से पहले भी रानी पद्मिनी का ज़िक्र हुआ था।
सम्यकत्वकौमुदी ग्रंथ :- यह ग्रंथ चित्तौड़गढ़ जौहर के मात्र 62 वर्ष बाद 1365 ई. में लिखा गया। इस ग्रंथ के लेखक तिलक सूरी थे। इस ग्रंथ में राघव चेतन का वर्णन मिलता है।
छित्ताई चरित ग्रंथ :- यह ग्रंथ जायसी की पद्मावत से पहले लिखा गया था। इस ग्रंथ की रचना राजा सलहदी तंवर के शासनकाल में 1526 ई. में हुई थी। इस ग्रंथ में रानी पद्मिनी का स्पष्ट वर्णन है, जो कि इस बात पर मुहर लगा देता है कि रानी पद्मिनी मात्र जायसी की कल्पना नहीं है।
इस ग्रंथ में प्रसंगवश अलाउद्दीन व राघव चेतन की वार्ता लिखी गई है, जिसमें अलाउद्दीन राघव चेतन से कहता है कि “मैंने चित्तौड़ की रानी पद्मिनी के बारे में सुना, उसे पाने का प्रयास किया, रतनसिंह को बंदी भी बनाया, परन्तु गोरा-बादल उसे छुड़ा ले गए।”
खरतरगच्छ पट्टावली ग्रंथ :- यह ग्रंथ चित्तौड़ के प्रथम जौहर के कुछ वर्ष बाद ही लिखा गया था। इस ग्रंथ में राघवचेतन का वर्णन है। इसमें लिखा है कि राघवचेतन जैन आचार्य जिनप्रभसूरी का समकालीन था और दिल्ली में रहा करता था।
यह तंत्र-मंत्र में पारंगत था। इसने 64 योगनियों की साधना कर रखी थी। यह दुष्ट स्वभाव का था। राघव चेतन की ऐतिहासिकता और उसके स्वभाव को जानने के लिए यह ग्रंथ बहुत महत्वपूर्ण है।
कांगड़ के राजा संसारचन्द्र की प्रशस्ति में भी राघवचेतन का उल्लेख है।फ्रां सीसी यात्री मनूची ने अपनी पुस्तक ‘स्टीरियो डी मेगोर’ में रानी पद्मिनी का उल्लेख किया है।
पद्मावत को आधार मानकर अकबर के समय हाजी उद्दवीर ने ‘जफरुलवली’ नामक पुस्तक लिखी। पद्मावत को आधार मानकर जहाँगीर के समय मुहम्मद कासिम फरिश्ता ने ‘गुलशन-ए-इब्राहिमी’ नामक पुस्तक लिखी।
रानी पद्मिनी महल :- सितम्बर, 1879 ई. में महाराणा सज्जनसिंह चित्तौड़गढ़ दुर्ग में जीर्णोद्धार करवाने के उद्देश्य से पधारे, जहां उन्होंने महारानी पद्मिनी के महल की भी मरम्मत करवाई।
महारानी पद्मिनी के महल निश्चित रूप से खंडहर हो गए होंगे, जिन्हें महाराणा सज्जनसिंह ने दुरुस्त करवाया और इसी कारण ये महल 150 वर्ष पुराने प्रतीत होते हैं।
रानी पद्मिनी के महलों का वर्णन मध्यकाल की पुस्तकों में भी हुआ है। अमरकाव्य ग्रंथ में लिखा है कि “मालवा के सुल्तान को कुछ समय के लिए रानी पद्मिनी के महल में बंदी बनाकर रखा गया था।”
मध्यकाल में प्रचलित गीतों में यह उल्लेख मिलता है कि “महाराणा उदयसिंह की पुत्री का विवाह जब बीकानेर के महाराजा रायसिंह राठौड़ से हो रहा था, तब महाराजा रायसिंह ने रानी पद्मिनी के महलों की प्रत्येक सीढ़ी पर दान दिया था।”
समकालीन तवारिखें :- खिलजियों के इतिहास में समकालीन लेखकों ने रावल रतनसिंह को बंदी बनाने व रावल रतनसिंह के क़ैद से छूटने का उल्लेख किया है। हालांकि इन लेखकों ने गोरा-बादल का वर्णन नहीं किया,
क्योंकि यदि वे ऐसा करते तो उनकी बड़ी बदनामी होती। लेकिन विचार करना चाहिए कि खिलजियों की हज़ारों की सेना के बीच रावल रतनसिंह अकेले क़ैद से फरार हो जाएं, ये सम्भव नहीं।
निष्कर्ष :- इस प्रकार ऊपर बताए गए प्रमाणों से इतना स्पष्ट है कि रानी पद्मिनी, रावल रतनसिंह व राघव चेतन ऐतिहासिक रूप से सम्बंधित थे, ना कि किसी की कल्पना से। बस ये कहना भूल होगी कि अलाउद्दीन ने रानी पद्मिनी के कारण ही चित्तौड़ पर हमला किया।
रानी पद्मिनी के अलावा भी कुछ कारण थे, जिनकी वजह से अलाउद्दीन ने आक्रमण किया। जैसे रावल रतनसिंह के पिता रावल समरसिंह द्वारा खिलजियों की सेना से जुर्माना वसूलना, चित्तौड़ का सामरिक महत्व और बढ़ती ख्याति।
अगले भाग में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण करने के बारे में लिखा जाएगा। पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत (लक्ष्मणपुरा – मेवाड़)